" नारी दिवस " अच्छा लगता है न जब इस विषय पर कुछ पढ़ने या सुनने को मिलता है। खुद के विषय में इतनी बड़ी-बड़ी और सम्मानजनक स्लोगन, हमारे अधिकार और प्रगति की बातें सुनकर हम खुद को गौरवान्वित महसूस करने लगते हैं।
क्यूँ है न?मगर सोचती हूँ कि
कोई "पुरुष दिवस" क्यों नहीं मनाया जाता?
हमारे लिए ही ये सब कुछ क्यों हुआ????
अगर हम ध्यान से सोचे तो हर उस विषय पर "एक दिन" निर्धारित कर दिया गया है जो विषय अपने आप में कमजोर है या होता जा रहा है। सीधे शब्दों में जब कहीं गिरावट महसूस होती है या उस विषय को उपर उठाना होता है तभी उसे एक दिन विशेष से जोड़ दिया जाता है। तभी तो मजदूर दिवस, हिंदी दिवस, मातृदिवस, प्रेम दिवस,पर्यावरण,जल और वन संरक्षण दिवस आदि की शुरुआत हुई है।
अब सोचने वाली बात है कि जो नारी सत्ता भारत देश की गौरव हुआ करती थी उसमें इतनी गिरावट आई कि उनके उत्थान के लिए, उनके अस्तित्व को याद दिलाने के लिए, उन्हें फिर से जिंदा करने के लिए एक दिन का निर्धारण करना पड़ा। अजीब है न ये?
खैर, जो हुआ सो हुआ, अब क्या?
क्या नारी का उत्थान हो रहा है ?
क्या हमने वो स्थान पा लिया जो हम खो चुके थे?
क्या नारी की वो गरिमा फिर से स्थापित हो रही है?
नारियों का संघर्ष बहुत लम्बा चला। लेकिन इस कठीन लम्बे सफ़र में
हम अपना प्रमुख मकसद ही भुल गए।
चले थे खुद के वजूद को ढूंढने, फिर तरासने और अपनी चमक बिखेरकर सबको प्रकाशित करने। लेकिन पता नहीं कब और कैसे अपनी मुल मकसद को भुल हम पुरुषो के साथ प्रतिस्पर्धा को ही मुख्य उद्देश्य बना बैठे। वैसे भी जब भी कोई प्रतिस्पर्धा शुरू होती है तो प्रतियोगी को चाहिए कि वो सिर्फ और सिर्फ अपनी जीत पर ध्यान केंद्रित करें ना कि दुसरे की हार पर, तभी वो पुर्ण सफलता पा सकता है। यहाँ भी हमसे एक चुक हो गई हमने अपनी जीत से ज्यादा ध्यान पुरुषो को हराने में लगा दिया।
हम जीत तो गए परन्तु अपना मुल स्वरुप ही खो दिए।
इस नारी दिवस पर एक बार हमें इन बातों पर भी विचार करना चाहिए कि बाहरी दुनिया में अपनी शाखाओं को फैलते-फैलते कही हम अपनी जड़ों से तो नहीं उखड गए?
अपनी रौशनी से बाहरी दुनिया को रोशन करने में खुद के घरों को तो अंधकार में नहीं डुबो दिया ?
खुद आसमान छूने की लालसा में कही अपनी बेटियों को रसातल में तो नहीं ढकेल दिया।
(क्योंकि बेटियाँ दिन-ब-दिन अपने मार्ग से भटकती जा रही है जो कि चिंता का विषय है )
हम नारी शक्ति है,जैसे माँ दुर्गा ने एक साथ कई रूप धारण कर दुष्टों का संहार भी किया और अपनी संतानों को दुलार भी। उसी शक्ति के अंश हम भी है। हमें किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी बल्कि हमें अपने मूल स्वरूप को पहचान कर पहले खुद का सम्मान खुद ही करना होगा। कोई और हमें सम्मानित करे इसकी प्रतीक्षा नहीं करनी। किसी को अपना अपमान करने का हक़ नहीं देंगे और ना ही किसी को कमतर करने की होड़ में रहेंगे।
फिर कोई एक "नारी दिवस" नहीं होगा। हमारा तो हर दिन है..
हम तो वो है जो घर और बाहर दोनों में अपनी भूमिका बाखूबी निभा रहें है।
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इस "नारी दिवस" पर मैंने भी अपनी हुनर को एक पहचान देने की कोशिश की है।
इसके लिए आप सभी का आशीर्वाद चाहती हूँ।
बिल्कुल सही कहा आपने कामिनी जी ! कि अपनी जीत से ज्यादा ध्यान पुरुषो को हराने में लगा दिया।
जवाब देंहटाएंहम जीत तो गए परन्तु अपना मूल स्वरुप ही खो दिए।
हमारी प्रतिस्पर्धा पुरुषों से है ही नहीं बस खुद को बेहतर बनाते हुए अपने मूल स्वरूप को और अधिक उजागर करते रहें । हर दिन हमारा है हमें किसी महिला दिवस की आवश्यकता ही नहीं।
नारी दिवस पर आपके हुनर को नई पहचान मिली। अनंत शुभकामनाएं एवं बधाई आपको । आशा है आपके हुनर से हम जैसे अनेक ब्लॉगर साथी लाभान्वित होंगे । ईश्वर से प्रार्थना है कि आपको आपके काम में सफलता प्रदान करें ।
आप के इस स्नेह और शुभकामना के लिए हृदय तल से धन्यवाद सुधा जी 🙏
हटाएंमहिला दिवस पर बहुत ही शानदार रचना प्रस्तुत की है आपने
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर 🙏
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जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने -
“हमें किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी बल्कि हमें अपने मूल स्वरूप को पहचान कर पहले खुद का सम्मान खुद ही करना होगा।” महिला सशक्तिकरण पर सार्थक आलेख कामिनी जी ! आपके “हुनर” को लोकप्रियता और ख़ूब तरक़्क़ी मिले ..,असीम शुभकामनाओं सहित आपके हुनर को सलाम !सस्नेह नमस्कार 🙏
आपके इस स्नेह से भरी आर्शिवचनों के लिए दिल से शुक्रिया मीना जी 🙏
हटाएंमहिला दिवस की शुभकामना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी 🙏
हटाएं"खुद आसमान छूने की लालसा में कही अपनी बेटियों को रसातल में तो नहीं ढकेल दिया" सचमुच कामिनी दी इस पर हम सभी महिलाओं को विचारमंथन करना होगा। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ज्योति जी, 🙏
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