रविवार, 25 सितंबर 2022

"वसुधैव कुटुम्बकम "



    भारतीय "हिन्दू संस्कृति" सबसे प्राचीनतम संस्कृति मानी जाती है और इस संस्कृति का मुलभुत सिद्धांत था "वसुधैव कुटुम्बकम "अर्थात पूरी वसुधा ही हमारा परिवार है। इस परिवार में मानव ही नहीं, प्रकृति और समस्त जीवों का भी स्थान था। हिन्दू संस्कृति में प्रकृति और जीवों का इतना गहरा रिश्ता है कि -दुनिया की सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद का प्रथम मंत्र ही "अग्नि" की स्तुति में रचा गया है। समय-समय पर पेड़-पौधे और जीवों की पूजा तो सर्वविदित है। 

     "हिन्दू धर्म" में अनगिनत त्यौहार मनाये जाते हैं। हर त्यौहार के पीछे कोई ना कोई उदेश्य जरूर होता है। अब नवरात्री पूजन को ही लें -  "नवरात्री" के नौ दिन में नौ देवियों का आवाहन अर्थात आठ दिन में देवियों के अष्ट शक्तियों को खुद में समाहित करना ( रोजमर्रा के दिनचर्या के कारण हम अपनी आत्मा के असली स्वरूप को खो देते है..उसका जागरण करना )और नवे दिन देवत्व प्राप्त कर दसवे दिन अपने अंदर के रावण का वध कर उत्सव मनाना। जब अंदर का रावण मर जायेगा तो जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ होगी, फिर घर-घर खुशियों के दीप जलाकर दीपावली मनाऐगे ही। भारतीय संस्कृति में  प्रचलित प्रत्येक त्यौहारों  पर यदि हम गहनता से चिंतन करें तो ये स्पष्ट होगा कि इनके पीछे आध्यात्म की प्रमुखता तो थी ही साथ-साथ एक बहुत बड़ा पारिवारिक,सामाजिक,मनोवैज्ञानिकऔर प्रकृति संरक्षण का उदेश्य भी छिपा होता है।नवरात्रि में देवी पूजन कर अपनी आत्मा की शक्तियों को जागृत करने से भी पहले हम पंद्रह दिन अपने पतृदेवों का पूजन कर उनकी आत्मा को तृप्त करते हैं ताकि अष्ट शक्तियों को जागृत करने के लिए   हमें जो बल चाहिए, वो पतृदेवों के आशीर्वाद से हमें मिल सकें। और पतृदेवो के प्रति सच्ची श्रद्धा-विश्वास और कर्तव्य परायणता की सीख तो गणपति जी से अच्छा कौन दे सकता है,इसलिए पतृपक्ष से पहले हम ग्यारह दिन मातृ-पितृ भक्त गजानन की पूजन करते हैं।इस तरह सारे त्यौहारों को क्रमबद्ध कर इस तरह से व्यवस्थित  किया गया है जो हमें समय-समय पर जीवन को बेहतर बनाने की सीख देते हैं। 

     "हिन्दू धर्म" के प्रत्येक त्यौहारों में तन-मन और वातावरण दोनों की शुद्धता को प्रमुखता दी गई है। दशहरा में मन की शुद्धता तो दीपावली में वातावरण की शुद्धता।  चार माह के बारिस के मौसम के बाद सर्दी के मौसम का आगमन होता है और बरसात के मौसम में घर के अंदर से लेकर बाहर तक गंदगी और कीड़ें -मकोड़ों की संख्या काफी बढ़ जाती है। सर्दी बढ़ने से पहले अगर इनकी सफाई नहीं हुई तो बीमारियों का प्रकोप बढ़ जायेगा। हमारे पूर्वजों ने दिवाली को लक्ष्मी पूजा से भी जोड़ा और कहा कि अपना घर और अपने आस-पास का वातावरण अगर साफ नहीं रखोगे तो लक्ष्मीजी तुमसे नाराज़ हो जाएगी और तुम्हारे घर नहीं आएगी।स्वाभाविक है, यदि घर में बिमारियों का प्रकोप होगा तो लक्ष्मी नाराज़ ही कहलाई न।  दिवाली पर तेल या घी के दीपक जलाने की परम्परा बनाई ताकि उस दीये के आग में वो सारे बरसाती कींट -पतंगे जल कर खत्म हो जाये जो हमारे शरीर के साथ-साथ आगे चलकर हमारे खेतो को भी नुकसान पहुँचायेगें। घी और तेल से निकलने वाले धुएं हमारे पर्यावरण को शुद्ध करेंगें।

      दीपावली के बाद बिहार और उतरप्रदेश के कुछ क्षेत्र में "छठ पूजा" का भी बहुत बड़ा महत्व है। इस त्यौहार के पीछे भी हमारे पूर्वजो की बड़ी गहरी मानसिकता रही है ।(इस त्योहर के बारे में विस्तारपूर्वक जानने  लिए पढ़े मेरा ये लेख-आस्था और विश्वास का पर्व -" छठ पूजा "ये  एक मात्र ऐसा पौराणिक पर्व है जो ऊर्जा के देवता सूर्य और प्रकृति की देवी षष्ठी माता को समर्पित है। पृथ्वी पर हमेशा के लिए जीवन का वरदान पाने के लिए ,सूर्यदेव और षष्ठीमाता को धन्यवाद स्वरूप ये व्रत किया जाता है।इस पूजा में अपने अंतर्मन की सफाई के साथ-साथ पर्यावरण की सफाई, जिसमे नदी-तालाब की सफाई को प्रमुखता दी गई थी।  इस पूजा में प्रकृति से प्राप्त हर एक वस्तु की पूजा की जाती है जो ये संदेश देता है कि -प्रकृति ने जो भी  वस्तु हमें  प्रदान की है उसका अपना एक विशिष्ट महत्व होता है इसलिए किसी भी वस्तु का अनादर नहीं करें।हमारे हर पूजा-पाठ,हवन-यज्ञ के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण अवश्य होता है। 

   काश !  हम समझ पाते कि-इतने सुंदर ,पारिवारिक ,सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सन्देश देने वाले  इन त्यौहारों को जिन्हे हमारे पूर्वजों ने कितना मंथन कर शुरू किया होगा जिसमे सर्वोपरि "प्रकृति" को रखा गया था। लेकिन आज यह पावन- पवित्र त्यौहार अपना मूलरूप खो चूके हैं। इनकी शुद्धता ,पवित्रता ,सादगी ,सद्भावना ,और आस्था महज दिखावा बनकर रह गया है।भारतीय संस्कृति और त्योहारों पर हम गहनता से चिंतन करे तो पाएंगे कि-प्रकृति संरक्षण का ऐसा कोई संस्कार अखंड भारतभूमि को छोड़कर अन्यत्र कही देखने को नहीं मिलेगा। शायद, यही कारण है कि-और देशो के मुकाबले हमारे देश में प्रकृति से संबंधित हालात अभी भी बेहतर है। दूसरे देश तो भौतिक चकाचोंध में अपना सब कुछ लुटा चुके हैं और थककर भारतीय परम्परा अपनाने के लिए अग्रसर हो रहे हैं और हम अपना महत्व अब भी नहीं समझ पा रहें हैं। यदि आज भी हम सतर्क हो जाए तो स्थिति सुधर सकती है। 

   अब हमें धर्म और त्योहारों के मूलरूप को फिर से समझना ही होगा -कब तक हम धर्म (धर्म भी नहीं धर्म का छलावा )के नाम पर खुद का ,समाज का और अपने पर्यावरण का शोषण करते रहेंगे ? क्या क्रिसमस ,ईद , दिवाली और नववर्ष पर पटाखें  जलाने से ही हमारा त्यौहार मनाना सम्पन होगा ?क्या जगह-जगह  रावण जलाकर ही हम ये सिद्ध कर सकते  हैं  कि हमने रावण को मार दिया? रावण भी ऊपर से देखकर हँस रहा होगा और कहता होगा - "मूर्खो मारना ही है तो अपने भीतर के रावण को मारो,मैं तो तुम सब के अंदर जिन्दा हूँ ,तभी तो किसी ना किसी रूप में हर साल हज़ारो की जान ले ही लेता हूँ ,पाँखंडियों खुद के  भीतर के रावण को तो मार नहीं सकते इसलिए हर साल मेरे पुतले को जला मुझे मारने का ढोंग करते हो। "लक्ष्मी माता भी हँसती होगी कि -पटाखें जलाकर,प्रदूषण फैलाकर मेरे ही स्वरूप "प्रकृति" को नष्ट कर रहे हो और मुझसे ही अन्न-धन और खुशियों की सौगात माँगते हो,मेरी दी हुई प्राणवायु को प्रदूषित कर मुझसे ही जीवन का वरदान माँगते हो "कहाँ से दूँगी मैं तुम्हें ये खुशियाँ"?

     त्यौहार जीवन में खुशियाँ लाने के लिए होती है दुखों को दावत देने के लिए नहीं। हिंदुत्व वैज्ञानिक जीवन पद्धति है। प्रत्येक हिन्दू परम्परा के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक रहस्य छिपा है। इसे समझने और अपनाने का वक़्त आ गया है। अभी नहीं तो कभी नहीं.....

आईये,इस साल  हम सभी  प्रण ले कि-हर त्यौहार पूर्ण भारतीय परम्परा के साथ मनाएंगे 

अपने घर और वातावरण को नव जीवन प्रदान करेंगे। 

और पुरे विश्व में एक बार फिर से  "वसुधैव कुटुम्बकम " का संदेश देगे। 



 



25 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 26 सितम्बर ,2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद दी,सादर नमन

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  2. प्रेरणादायक आलेख। हार्दिक आभार। शारदीय नवरात्रि की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

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    1. मेरे ब्लॉग पर स्वागत है आपका,प्रशंसा हेतु सहृदय धन्यवाद,सादर नमन

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२६-०९ -२०२२ ) को 'तू हमेशा दिल में रहती है'(चर्चा-अंक -४५६३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद प्रिय अनीता

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  4. बहुत सुन्दर सन्देश ! त्योहारों के मर्म को समझे बिना उन्हें मनाना तो परम्पराओं का अन्धानुकरण है.

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    1. प्रशंसा हेतु सहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमन

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. त्यौहारों को मनाने के कारणों और उनसे जुड़े संदर्भों का विश्लेषण करते हुए प्रेरक लेख सृजित करने हेतु हार्दिक बधाई कामिनी जी । शारदीय नवरात्रि पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।

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  7. बहुत ही सटीक चिंतन देता प्रेरक लेख कामिनी जी ।
    हम त्योहारों के वास्तविक स्वरूप को खोते जा रहें हैं बस नित नव आड़म्बर बढ़ते जा रहे हैं और हम उन में फसते जा रहे हैं।
    उपयोगी लेख।
    सस्नेह साधुवाद ‌

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    1. सराहना हेतु तहे दिल से शुक्रिया कुसुम जी ,सादर नमन

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  8. अत्यंत सारगर्भित और तथ्यपूर्ण लेख कामिनी जी।
    त्योहार और उत्सव जीवन दैनिक जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचरण करते हैं। हर त्योहार का प्रकृति के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गूढ़ अर्थ और.महत्व है।
    वर्तमान में सुविधाभोगी और प्रदर्शन कारी भाव प्रधान हो गया है जिसने त्योहारों की पवित्रता और सादगी को आडंबर और औपचारिकता के लबादे से ढक दिया है यह हमारा दायित्व है कि हम त्योहारों की सकारात्मकता उसमे छुपे गूढ़ महत्वों को भावी पीढ़ी को कैसे साझा करें।
    प्रभावशाली लेखन कामिनी जी
    सस्नेह।

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    1. आपने सही कहा श्वेता जी ,मैंने उसी दायित्व को निभाने की कोशिश की है। सराहना हेतु तहे दिल से शुक्रिया ,सादर नमन

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  9. बहुत ही सटीक एवं चिंतनपरक लेख
    सही कहा आपने कि भारतीय संस्कृति और त्योहारों पर हम गहनता से चिंतन करे तो पाएंगे कि-प्रकृति संरक्षण का ऐसा कोई संस्कार अखंड भारतभूमि को छोड़कर अन्यत्र कही देखने को नहीं मिलेगा।हिंदुत्व वैज्ञानिक जीवन पद्धति है। प्रत्येक हिन्दू परम्परा के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक रहस्य छिपा है।परन्तु हम हिंदू ही इस बात से अंजान बने अपने ही पर्व परम्पराओं और त्योहारों को मिथ्या आडम्बर का नाम दे देते हैं ये हमारे लिए शर्म की बात है।
    हमें ही अपने इन पर्व परम्पराओं और त्योहारों के पीछे छिपे महत्व को समझ कर भावी पीढ़ी को समझाते हुए अपनी परम्पराओं को आगे बढ़ाना होगा वह भी दिखावेपन और बाह्य आडम्बरों से हटकर ।
    लाजवाब लेख हेतु साधुवाद🙏🙏🙏

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    1. आपने सही कहा सुधा जी,हमें अब ये प्रयास करना ही होगा। सराहना हेतु तहे दिल से शुक्रिया ,सादर नमन

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  10. बहुत ही सुन्दर सार्थक संदेश देती हुई रचना सखी।हर पर्व और त्योहार का बड़ी बारीकी से विश्लेषण किया है आपने।

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  11. हमारे सामाजिक संरचना में त्योहारों का विशेष महत्व है,इसके अलावा हर त्योहार कोई न कोई सार्थक सन्देश भी दे जाता है, परंपराओं के अनुसार त्योहार मनाने के विशेष लाभ है, परंतु कुछ लोग त्योहारों पर दिखावा और आडंबर का प्रदर्शन करते हैं, वो ठीक नही है ।
    बहुत ही प्रासंगिक और विचारणीय आलेख।
    नवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

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    1. कुछ लोग नहीं जिज्ञासा जी,बल्कि अधिकांश लोग आडम्बर ही कर रहे है। दिवाली अभी दूर है और देखिये पटाखों के दौर शुरू हो गए। सराहना हेतु बहुत बहुत शुक्रिया ,सादर नमन

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  12. प्रिय कामिनी, समस्त विश्व हमारा कुटुम्ब है यही सनातन संस्कारों के सार्वभौम चिन्तन का मूल है ।यही विराट भावना से प्रकृति प्रेम की प्रेरणा मिलती है।ये वो संसकृति है जिसमें समस्त वनस्पति,पत्थरों,पहाडों,जल्रधाराओँ के साथ अदृश्य शक्तियों को सदैव पूज्य मानकर उन्हें संरक्षित रखने की प्रेरणा का संचार किया गया।हमारे पूजनीयऋषियों के शोध समय से कहीं आगे थे, जिनमें लोक कल्याण की भावना निहित थी।सभी तथ्यों पर विस्तार से प्रकाश डालता लेख बहुत सुन्दर और भावपूर्ण है।सच में हर पर्व के पीछे के उददेश्य को जानकर हैरानी होती है कि मौसम और सामाजिक व्यवस्था के तहत हर पर्व प्रासंगिक है।नवरात्रों की बधाई और शुभकामना के साथ सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार 🌹🌹🌺🌺

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    1. तुमने बिल्कुल सही कहा सखी,हमारे पूर्वजो की सोच आज के वैज्ञानिकों के सोच से कही आगे थी मगर पश्चिमी सभ्यता को धारण कर हम अपने मूल से ही अलग हो गए। इस सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद सखी

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