हे! मानस के दीप कलश
तुम आज धरा पर फिर आओ।
नवयुग की रामायण रचकर
मानवता के प्राण बचाओ।।
आज कहाँ वो राम जगत में
जिसने तप को गले लगाया ।
राजसुख से वंचित रह जिसने
मात-पिता का वचन निभाया।।
सुख कहाँ है वो रामराज्य का ?
वह सपना तो अब टूट गया ।
कहाँ है राम-लक्ष्मण से भाई ?
भाई से भाई अब रूठ गया।।
सुन लो अब अरज ये मेरी
मैं धरती जननी हूँ तेरी।
दे दो, ऐसे राम धरा को
भ्रष्टाचार जो दूर भगा दें ।
दे दो, ऐसे कृष्ण मुझे तुम
जो द्रोपदी की लाज बचा लें।।
दे दो, भरत-लखन से भाई
जो भाई का साथ निभा दें।
लौटा दो, वो अर्जुन तुम मुझको
जो धर्मयुद्ध का मर्म समझा दे ।।
हे!मेरे मानस पुत्रो
मेरी करुण पुकार तुम सुन लो।
दहक रहा है मेरा आँचल
आओ, धरा की लाज बचा लो।।
दे दो, ऐसे राम धरा को
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार जो दूर भगा दे ।
दे दो, ऐसे कृष्ण मुझे तुम
जो द्रोपदी की लाज बचा ले।।
गहन चिंतन के परिणाम स्वरूप रची गई रचना।
सुन्दर।
सरहनसंपन प्रतिक्रिया देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सधु जी,सादर नमन
हटाएंबहुत बहुत सशक्त प्रभावशाली रचना । शुभ कामनाएं।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,आपका आशीर्वाद प्राप्त हुआ रचना सार्थक हुई,सादर नमन आपको
हटाएंबहुत सुंदर कामिनी जी! धरा की कातर पूकार है आपका काव्य हृदय स्पर्शी ,मन में ये भाव हमारे भी आते हैं पर धरती माँ बिलख कर ऐसा कहती हैं तो सच रोगंटे खड़े हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर।
धरती माँ तड़प तो रही है,अब हमें खुद को बदलना ही होगा। रचना को सार्थकता प्रदान करने के लिए हृदयतल से धन्यवाद कुसुम जी,सादर नमन
हटाएंहे! मानस के दीप कलश
जवाब देंहटाएंतुम आज धरा पर फिर आओ।
नवयुग की रामायण रचकर
मानवता के प्राण बचाओं।।
कामिनी सिन्हा का आवाहन राम सबका आवाहन है। वैसे तो हैं कितने राम ,सबके अपने अपने राम ,कहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम मेरे तेरे सबके राम। बेहद की सार्थक निर्मल रचना पतित पावनी सुरसरि सी।
सही कहा आपने वीरेंद्र जी,जिसकी जैसी भावना...,सराहना हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं नमन
हटाएंबहुत सुंदर रचना, कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया ज्योति जी,सराहना हेतु आभार,सादर नमन आपको
हटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद सर,सादर नमन
जवाब देंहटाएंवाह! अत्यंत सामयिक, सार्थक और सुमधुर याचना।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी,आपकी प्रतिक्रिया मिली लेखन सार्थक हुआ,ये तो बस एक तुच्छ प्रयास है,सादर नमन आपको
हटाएंआदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर और सशक्त रचना। धरती माँ की यह करुण पुकार सच ही मन को भेद देती है, काश हम उनकी पुकार सुन कर, अपने भीतर मानवता के संस्कार पुनः जगा सकें। हृदय से आभार इस सुंदर पर करुण रचना के लिए व आपको प्रणाम।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया अनंता जी,धरती की आस आप जैसे युवावर्ग से ही है हमें तो जो करनी करना था वो करके सिर्फ पछतावा भर कर सकते हैं और कुछ नहीं।
हटाएंढेर सारा आपको
आज के हालतों को व्यक्त करती प्रभावशाली रचना...
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विकाश जी,सादर
हटाएंसुन्दर और सार्थक सृजन। गहन चिंतन वाली सामयिक रचना के लिए आपको बहुत-बहुत शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद वीरेंद्र जी,सादर
हटाएंसुन्दर,सारगर्भित रचना ।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सधु जी,सादर
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक भाव से सृजित हृदयस्पर्शी कविता । लाजवाब भावाभिव्यक्ति कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया मीना जी,उत्साहवर्धन हेतु आभार आपका ,सादर
हटाएंहे!मेरे मानस पुत्रों
जवाब देंहटाएंमेरी करुण पुकार तुम सुन लो।
दहक रहा है मेरा आंचल
आओ, धरा की लाज बचा लो।।बहुत भाव प्रवण निवेदन मां धरती से। सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं कामिनी जी ।
दिल से शुक्रिया जिज्ञासा जी,उत्साहवर्धन हेतु आभार आपका ,सादर
हटाएं'हे! मानस के दीप कलश
जवाब देंहटाएंतुम आज धरा पर फिर आओ।
नवयुग की रामायण रचकर
मानवता के प्राण बचाओ'... इन प्रारम्भिक पंक्तियों ने ही बता दिया था कि रचना कितनी सुन्दर होगी!... बधाई महोदया!
सहृदय धन्यवाद सर ,आपका आशीर्वाद मिला लेखन सार्थक हुआ ,सादर नमन आपको
हटाएं👍स्नेहिल अभिनन्दन आ.कामिनी जी!
हटाएंधरती की करुण पुकार और ये सुंदर और सारगर्भित लेखन ।
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
सराहना हेतु दिल से शुक्रिया दी,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंहे! मानस के दीप कलश
जवाब देंहटाएंतुम आज धरा पर फिर आओ।
नवयुग की रामायण रचकर
मानवता के प्राण बचाओ।।
वाह वाह ! कामिनी जी! इतना सुन्दर सार्थक एवं सारगर्भित सामयिक सृजन रचा है आपने सचमुच धरती माँ तरस रही होगी राम एवं कृष्ण जैसे पुत्रो के लिए..। इन भ्रष्टाचार ,अत्याचार देखकर ऐसे ही आवाहन करती होगी प्रभु का।
बहुत ही लाजवाब सृजन हेतु बहुत बहुत शुभकामनाएं एवं बधाई आपको।
दिल से शुक्रिया सुधा जी,सादर नमन
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