मन ही देवता, मन ही ईश्वर
मन से बड़ा ना कोए
मन उजियारा जब जब फैले
जग उजियारा होये
और " मानवता " यानि " मानव की मूल प्रवृति " प्राणी मात्र से प्रेम ,दया- करुणा,परोपकार, परस्पर सहयोगिता ही मानवता हैं और विश्व में प्रेम, शांति, व संतुलन के साथ-साथ मनुष्य जन्म को सार्थक करने के लिए मनुष्य में इन मानवीय गुणों का होना अति आवश्यक है। " जिस मन में परमात्मा का वास हो वहाँ मानवता का वास स्वतः ही हो जाता हैं।" मानवता में ही सज्जानता निहित हैं। मानव होने के नाते जब तक हम दूसरो के दु:ख-दर्द में साथ नहीं निभाएंगे तब तक ये जीवन सार्थक नहीं हैं और हम मानव कहलाने के योग्य भी नहीं हैं।वर्तमान में हमने मानवता को भुलाकर अपने आप को जाति-धर्म, उच्च -नीच ,गरीब-अमीर जैसे कई बंधनों में बांध लिया हैं। हमारे अति पाने की लालसा और स्वार्थ में लिप्त हमारी बुद्धि ने हमारे मन को विकार ग्रस्त कर दिया हैं.और हमने इन सभी मानवीय गुणों से खुद को रिक्त कर लिया हैं।
मन ही देवता, मन ही ईश्वर
मन से बड़ा ना कोए
मन उजियारा जब जब फैले
जग उजियारा होये
और " मानवता " यानि " मानव की मूल प्रवृति " प्राणी मात्र से प्रेम ,दया- करुणा,परोपकार, परस्पर सहयोगिता ही मानवता हैं और विश्व में प्रेम, शांति, व संतुलन के साथ-साथ मनुष्य जन्म को सार्थक करने के लिए मनुष्य में इन मानवीय गुणों का होना अति आवश्यक है। " जिस मन में परमात्मा का वास हो वहाँ मानवता का वास स्वतः ही हो जाता हैं।" मानवता में ही सज्जानता निहित हैं। मानव होने के नाते जब तक हम दूसरो के दु:ख-दर्द में साथ नहीं निभाएंगे तब तक ये जीवन सार्थक नहीं हैं और हम मानव कहलाने के योग्य भी नहीं हैं।वर्तमान में हमने मानवता को भुलाकर अपने आप को जाति-धर्म, उच्च -नीच ,गरीब-अमीर जैसे कई बंधनों में बांध लिया हैं। हमारे अति पाने की लालसा और स्वार्थ में लिप्त हमारी बुद्धि ने हमारे मन को विकार ग्रस्त कर दिया हैं.और हमने इन सभी मानवीय गुणों से खुद को रिक्त कर लिया हैं।
और आज मानवता खोने के कारण ही पूरा विश्व त्राहिमाम कर रहा हैं। एक देश की लापरवाही ने पूरी मानव जाति को संकट में डाल रखा हैं। कोई भी अविष्कार यदि प्रकृति , मानव और मानवता के भले के लिए हो तो हमारी उपलब्धि हैं मगर उनका ये अविष्कार मानवता के हनन के लिए था। मगर कहते हैं न कि -" प्रत्येक इफेक्ट का एक साइड इफेक्ट भी होता हैं। " इस भयावह महामारी में डॉक्टर ,नर्स ,पुलिसकर्मी और सफाईकर्मियों की एक एक बलिदान की घटना जो सुनने को मिल रहे है तो यकीन हो रहा हैं कि -" आज भी मानवता जिन्दा हैं "बिलकुल मृत नहीं हैं बस आवश्यकता हैं उसे फिर से सींचने की।और ये वही वक़्त हैं जब हमें प्रकृति ने डराकर, सचेतकर मानवता को सीचने का अवसर दिया हैं ,वो कह रही हैं -" अब भी वक़्त हैं सम्भल जाओं ,वरना मैं तुम्हारा समूल नाश करने से नहीं चुकूँगी।
" कोरोना " हमसे कह रही हैं -करो- ना ( नहीं करो ) यानी
प्रकृति का हनन नहीं करों ,
संस्कृति -सभ्यता का हनन नहीं करों
बेजुबानो का हनन नहीं करों
आवश्यकता से अधिक के लालच में आकर परिवार का हनन नहीं करों
मानवता का हनन नहीं करो
इस धरा से प्रेम ,विश्वास ,भाईचारा का हनन नहीं करो
कोरोना कह रही हैं ---एक बार सोचो --मानव से मानव का कितना गहरा संबंध हैं --एक मानव ने पुरे विश्व में मुझे फैला दिया ---सिर्फ छूकर ---मैं फैली हूँ सिर्फ छूने से। ये बता रही हैं मानव का मानव के लिए क्या अहमियत हैं। हम लाख खुद को परिवार से समाज से अलग कर ले लेकिन --जैसे पानी पर लकीरे नहीं खींची जा सकती---वैसे ही मानव से मानव का दूर होना सम्भव नहीं हैं---लकीरे खींचकर देश अलग हो जाते हैं मानव नहीं। अपने अच्छे बुरे कर्मो से जब एक देश का मानव दूसरे देश को भी चपेट में ले सकता हैं तो हमारे कर्मो का हमारे परिवार, हमारे समाज और हमारे देश पर कितना गहरा असर होता होगा । " कोरोना " समझा रही हैं --मानव से मानव की श्रृंखला सिर्फ स्पर्श मात्र से जब रोग फैला सकती हैं तो क्या प्रेम ,अपनत्व ,भाईचारा नहीं फैला सकती। मगर आज मानवता की सबसे बड़ी सेवा यही होगी कि -" हम खुद को भी इस महामारी से सुरक्षित रखे और अपने परिवार ,समाज और देश को भी। "
और आज मानवता खोने के कारण ही पूरा विश्व त्राहिमाम कर रहा हैं। एक देश की लापरवाही ने पूरी मानव जाति को संकट में डाल रखा हैं। कोई भी अविष्कार यदि प्रकृति , मानव और मानवता के भले के लिए हो तो हमारी उपलब्धि हैं मगर उनका ये अविष्कार मानवता के हनन के लिए था। मगर कहते हैं न कि -" प्रत्येक इफेक्ट का एक साइड इफेक्ट भी होता हैं। " इस भयावह महामारी में डॉक्टर ,नर्स ,पुलिसकर्मी और सफाईकर्मियों की एक एक बलिदान की घटना जो सुनने को मिल रहे है तो यकीन हो रहा हैं कि -" आज भी मानवता जिन्दा हैं "बिलकुल मृत नहीं हैं बस आवश्यकता हैं उसे फिर से सींचने की।और ये वही वक़्त हैं जब हमें प्रकृति ने डराकर, सचेतकर मानवता को सीचने का अवसर दिया हैं ,वो कह रही हैं -" अब भी वक़्त हैं सम्भल जाओं ,वरना मैं तुम्हारा समूल नाश करने से नहीं चुकूँगी।
" कोरोना " हमसे कह रही हैं -करो- ना ( नहीं करो ) यानी
प्रकृति का हनन नहीं करों ,
संस्कृति -सभ्यता का हनन नहीं करों
बेजुबानो का हनन नहीं करों
आवश्यकता से अधिक के लालच में आकर परिवार का हनन नहीं करों
मानवता का हनन नहीं करो
इस धरा से प्रेम ,विश्वास ,भाईचारा का हनन नहीं करो
कोरोना कह रही हैं ---एक बार सोचो --मानव से मानव का कितना गहरा संबंध हैं --एक मानव ने पुरे विश्व में मुझे फैला दिया ---सिर्फ छूकर ---मैं फैली हूँ सिर्फ छूने से। ये बता रही हैं मानव का मानव के लिए क्या अहमियत हैं। हम लाख खुद को परिवार से समाज से अलग कर ले लेकिन --जैसे पानी पर लकीरे नहीं खींची जा सकती---वैसे ही मानव से मानव का दूर होना सम्भव नहीं हैं---लकीरे खींचकर देश अलग हो जाते हैं मानव नहीं। अपने अच्छे बुरे कर्मो से जब एक देश का मानव दूसरे देश को भी चपेट में ले सकता हैं तो हमारे कर्मो का हमारे परिवार, हमारे समाज और हमारे देश पर कितना गहरा असर होता होगा । " कोरोना " समझा रही हैं --मानव से मानव की श्रृंखला सिर्फ स्पर्श मात्र से जब रोग फैला सकती हैं तो क्या प्रेम ,अपनत्व ,भाईचारा नहीं फैला सकती। मगर आज मानवता की सबसे बड़ी सेवा यही होगी कि -" हम खुद को भी इस महामारी से सुरक्षित रखे और अपने परिवार ,समाज और देश को भी। "
बहुत ही सुंदर और सटीक विश्लेषण
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद गगन जी ,सादर नमस्कार
हटाएंसटीक और बेहतरीन चिन्तन पर आधारित लाजवाब लेख । सुन्दर और सारगर्भित लेख के लिए आभार कामिनी जी ।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया मीना जी ,इस सुंदर समीक्षा के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंbahut hi satik vishleshan aapane bilkul sahi Kaha
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार
हटाएंएक विपत्ति किस तरह से जीवन के सच को बता देती है, इसे आपने बहुत ही खुबसूरती से बता दिया कामिनी जी
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया अलखनन्दा जी ,इस सारगर्भित समीक्षा के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंप्रिय कामिनी , मन ही तो विचारों का घर है | इसमें मानवता का भाव व्याप्त हो तो ये समस्त संसार के लिए कल्याणकारी सिद्ध होता है | तुमने सच लिखा आज वैश्विक विपदा की घड़ी में अपना और अपनों के हितों को भुलाकर जो कर्मयौद्धा , लोकहित और देशहित डटे हैं , वे मानवता की जीती जागती मिसाल हैं | ये डॉक्टर . सफाईकर्मी , सैनिक और एनी दायित्वों का निर्वाह कर रहे कर्मवीर - हजारों सलाम के पात्र हैं | हम सबको भी इसी सद्भावना के साथ आगे बढना होगा | प्रेरक लेख के लिए साधुवाद |
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सखी ,इस सारगर्भित और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार सखी
हटाएंसुंदर संदेश।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,सादर नमस्कार
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(२९-०३-२०२०) को शब्द-सृजन-१४"मानवता "( चर्चाअंक - ३६५५) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सहृदय धन्यवाद अनीता जी ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार सादर
हटाएंवाह बेहतरीन करोना किसी भी तरह की अच्छाई को अथवा मानवता को हमन ना करने कह रही है। सच मानवता के जिंदगी रहने पर सब जिंदगी रहेंगे।सुंदर प्रस्तुति सखी।नमन।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सुजाता जी ,इस सुंदर समीक्षा के लिए आभार ,सादर नमन
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमन
हटाएंआज भी मानवता जिन्दा हैं "बिलकुल मृत नहीं हैं बस आवश्यकता हैं उसे फिर से सींचने की।
जवाब देंहटाएंमानवता जिंदा है तभी तो सृष्टि है इसका अस्तित्व बना हुआ है
बहुत सुन्दर सार्थक एवं प्रेक लेख हेतु बधाई एवं साधुवाद।
दिल से धन्यवाद सुधा जी ,इस सुंदर समीक्षा के लिए आभार ,सादर नमन
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