नमस्ते आंटी जी, कैसी है आप - शर्मा आंटी को देखते ही मैंने हाथ जोड़ते हुए पूछा।
खुश रहो बेटा....तुम कैसी हो...कब आई दिल्ली....बिटिया कैसी है....कितने दिनों के लिए आई हो....शर्मा आंटी अपनी चिरपरचित अंदाज़ में सवालों की झड़ी लगा दी। अरे, ये मुआ कोरोना जो ना कराये.....जरूर बिटिया का काम छूट गया होगा तभी आयी हो न.... इस कोरोना के कारण तो घर से निकलना ही नहीं हो रहा....आज कितने दिनों बाद निकली हूँ घर से ......ना निकलती तो पता ही नहीं चलता की तुम आ गई हो - वो बोले जा रही थी।
अरे आंटी, सांस तो ले लो- मैंने हँसते हुए कहा। मेरे इतना कहते ही वो भी हँसने लगी। मैंने कहा -आंटी मेरी छोडो अपनी सुनाओं कैसे हैं सब....आपकी बहु कैसी है....अब तो बहु के हाथ का खा रही है इसीलिए वजन बहुत बढ़ गया है आपका....शादी हुए तो एक साल से ज्यादा हो गया जरूर घर में नन्हा-मुन्ना भी आ ही गया होगा...कब खिला रही है मिठाई - मैंने भी उन्ही के जैसे एक पर एक सवाल रख दिए। जैसे-जैसे मैं आंटी से सवाल किए जा रही थी वैसे-वैसे आंटी के मुँह का ज्योग्राफिया बदलता जा रहा था। मैं मन ही मन सोच रही थी -इन्हे क्या हुआ इनका मुँह तो कड़वे करेले जैसा बनता जा रहा।
मेरे सवालों से आंटी के सब्र का बांध जैसे टूट गया अचानक से झिड़कती हुई बोली -अरे मेरे आगे उस कलमुही का नाम ना ले, खून जलने लगता है मेरा...मर गई वो। हे भगवान ! कब मर गई...कैसे मर गई - मुझे तो शॉक सा लग गया, मैं एक साल बाद दिल्ली आई थी मुझे तो ये पता ही नहीं था। वो उतने ही गुस्से में बोली- अरे, मेरे वास्ते मर गई....वो तो शादी के एक महीने बाद ही मेरे बेटे को छोड़ कर चली गई....किसी दूसरे के साथ चक्कर था उसका......नाहक शादी में इतने पैसे खर्च कर दिए...हाथ ढेला ना आया।
आंटी तो गुस्से में बड़बड़ाती हुई निकल गई, उनकी दुखती रग पर हाथ जो रख दिया था मैंने, मगर मैं उनकी बातें सुनकर सन्न रह गई। आंटी हमारे ही मुहल्ले में रहती है एक बेटा एक बेटी है अच्छा-खासा धूम-धाम से बेटे का व्याह की थी और बहु एक महीने में ही घर छोड़कर चली गई और तलाक का नोटिस भेज दी। आंटी की बेटी तो पहले से ही तलाकशुदा थी वो भी आंटी के घर में ही बैठी थी। आंटी तो चली गई मगर मेरे जेहन में कई सवाल छोड़ गई....
कमी किस में थी ?
दोष किसका था ?
क्यूँ घर बस काम रहे हैं, उजड़ ज्यादा रहे हैं ?
क्यूँ आखिर क्यूँ ?
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 08-01-2021) को "आम सा ये आदमी जो अड़ गया." (चर्चा अंक- 3940) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
मैरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद मीना जी,सादर नमस्कार
हटाएंदिन ब दिन बढ़ती ऐसी घटनाओं पर सवाल तो बहुत उठते हैं पर उनके जवाब पाना भी आसान नहीं है !
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने मगर, यदि ज़बाब नहीं ढूंढा गया तो बहुत जल्द रिश्तों का अन्त जरुर हो जायेगा,सादर नमस्कार
हटाएंआपसी विश्वास और भावनाओं में कमी। आपसी रिश्तों को हल्के में लेते हुए, एक दूसरे को समझे-जाने बगैर जो रिश्ते बनाये जाते हैं वे कब रिस जाय कोई नहीं जानता
जवाब देंहटाएंकमी और दोष दोनों पक्षों का होता है, ये दीगर बात होती हैं कि किसी तरफ ज्यादा किसी तरफ कम हो
आज के हालातों से सचेत कराती जागरूक प्रस्तुति
बिल्कुल सही कहा आपने सुधा जी, रिश्तों मे अधिकार के साथ साथ यदि कर्तव्य की भावना होगी तभी घर बसते हैं, आप की सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार
हटाएंक्षमा चाहती हूं कविता जी, मैंने आप को सुधा जी के नाम से सम्बोधित कर दिया
हटाएंप्रसंग ज्वलंत है और बहुत गम्भीर भी । दोनों ओर ही सहन शक्ति कम होती जा रही है ।जब कि विवाह तो निर्वहन का नाम है , हर पग पर एक दूसरे को सहारा देने का नाम है ।
जवाब देंहटाएं।
बिल्कुल सही कहा आपने सर, विवाह तो निर्वहन का नाम है, आप की इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से धन्यवाद एवं सादर प्रणाम
हटाएंविचारणीय रचना...
जवाब देंहटाएंसाधुवाद!!!
सहृदय धन्यवाद शरद जी
हटाएंआज के8 ज्वलंत समस्या है ये। विचारणीय पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी
हटाएंसही कहा घर बस कम रहे हैं और उजड़ ज्यादा रहे हैं....सहिष्णुता की कमी कहें या महत्वाकांक्षा की अति...समझौता करना जैसे सीखा ही नहीं है किसी ने...बहुत सुन्दर विचारणीय सृजन।
जवाब देंहटाएं"समझोता" शब्द ही इनके शब्दकोष से गायब हो गया है, आप की सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से शुक्रिया सुधा जी, सादर नमन
हटाएंसमसामयिक मुद्दे पर प्रकाश डालते हुए विचारणीय प्रश्न उठाए हैं आपने । सदैव की तरह चिन्तनपरक पोस्ट कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंआप की इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद मीना जी,सादर नमस्कार
हटाएंचिंतन को नई दिशा देती इस पोस्ट के लिए साधुवाद आपको प्रिय कामिनी जी 🌷🙏🌷
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद वर्षा जी,सादर नमस्कार
हटाएंसुन्दर सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया आप का
हटाएंशायद सभी की कमी होगी। सही सवाल उठाती रचना के लिए आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आपका
हटाएंदोनों ही बातों का सार देखें तो कमी है ... हम क्या चाहते हैं ये कभी ठन्डे से सोचते नहीं .... बस जो है हो जाए अभी अभी ... सही प्रश्न उठाती पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद दिगंबर जी, सादर नमन
हटाएंसार्थक सृजन
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सरिता जी,स्वागत है आपका
हटाएंअत्याधुनिक निरंकुश प्रवृत्तियों पर क्या टिप्पणी किया जाए ।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने,दिल से शुक्रिया अमृता जी
हटाएंपहले माँओं की आँखों में बच्चों की शादी को लेकर खूबसूरत सपने होते थे पर अब तो अजीब सा डर भी रहता है। बहू हमसे निभा तो पाएगी ना, बेटी ससुराल में एडजस्ट तो हो जाएगी ना....आदि।
जवाब देंहटाएंसंस्कारों और सहनशीलता की कभी के साथ पाश्चात्य संस्कृति का बढ़ता प्रभाव इसका कारण हो सकता है। आपने ज्वलंत प्रश्न को उठाया है रचना में।
दिल से शुक्रिया मीना जी, सहमत हूँ आपकी बातों से,आभार एवं सादर नमन
हटाएंप्रिय कामिनी , सच कहा प्रिय मीना ने |आजकल बेटे -बेटी का विवाह होते ही माता- पिता अजीब चिंताओं से घिरे रहते हैं | बच्चों में बढ़ता अहम् भाव और साथ में संयम ना होने की प्रवृति से अनेक घर बसने से पहले उजड़ रहे हैं | ज्यादातर लोग बहु को अपने अधीन देखना चाहते हैं तो बेटी के लिए स्वछंदता की कामना करते हैं | बहू से समस्त कर्तव्यों की अपेक्षा तो बेटी के लिए किसी कर्तव्य के ना होने की चाह बनी रहती है | ये दोहरापन काफी हद तक परिवार टूटने का कारण है | बाकी और भी बहुत कारण हैं जिनसे दाम्पत्य जीवन तबाह हो रहे हैं | शहर तो शहर संस्कारों के अभाव में गाँव -देहात में भी इस तरह की घटनाएँ देखने सुनने में आ रही हैं | बहुत सही मुद्दा उठाया तुमने सखी |
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया प्रिय रेणू ,बिलकुल सही कहा तुमने ये दोहरापन और बच्चों के साथ-साथ अविभावकों में भी संयम की कमी घर टूटने का कारण बन रही,स्नेह सखी
हटाएंसवाल उठाती उठाती पोस्ट ...के लिए आपको बधाई बहुत मेहनत से तैयार की गई पोस्ट
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद संजय जी
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