शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

"पीला गुलाब "




   मैं बड़ी तन्मयता से लैपटॉप पर अपने काम में बीजी थी तभी, राज और सोनाली मेरे पास आकर खड़े हो गए। मैंने सर उठाये बिना ही सवाल किया-क्या बात है ? मम्मी बिज़ी हो क्या....कुछ खास नहीं, बोलो -मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा। दोनों के चेहरे पर हल्की मुस्कान के साथ  शर्म और  घबड़ाहट भी साफ़-साफ़ नजर आ रही थी । मम्मी..पहले आप आँखें बंद करों, राज आपको कुछ देना चाहता है - सोनाली ने धीरे से कहा। मैंने जैसे ही राज की तरफ देखा वो भागकर कमरे के बाहर चला गया। मैं सब समझ रही थी फिर भी आँखे बंद करते हुए बोली-लो कर लिया,अब बोलो। दोनों ने मेरी गोद में एक-एक "पीला गुलाब" रखा और भाग खड़े हुए।गुलाब को देखकर मैं मुस्कुरा दी,दिल चाहा कहूँ -" I knew it" . मगर, अनजान बनी बोली -अरे,फूल दे रहे हो या मार रहें हो इधर आओ दोनों। सोनाली पास आई, राज अब भी कमरे के बाहर से झाँक रहा था। मैंने कहा -आप  क्यूँ छुपे हो आप भी आओं। राज बेहद घबड़ाया हुआ था, दोनों पास आकर बैठ गए। मैंने दोनों के माथे पर प्यार किया और दोनों को गले लगाते हुए बोली-"बेवकूफों मैं तो बहुत पहले से जानती थी तुम दोनों को ही समझने में छह साल लग गए।" 

    राज मेरा हाथ पकड़ते हुए बोला -आज "प्रॉमिस-डे " पर मैं आपसे प्रॉमिस करता हूँ कि -मैं कभी भी आपको कोई शिकायत का मौका नहीं दूँगा.....कभी आपके विश्वास और भरोसे को नहीं तोडूँगा....ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा जिससे दोनों परिवारों के मान-मर्यादा को ठेस पहुंचे, मेरे दूसरे हाथ को पकड़ते हुए सोनाली ने भी उसके हाँ में हाँ मिलते हुए सर हिला दिया। दोनों की आँखे भरी हुई थी,दोनों ने मेरी गोद अपना सर छुपा लिया। मेरी भी आँख भर आई, दोनों का माथा सहलाते मैंने हुए कहा- "मैं जानती हूँ बेटा ,मुझे आप दोनों पर पूरा भरोसा है।" थोड़ी देर तक ख़ामोशी छाई रही फिर मैंने कहा -चलो,इसी बात पर पिज्जा पार्टी करते है,राज...फटाफट ऑडर करों,तीनों ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को सहमति दे दी। 

राज और सोनाली की दोस्ती छह साल पहले एक इंस्टिटूइट से शुरू हुई थी। पहली मुलाकात से ही दोनों में अच्छी दोस्ती हो गई थी। सोनाली जब भी उससे मिलकर आती तो  घंटों उसी की तारीफ किया करती। उस वक़्त सोनाली सत्तरह साल की थी और राज उससे छह महीने बड़ा था। मुझे आज भी वो दिन याद है जब मैं पहली बार राज से मिली थी। सोनाली से दोस्ती किये उसे एक महीना भी नहीं हुआ था कि अचानक एक दिन वो सोनाली के साथ  घर धमक आया था उसके साथ सोनाली का एक और दोस्त भी था। सोनाली बोली-माँ ये दोनों जबर्दस्ती घर आ गए है मैं तो लाना ही नहीं चाहती थी। फर्मलिटी करते हुए मैंने कहा-कोई बात नहीं  बेटा -ये भी तो आपका ही घर है...अब, घर आये को मैं क्या कहती। मेरी बात सुनते ही वो सोनाली को छेड़ता हुआ बोला -" सुना न, ये भी मेरा ही घर है।" मैंने उन्हें चाय-नास्ता कराया। रात के आठ बजे का वक़्त था मेरे पतिदेव ने फोर्मलिटी में कह दिया -रात का खाना-वाना खिलाकर भेजों बच्चों को,फिर क्या था दोनों डट गए बोले-हाँ अंकल, अब डिनर करके ही जाऊँगा। पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया -"अरे ये क्या मान-ना-मान मैं तेरा मेहमान "  पर पता नहीं क्यूँ राज को देखते ही मुझे  भी ऐसा ही लगा जैसे मैं उसे वर्षो से जानती हूँ और राज,वो तो दो घंटे के अंदर ही घर से लेकर किचन और यहाँ तक कि -डाइनिंग टेबल तक पर कब्ज़ा कर चूका था,वो मुझे खाना सर्व कर रहा था ,बिलकुल "कल हो ना हो "के शाहरुख़ खान की तरह। इससे पहले सोनाली का कोई लड़का दोस्त घर में इतनी देर कभी  नहीं रुका था ,ऐसा पहली बार हो रहा था। हम कुछ असहज थे पर राज ने कब हमें सहज कर दिया और कब वो हमारे दिल पर कब्जाकर लिया हमें पता ही नहीं चला। 

धीरे-धीरे इनकी दोस्ती बढ़ती चली गई और राज ने हमारे पुरे खानदान के दिलों में अपना स्थान बना लिया। मुझे दिख रहा था कि-इनकी दोस्ती सिर्फ दोस्ती नहीं है लेकिन "मेरी सोनाली" प्यार-मुहब्बत तो समझती ही नहीं थी। मेरी सोनाली को दोस्ती शब्द से ही इतना प्यार था कि वो हर एक को दोस्त बनाकर ही ज्यादा खुश रहती थी। कभी-कभी राज की बातों से ये स्पष्ट हो जाता कि-वो दोस्ती से आगे बढ़ रहा है। एक बार मैंने राज को टटोला भी था। उसने बड़े प्यार से जबाब दिया था -"मेरे चाहने से कुछ नहीं होता आंटी...अगर, मेरी फीलिंग वो जान जाएगी तो आप तो जानती ही है वो.....फिर मेरी दोस्त भी नहीं रहेंगी और मैं इतनी प्यारी दोस्त को खोना नहीं चाहता.....उसके साथ-साथ मैं आपको भी खोना नहीं चाहता।" राज सोनाली से भी ज्यादा मुझसे जुड़ गया था और मुझे भी वो अपने सगे बेटे सा प्यारा था। 

मगर,शायद उनकी दोस्ती को किसी की नज़र लग गई। उन दोनों में किसी बात को लेकर जबर्दस्त झगड़ा हो गया। मेरी सोनाली स्पष्टवादी है उससे कोई भी गलत बात बर्दास्त नहीं होती,अपने सिद्धांतों की इतनी पक्की है कि -उसके आगे वो प्यारा-से प्यारा दोस्त भी त्याग सकती है। जो की मुझे  भी पसंद है। मैंने सोनाली से कहा भी था "राज मुझे  बहुत प्रिय है" -उसने बड़े ही रूखे स्वर में कहा-"वो आपका बेटा रह सकता है मेरा दोस्त नहीं।" मैं समझती थी ये वक़्ती गुस्सा है। परिस्थिति ही कुछ ऐसी हो गई थी कि -उन दोनों को ही नहीं समझा सकती थी और दोस्ती टूट गई। सोनाली ने अपना दोस्त त्याग दिया मगर मुझसे अपना बेटा नहीं त्यागा गया। मैं जानती थी कि - दोनों ने ही गलतियाँ की है मगर वो गलती प्रतिकूल परिस्थितियों की वजह से हुई है। एक ना एक दिन ये ठीक हो जायेगा। राज दूसरे शहर चला गया मगर मैंने उससे कभी सम्पर्क नहीं तोड़ा। फोन से बराबर उसका हाल-चाल लेती रही। दोनों के दिलों में प्यार होते हुए भी कड़वाहट ज्यादा हावी था। मैंने भी वक़्त पर सब छोड़ दिया। 

शायद,नियति का खेल था ,चार साल बाद हम फिर मिलें।इस बीच मेरी सोनाली भी पहले से ज्यादा समझदार हो गई थी। रिश्तों में कहाँ और कैसे एडजेस्टमेंट करना है वो बाखूबी सीख चुकी थी और राज को भी अपनी गलतियों का अहसास हो गया था वो भी जिंदगी को समझने लगा था। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनी कि मज़बूरीवश ही उन्हें साथ समय गुजरने का मौका मिला। दोनों ने एक दूसरे की भावनाओं को समझा और उसको मान भी दिया और आज.... 

एक बार बातों-बातों में सोनाली ने मुझ से पूछा था -माँ अगर, मुझे कोई पसंद आ गया तो मैं आपको कैसे बताऊँगी....सीधे-सीधे बोलना तो मुश्किल होगा....तब,मैंने कहा था -" जिस दिन तुम्हे सच्चे दिल से किसी से प्यार हो जाये,तुम्हे लगने लगे कि -यही मेरा सच्चा साथी है उस दिन मुझे एक "पीला गुलाब" दे देना मैं समझ जाऊँगी। और ....मेरी सोनाली को सच्चा साथी मिल गया था और मुझे मेरा बेटा। आज मेरे बच्चों ने मुझे मान दिया, मेरी परवरिश को मान दिया। मुझे गर्व है अपनी परवरिश पर और उस माँ की परवरिश पर भी जिसका बेटा राज है।

" माँ कहाँ खोई हो,पिज्जा आ गया "सोनाली ने आवाज़ दी तो मैं बीते दिनों से बाहर आ गयी। मैंने हँसते हुए  डायलॉग चिपका दिया -" हमारी उम्र में पहली नज़र में ही पता चल जाता है कि लड़का-लड़की के बीच क्या चल रहा है "मगर,तुम आजकल के वेवकूफ बच्चे जिन्हे पेरेंट्स ने साथी चुनने की आज़ादी दे रखी है उन्हें बड़ी देर से समझ आ रहा है कि-"हमें क्या चाहिए"। माँअअ..कहते हुए सोनाली मुझसे लिपट गई,मैं भी-मैं भी.... कहता हुआ राज भी गले लग गया। 

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

"अश्रु गंगाजल "


 

आज ना जाने फिर क्यूँ आवाक हूँ.....अतीत और भविष्य के मध्य....वर्तमान में सतत दोलित....एक अबोध पेंडुलम की तरह.......संबंधों की डोर से बँधी.....मैं झूलती जा रही हूँ......तभी, आँखें कुछ आश्वस्त होती है.......शायद, आसमान की बुलंदियों को....छूने की मधुर कामना से......मगर, भावनाओं के अप्रत्यशित प्रहार से.....मैं चूर-चूर हो जाती हूँ....संबंधों की डोर टूट जाती है,

और तब मैं.....

    एक अनाम अतुल गहराईयों में......लुढ़कने लगती हूँ......आधारहीन  पत्थर की तरह.....तभी, भावनाओं से आहत मेरा शरीर........छपाक से किसी की आग़ोश में गिर पड़ता है.......जो शायद,मेरा ही इंतजार कर रहा था..... ना जाने कब से .......मैं कुछ कह नहीं सकती......वो इंतजार था या.....मुझ पर अनायास उमड़ा उसका दयाभाव......जिसने मुझे अपने दामन में संभाल लिया......मेरे गिरने से....... प्रतिक्रिया में उठी तरंगों की उफाने.......गर्जनघोष से नभ को ललकार उठी.......या शायद, उस प्रिय के प्रहार से व्यथित होकर.......मैं खुद हर्ष से पुलकित हो.....खिलखिला उठी थी.....एक मधुर हल्केपन का अहसास.....मेरा रोम-रोम रोमांचित हो रहा है.....

मगर ये क्या---- 

उस जल का विश्लेषण कर.......उस खारे नमकीन जल को चखकर......मैं पुनः आवाक हो जाती हूँ.....  मुझे विश्वास नहीं कि- वो जल है......अरे,यह तो मेरे प्रियतम का दिया हुआ.....पूर्व जन्म का प्रसाद है.......जो अश्रु बनकर उसकी आँखों  के कोर से......ना जाने कब से बह रहा है......और उस अश्रु गंगाजल के खारे झील में.....मैं डूबती चली गई .... .मेरे सारे जख्म भर चुके हैं..... उस अमृत का पान कर मैं निर्मल हो चुकी हूँ.......

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

"तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है "


 

 "नानी माँ, अगर मैं अपनी पसंद से शादी कर लुंगी तो क्या आप उसे अपना लेंगी " मनु ने नानी माँ को  गले लगाते हुए बड़े प्यार से पूछा। हाँ ,अपना ही लेगें और कर भी क्या सकते हैं .....आखिर रहना तो तुम्ही को है उसके साथ....इसीलिए अपनी पसंद से लाओ तो ही बेहतर है - नानी माँ ने भी उसी प्यार से जबाब दे दिया। 

     मैंने तुरंत एतराज किया -"ये क्या माँ,हमें तो लड़को से बात  करने की भी आजादी नहीं थी,बात क्या हमें तो किसी लड़के की तरफ देखना तक मना था और इसे अपनी पसंद से शादी करने की इजाजत मिल रही है "

     जमाना बदल गया है बेटा .....जमाना नहीं आप भी बदल गयी हो -मैंने तुनुकते हुए कहा। जमाने के साथ बदलना ही पड़ता है बेटा-माँ ठंडी साँस लेते हुए हँस पड़ी। 

मनु ने मुझे टोकते हुए कहा -" मम्मी पहले मुझे बात करने दो ....नानी माँ, मैं चाहती हूँ कि मैं जिससे भी शादी करूँ आप सब उसे मुझसे भी ज्यादा प्यार करें ....आप सब की ख़ुशी और रजामंदी  मेरे लिए बहुत मायने रखता है, इसलिए आप खुलकर बोले.... "

अरे,बेटा जी... मुझे तुम पर पूरा भरोसा है "तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है "

नानी माँ के बातों की गहराई को मनु ने समझा या नहीं  ये तो नहीं पता बस,  इतना सुनते ही वो ख़ुशी से नानी माँ से लिपट गई और मुझे बड़ी जोर की हँसी आ गई। क्यों हँस रही हो माँ -मनु ने हैरानी से पूछा।   मैंने कहा- कुछ नहीं बेटा। 

सच, हमारे बुजुर्ग कितने सयाने होते है बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ कह जाते हैं  बिना डोर के भी आपको कितने ही बंधनों में बाँध देते हैं । 

 "तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है " 

 ये कहकर माँ ने मनु को इजाजत भी दे दिया और हिदायत भी कि -  पसंद वही करना जो हमारे संस्कारों में  बँधा हो, हमारी संस्कारों से बाहर जाने की इजाजत नहीं है तुम्हें। इसीलिए तो, बुजुर्ग हमारे "मार्गदर्शक भी होते हैं और मार्गरक्षक भी।"

  

"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...