समाज के चंद लोगो ने अपने स्वार्थ में लिप्त होकर हम्रारे जीवन के उन सभी मुलभुत जरुरत की चीजों में अपनी लालच की मिलावट करते गए और पूरा समाज आँखें मूंदे इन मिलावट को बर्दास्त करता रहा।अनाज में रसायन ,फल और दूध में रसायन ,सब्जियों में रसायन मिलते रहे और हम देखते ही नहीं रहे बल्कि उसका सेवन भी बिना हिचके करते रहें। कर भी क्या सकते थे ?खाना पीना बंद तो नहीं कर सकते थे। भोजन ही नहीं बाजार में नकली दवाओं का भी सम्राज्य फैल गया मगर हम चुप रहें ,हमें क्या ? यहाँ तक कि -जीवित रहने के लिए सबसे जरुरी हवा और पानी जिसे प्रकृति ने हमें बिना मोल दिया था उसमे भी हमने जहर मिला दिया और आज मिलावट का रोना भी हम ही रो रहे हैं।आज .. हद तो तब हो गई, जब एक देश की बेवकूफी और लापरवाही ने सम्पूर्ण विश्व के वातावरण में चिंता ,डर ,खौफ और मौत की मिलावट कर दी हैं।क्या अब भी हम नहीं जागेंगे ? विज्ञान और वैज्ञानिकों ने खुद को भगवान ही समझ रखा हैं मगर -" प्रकृति कभी भी किसी को भी नहीं बख्शती.....हाँ ,जैसे जौ के साथ घुन भी पीसते हैं वैसे ही हम भी उनके गुनाहों में पीस रहें हैं ...
आज " मिलावट " का सम्राज्य अपनी सारी हदों को पार कर चुका हैं और अब तो हम इस मिलावट के आदि भी हो गए हैं। मिलावट करने की प्रवृति हम में इस कदर समाहित हो गई हैं कि हमें खुद ही आभास तक नहीं होता कि -हम कब - कब, कहाँ -कहाँ, कैसी- कैसी मिलावट कर जाते हैं। हमने अपने धर्म ग्रंथो में मिलावट की ,अपने संस्कारों में मिलावट की ,अपनी स्नेह और सहयोग में मिलावट की, यहां तक कि - आज ममता भी मिलावटी हो गई हैं। कितना गिरेंगे, कहाँ तक गिरेंगे ,कही रुकेंगे भी या नहीं ?
हमारी हर गलती हमे सबक भी सिखाती हैं मगर सबक सीखना कौन चाहता हैं ? जब पहली बार प्रगति के नाम पर हमारे खाध समाग्रियों में मिलावट शुरू की गई होगी, उस वक़्त सभी आँखें मूंदे ना बैठे होते तो आज भोजन -हवा -पानी शुद्ध होता। मगर किसी ने उन्हें रोकना टोकना तो छोड़े लालच में आकर खुद भी उसी मिलावट का हिस्सा बनते चले गए।हमें ये समझ ही नहीं आया कि -इसी भोजन -पानी का सेवन तो हम और हमारा परिवार भी तो करेंगा । काश ,जब अधोगिकरण के नाम पर शुरू हुई इस" मिलावट " के खिलाफ उसी वक़्त किसी ने भी आवाज़ उठाई होती तो आज हालात ऐसे नहीं होते। आज इन मिलावटी खाद्य समाग्रियों का सेवन करते करते जब हम आपने आप को रुग्ण कर बैठे हैं तो ऑर्गेनिक फ़ूड की तलाश में निकल रहें हैं।
जब पहली बार आधुनिकता के नाम पर हमारे संस्कारों का हनन होना शुरू हुआ ,काश किसी ने उसका विरोध कर उन्हें वही रोक दिया होता। आज जब पूरा विश्व इस कोरोना नामक महामारी के चपेट में आ चूका हैं तब हम सबको अपने उन्ही संस्कारों का महत्व समझ आने लगा हैं जिन्हे हम दकियानूसी बताते थे। आज हमें हमारी हर एक खूबी दिखाई दे रही हैं ,मगर कब तक ,ये जागरण भी तो क्षणिक ही हैं जैसे ही इस महामारी की हवा गुजर जाएगी हम फिर से सब भूल जाएंगे।ऐसे जागरण को हम "श्मसान जागरण " का नाम दे सकते हैं। श्मसान में जाने पर थोड़ी देर के लिए सभी को ये एहसास हो ही जाता हैं कि -ये जीवन नश्वर हैं ,इससे मोह नहीं होना चाहिए " मगर श्मसान से बाहर आते ही फिर वही मोह -माया और वही जीवनशैली बन जाती हैं।
हम इंसान हैं तो हम से गलती होती है और होती रहेगी ,हमारा स्वार्थी मन हमसे बार बार गलतियाँ करवाता ही रहेगा मगर समझदार वही हैं जो गलतियों से सबक सीखें और फिर उसे ना दोहराए। वो कहते हैं न -" जब जागों तभी सवेरा " जब तक नींद में थे कोई बात नहीं जब जाग गए तब तो विस्तर पर पड़े रहने की गलती ना करे। वैसे तो कोरोना नामक बिपदा प्रकृति जन्य नहीं इसे हम मानव ने ही बुलाया हैं मगर फिर भी प्रकृति माँ अपना फर्ज पूरा कर रही हैं वो इस बिपदा में भी हमें जगाना चाहती हैं, हमें सचेत करना चाहती हैं ,हमें रोकना चाहती हैं ,हम से मिन्नते कर रही हैं -" अब तो मेरे महत्व को समझो ,मेरा रूप और ना बिगड़ों, अपनी मुलभुत चीजों में जहर घोलना बंद करो। " अब तो हम अपने देश ,अपनी संस्कृति अपने संस्कारों को पहचाने उसे अहमियत देकर उसका मान करना सीखें। क्या हम अब भी नहीं जागेंगे ? अब भी देर नहीं हई हैं अपने भोजन -पानी - हवा में ,अपने विचार- व्यवहार- संस्कार में पश्चिमी सभय्ता की मिलावट करना बंद करें।
अगर मिलावट करनी ही हैं तो ऐसी मिलावट करे - " जैसे पानी में शक़्कर ,दूध में दही " ताकि उसका स्वरूप भी बदले तो भी वो फायदेमंद ही रहे। अब वक़्त आ गया हैं -" अब हमें मिलावट करनी ही होगी -प्रकृति में ऑक्सीजन की ,खाद्य समग्रियों में प्रकृतिक खाद की ,परिवार में संस्कार की ,समाज में सदभावना की ,देश में भाईचारे की और सबसे जरुरी प्रेम में परवाह की ,ताकि हम गर्व से कहें -" मिलावट अच्छी हैं "
वाह...बहुत सार्थक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार आपको
हटाएंवाह!सखी ,बहुत ही सुंदर व सटीक 👌
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया शुभा जी , सादर नमस्कार
हटाएंबहुत सटीक, सार्थक और सामयिक रचना। बधाई और आभार।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया विश्वमोहन जी , सादर नमस्कार
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२३ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सहृदय धन्यवाद श्वेता जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार
हटाएंसमसामयिक परिस्थितियों पर सार्थक ,चिन्तनपरक और सारगर्भित
जवाब देंहटाएंआलेख कामिनी जी ।
दिल से शुक्रिया मीना जी ,इस सार्थक समीक्षा के लिए दिल से आभार एवं सादर नमन आपको
हटाएंवाह! बहुत सुंदर लिखा प्रिय सखी कामिनी जी।बहुत सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति ।शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सुजाता जी ,इस सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार एवं सादर नमन आपको
हटाएंयही तो कामिनी जी
जवाब देंहटाएंहम किसी के विरोध करने का इंतजार करते है बल्कि इस के लिए हम खुद आगे आने के लिए तैयार नहीं होते।
हमे आगे आना चाहिए।
सुंदर लेखन
हटाएंसहृदय धन्यवाद रोहितास जी आपने सही कहा पहल खुद करनी होगी ,सामाजिक स्तर पर तो शायद हम थोड़े असमर्थ हो मगर शुरुआत घरेलु स्तर पर तो कर ही सकते। इस समीक्षा के लिए दिल से आभार ,सादर नमन
अगर मिलावट करनी ही हैं तो ऐसी मिलावट करे - " जैसे पानी में शक़्कर ,दूध में दही " ताकि उसका स्वरूप भी बदले तो भी वो फायदेमंद ही रहे। बहुत ही सुंदर विचार, कामिनी दी।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी ,इस सुंदर समीक्षा के लिए आभार आप का
हटाएंसच है की मिलावट अच्छी है ... पर क्या सच में लोग पूरी बात सुनेंगे ...
जवाब देंहटाएंमिलावट से आगे नहीं जाता ... मानव लालच की अंधी दौड़ में है ... ये तो कई बार प्राकृति अपना र्रंग दिखाती है तो कुछ डॉ रुक के सोचता है ... पर फिर भूल जाता है ...
सहृदय धन्यवाद दिगंबर जी , आपने बिलकुल सही कहा लालच में अंधे लोगो के वजह से आज इस हालात में हम पहुंचे हैं ,सच हैं कोई नहीं सुनेगा ,खुद को सुना समझा ले हम यही काफी हैं ,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद ,सादर नमन
हटाएंसुंदर विचार, सार्थक अभिव्यक्ति व सटीक
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद जोया जी ,आभार व्यक्त करने में देरी हुई इसके लिए क्षमा चाहती हूँ ,सादर नमन
हटाएं-प्रकृति में ऑक्सीजन की ,खाद्य समग्रियों में प्रकृतिक खाद की ,परिवार में संस्कार की ,समाज में सदभावना की ,देश में भाईचारे की और सबसे जरुरी प्रेम में परवाह की ,ताकि हम गर्व से कहें -" मिलावट अच्छी हैं " बहुत सुंदर विचार है प्रिय कामिनी | सचमुच ये मिलावट बहुत अच्छी होगी यदि इसे कोई सद्भावनाओं के साथ करे | हार्दिक स्नेह और शुभकामनाएं सखी |
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी ,आभार व्यक्त करने में देरी हुई इसके लिए क्षमा चाहती हूँ ,सादर नमन
हटाएंबहुत ही बेहतरीन विश्लेषण सोचने पर विवश कर दिया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद श्रीकांत जी ,मेरे ब्लॉग पर स्वागत हैं आपका ,मेरे विचार आपके दिल तक पहुंची ये जानकर आपार हर्ष हुआ ,आभार व्यक्त करने में देरी हुई इसके लिए क्षमा चाहती हूँ ,सादर नमन
हटाएंलेख को पुनः पढ़ना भी उतना ही अच्छा लगा जितना पहले पढ़ कर अति सुन्दर…।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया मीना जी,सादर
हटाएंताकि हम गर्व से कहें -" मिलावट अच्छी हैं "
जवाब देंहटाएंअति महत्वपूर्ण, विषय पर ज़रूरी और सार्थक आलेख ।
बहुत बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी,सादर नमन
हटाएंप्रेरक तथ्य समेटे सार्थक चिंतन देता विचारोत्तेजक लेख कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव।
रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।
सहृदय धन्यवाद कुसुम जी,सादर नमन
हटाएंअब हमें मिलावट करनी ही होगी -प्रकृति में ऑक्सीजन की ,खाद्य समग्रियों में प्रकृतिक खाद की ,परिवार में संस्कार की ,समाज में सदभावना की ,देश में भाईचारे की और सबसे जरुरी प्रेम में परवाह की ,ताकि हम गर्व से कहें -" मिलावट अच्छी हैं "
जवाब देंहटाएंकाश ऐसी मिलावट हो...
बहुत सटीक चिंतनपरक एवं विचारोत्तेजक लेख ।
होली पर्व की अनंत शुभकामनाएं आपको ।
सही कह रही है,काश ये मिलावट करने की आदत पड़ जाती लोगो में। सहृदय धन्यवाद सुधा जी,सादर नमन
हटाएंअब हमें मिलावट करनी ही होगी -प्रकृति में ऑक्सीजन की ,खाद्य समग्रियों में प्रकृतिक खाद की ,परिवार में संस्कार की ,समाज में सदभावना की ,देश में भाईचारे की और सबसे जरुरी प्रेम में परवाह की ,ताकि हम गर्व से कहें -" मिलावट अच्छी हैं "
जवाब देंहटाएंबढ़िया संदेश देती रचना👌👌