बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

वेलेंटाइनस डे -"प्यार का दिन "

     

       " वेलेंटाइनस डे"एक ऐसा शब्द...एक ऐसा दिवस...जो पश्चिमी सभ्यता से आया और पुरे विश्व के दिलों पर राज करने लगा। कुछ लोग कहते हैं कि-हर दिन प्यार का होता है तो फिर कोई खास दिन ही क्यों ?बात तो सही है लेकिन याद कीजिये आपने अपने किसी भी प्यार के रिश्ते में आखिरी बार कब आपने प्यार का इजहार किया था। शायद याद भी नहीं हो।वैसे भी आज कल हर रिश्ते में प्यार का बेहद आकाल पड़ा है वैसे मे कोई एक खास दिन तो होना ही चाहिए जब आप उस रिश्ते पर अपना प्यार जाहिर कर सकें,उनके लिए अपना एक दिन समर्पित कर सकें ,तभी तो मदर डे ,फादर डे ,फ्रेंडशिप डे ,वगैरह वगैरह बने हैं। सही भी है आज के समय में इसकी आवश्यकता भी बहुत है। पश्चिम से आयी हर हवा खराब नहीं होती....कुछ अच्छी भी होती है..परन्तु हम उन्हें अच्छी तरह समझे बिना आधा-अधूरा अपनाते हैं....वो खराब है। उन्ही में से एक ये "प्यार का दिन "है। ये पावन दिन सिर्फ प्रेमी-प्रेमिका के लिए नहीं बना था बल्कि उस हर रिश्ते के लिए बना था जिनसे आप दिल से जुड़े होते हैं।परन्तु आज ये पवन दिन उन्माद में डूबे ,फूहड़ तरिके से मनमानी करते युवक-युवतियों का दिन बन गया है.शायद इसी वजह से कुछ राजनितिक दल और समाजिक संस्था इस दिन का विरोध भी करते हैं।

       आज की युवा पीढ़ी क्या प्यार का असली मतलब कभी समझ पायेगी? प्यार जैसे पावन पवित्र भावना का मतलब ही इन्होने  बदल डाला है। (कुछ अपवाद भी है तभी तो धरती कायम है )चलिए, आज मैं आप को प्यार की एक ऐसी दस्ता सुनती हूँ जो अपने आप में अनोखी और प्यार को पूर्ण रूप से परिभाषित करती हुई है। बात उन दिनों की है जब मैं दसवीं कक्षा में थी....15 -16 साल की उम्र शोख.....चंचल और मस्ती से भरपूर....शायद ही कोई ऐसा हो जिसे इस उम्र में प्यार की अनुभूति ना हुई हो। मेरी बहुत सी सहेलियां थी लेकिन सब से खास थी " कुमुद " हम दोनों औरो से थोड़े अलग थे...हम औरो की तरह प्रेम कहानियां सुनने और बुनने में नहीं रहते....जब लड़कियां इस तरह की बातें करती तो हम अलग हो जाया करते.....हमें उन बातो में कोई दिलचस्पी नहीं होती।हम थोड़ी बहुत शैतानियां करते थे लेकिन वो अलग तरह की होती थी। मेरी एक और सहेली थी, शबाना वो थोड़ी ज्यादा ही शोख थी..उसके लड़के मित्र भी बहुत थे...वो हर वक़्त उन्ही बातों में लगी रहती थी। 

      एक दिन की बात है शबाना को किसी लड़के ने एक पत्र दिया था जिसे लेकर वो सारी लड़कियों को दिखाती और इतराती घूम रही थी। मैं और कुमुद जैसे ही क्लास में आये वो इतराती हुई हमारे पास भी आ गई। कुमुद को उस दिन शरारत सूझी वो शबाना के हाथ से पत्र लेकर पढ़ने लगी। उसमे लिखा था " मुझे तुमसे नहीं तुम्हारे तहरीर से प्यार है।" कुमुद ने उसे छेड़ते हुए कहा -ओहो !! उसे तो तुम्हारे तहरीर से प्यार है तुझसे तो है ही नहीं....फिर इतना क्यों इतरा रही हो।" मुझसे नहीं तो क्या तुमसे प्यार है....कहो तो तुम्हारी बात चलाऊँ -शबाना बहुत ही शरारती और बड़बोली थी वो उल्टा कुमुद को ही छेड़ती  हुई बोली। उसकी बातों से जैसे कुमुद को करंट लग गया, वो पत्र फेक दी। लेकिन शबाना तो कुमुद के पीछे ही पड़ गई -अरे! सुन तो एहसान बहुत स्मार्ट है...बिलकुल तुम्हारे पसंदीदा हीरो की तरह...मैं तुम्हारी दोस्ती करा दूँगी..सच्ची- शबाना ने उसे छेड़ना शुरू कर दिया। कुमुद झल्लाती हुई मेरे पास आ कर बैठ गई। वो थोड़ी घबराई और पसीने में भीगी हुई थी। मैंने पूछा- क्या हुआ कुमुद ?कुछ नहीं -ये कह वो अपने किताब में लग गई। 

     शबाना जानती थी कि कुमुद को लड़को के बारे में बातें करना बिलकुल पसंद नहीं है इसलिए वो कभी भी उससे इस तरह की बात नहीं करती थी।लेकिन एहसान का नाम सुनते ही कुमुद की प्रतिक्रिया अलग होती...वो थोड़ी घबरा सी जाती...उसके चेहरे का रंग ही बदल जाता। शबाना उसकी ये कमजोरी पकड़ ली थी और हर वक्त उसे एहसान का नाम ले छेड़ती रहती। एक दिन कुमुद रो पड़ी और बोली -प्लीज,शबाना मेरे आगे उसका नाम ना लिया करो....मुझे घबराहट सी होती है।  शबाना दिल की बहुत अच्छी थी कुमुद को रोते देख उसे थोड़ी फिक्र हुई। कुमुद को चुप कराते हुए उसने पूछा-  क्या हुआ कुमुद तू उसे जानती है...वो बुरा लड़का है क्या ? कुमुद रोती  हुई बोली - नही....मैं नहीं जानती उसे और...जानना भी नहीं चाहती....उसका नाम सुनते ही मुझे घबराहट सी होती है...तुम तो जानती हो....मुझे ये प्यार-मुहब्बत की बातें अच्छी नहीं लगती....फिर भी पता नहीं उसके नाम में ऐसा क्या है ....जिस दिन से उसका नाम सुनी हूँ....मैं उससे अनजाने डोर से बंधती जा रही हूँ....हर वक्त मेरे दिलों- दिमाग में उसका ही नाम गूँजता रहता है....तुम्हें पता है मैं एक महीने से सोई नहीं हूँ...वो हर वक्त परछाई की तरह मेरे इर्द गिर्द रहता है....जब तुम उसका नाम लेती हो तो मुझे बहुत घबराहट होती है....डर लगता है...पर जब तुम उसका नाम नहीं लेती तो मुझे अच्छा नहीं लगता....मैं हर वक़्त तुमसे उसका जिक्र सुनना चाहती हूँ....जब तुम उसका नाम मेरे नाम से जोड़ती हो तो मुझे असीम खुशी  मिलती है....लेकिन मुझे डर भी लगता है...मुझे समझ नहीं आ रहा है मैं क्या करूँ? कुमुद एक साँस में बोली जा रही थी और रोये भी जा रही थी। मैं कुमुद को संभालती हुई उसे चुप करने लगी।अब से पहले हमने कुमुद की ऐसी हालत नहीं देखी थी सो हम दोनों थोड़े घबरा गये। मैंने शबाना को समझाया कि अब वो कभी कुमुद को ना छेड़े। मैं समझ चुकी थी प्यार के नाम से भागने वाली कुमुद को प्यार हो गया था। आप लाख छुपाना चाहो प्यार जिसे ढूँढना चाहता है ढूँढ ही लेता है, कोई बस नहीं चलता। 

     बात आई गई हो गई लेकिन हर वक्त चहकती रहने वाली कुमुद मुरझा सी गई थी...वो खोई-खोई सी रहती। कुछ दिनों बाद एक दिन लंच ब्रेक में जब सारी लड़कियां क्लास से बाहर थी सिर्फ मैं और कुमुद क्लास में थे तभी शबाना दौड़ती हुई आई और कुमुद का हाथ पकड़ खींचती हुई बोली -बाहर चल तुझे कुछ दिखाना है...कुमुद उसके साथ चलते-चलते पूछी -बता तो सही क्या है ? अरे ,एहसान स्कुल में आया है सारी लड़कियां उससे ही देखने गई है ,चल मैं तुझे मिलवाती हूँ -शबाना बोली। कुमुद झट अपना हाथ छुड़ाते हुये बोली -ये क्या पागलपन है ,मुझे नहीं मिलना उससे। शबाना लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोली -चल न ,वो तुझे ही देखने आया है। मुझे देखने...क्या मतलब है तुम्हारा...क्या किया है तुमने शबाना -कुमुद झल्लाई। शबाना बोली -उसका नाम सुनते ही तुम्हारी जो दशा हुई न, ठीक वैसे ही तुम्हारा नाम सुन उसका हाल हुआ,तुम्हारे बारे में मैंने जब उसे बताया तो वो तुमसे मिलने की जिद करने लगा और यहाँ आ गया। कुमुद शबाना पर टूट पड़ी -आज के बाद तुम मुझसे बात नहीं करना...दूर रहना  मुझसे...समझी। 

       लेकिन पता नहीं नियति को क्या मंजूर था ,वो कुमुद और एहसान को लेकर कौन सा ताना -बाना बुन रही थी। कुछ दिनों बाद मेरे और कुमुद के पापा ने एक कोचिंग सेंटर में हमारा एडमिशन करवाया, लेकिन कुमुद को शबाना ने बता दिया कि उसी सेंटर में एहसान भी आता है। कुमुद ने अपने पापा को समझाने की बहुत कोशिश की कि मैं वहाँ नहीं जाऊँगी ,पर कारण क्या बताती सो पापा नहीं माने क्योंकि वो शहर का सबसे अच्छा कोचिंग सेंटर था। जिस दिन क्लास का पहला दिन था, मैं कुमुद के घर उसे लेने गई तो देख रही हूँ वो बुखार में तप रही है। उसकी माँ ने कहा -पता नहीं अचानक इसे क्या हुआ अभी-अभी तो ठीक थी जैसे ही ट्यूशन के लिए तैयार हुई अचानक से कपकपी होकर बुखार आ गया। उसकी माँ के जाने के बाद -कुमुद मुझसे रोती हुई बोली -मुझे बहुत डर लग रहा है ....पता नहीं क्या होने वाला है....ऐसा लगता है जैसे कुछ ठीक नहीं होने वाला....मैं अपने माँ-पापा से बहुत प्यार करती हूँ....उसे बिना देखे तो मैं पूरी तरह से उसके गिरफ्त में हूँ....उसे देखने के बाद अगर मैं खुद को ना संभाल पाई तो क्या होगा....कहते-कहते कुमुद मेरे गोद में सर छुपा सिसकियाँ लेने लगी। 

       आख़िरकार वही हुआ जिसका कुमुद को डर था....प्रेमाग्नि तो दोनों तरफ लगी थी....जैसे ही नज़रे मिली वो और प्रबल हो गई....निगाहों का मिलना तो आग में घी का काम कर गया और प्रेम-ज्वाला पूरी तरह भड़क उठी और दो मासूम दिल उसमे झुलसने लगे। कुमुद के नजर और जुबान पर तो शर्म और इज्जत के पहरे पड़े थे इसलिए वो कभी भी  नजर उठाकर उसे ठीक से नहीं देख पाई लेकिन एहसान  तो लड़का था वो अपलक कुमुद को निहारता  रहता। यही नहीं वो कुमुद के घर -गलियों के चक्कर भी लगाने लगा....वो जहाँ कही जाती उसकी राह भी उसी ओर मूड जाती। इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते, उनके भी चर्चे होने लगे।लेकिन कुमुद से कुछ कहने की एहसान की  हिम्मत नहीं हुई..... उसने बड़ी चालाकी से मुझे बहन बना अपनी बातों में फसा लिया और एक दिन मुझे कुमुद की ही कसम देकर कुमुद तक अपना प्रेमपत्र पहुँचाने को राजी कर लिया। एहसान की तड़प देख मैं भी मना नहीं  कर पाई। वो दिन था शरदीय नवरात्रि का पहला दिन। मैंने जब कुमुद को पत्र दिया तो वो एक पल को खुश होती हुई पत्र अपने हाथों में ले लिया लेकिन अगले ही पल उसे ऐसे फेंकी जैसे कि उसे तेज झटका लगा हो। वो मुझे डांटने लगी। मैंने कहा -मैं मजबूर थी उसने मुझे तुम्हारी ही कसम दे रखी थी...तुम एक बार पढ़ लो जबाब नहीं देना चाहती तो मत देना....मैं उससे समझा दूँगी। 

       कुमुद का दिल भी तो मजबूर था ही उसने पत्र ले लिया। कोई जबाब तो नहीं दिया उसने लेकिन प्रेम की ये अनदेखी अग्नि उसे फिर जलने लगी और बुखार का रूप धारण कर लिए चार पांच दिन वो बुखार में जलती रही। उधर एहसान को मैंने कह दिया कि- उसे तुममे कोई दिलचस्पी नहीं....वो तुम्हारा पत्र मेरे कहने पर ले तो ली है पर जबाब का इंतजार नहीं करना...उसे बुखार भी होगया है इसलिए वो क्लास भी नहीं आयेगी। लेकिन एहसान मानने  को राजी नहीं था कि कुमुद को उससे कोई लगाव नहीं। वो फिर मुझे मजबूर करने लगा कि -मेरा एक पत्र और पंहुचा दो....अगर वो इस बार भी जबाब नहीं दी तो मैं कभी कुछ नहीं कहूँगा। मैंने सोचा ,चलो कर देती हूँ शायद ये कहानी यही खत्म हो जाये। दूसरा पत्र देखते ही कुमुद टूट सी गई ,उसके सब्र ने बांध तोड़ ही दिए क्योंकि दूसरे पत्र में एहसान ने ऐसी बात ही लिखी थी कि वो मजबूर हो गई। उसमे लिखा था -"मैं नहीं जनता था कि मेरा पत्र पढ़कर तुमको इतना दुःख होगा कि तुम बीमार ही हो जाओगी....मुझे माफ कर दो....मैं दुआ करुँगा, तुम जल्दी ठीक हो जाओगी....अगर ठीक हो जाना तो सिर्फ मेरा दिल रखने के लिए रामनवमी के मेले में जरूर आना...मैं एक बार तुम्हे जीभर के देखना चाहता हूँ बस,इसके बाद तुम्हे कभी परेशान नहीं करूँगा "

      कुमुद ने जबाब में लिखा "मैं तो एक ख्वाब हूँ इस ख्वाब से तू प्यार न कर 
                                              प्यार हो जाये तो ,इस प्यार का इजहार न कर 
                                               शाक से टूट के गुंचे  भी  कभी  खिलते  हैं  
                                               रात और दिन भी जमाने में कभी मिलते हैं 
                                               छोड़ दे जाने दे तकदीर से तकरार न कर "

       लिखने को तो कुमुद ने लिख दिया पर खुद को उसकी ख्वाहिश पूरी करने से नहीं रोक पाई। वो रामनवमी का दिन मैं आज भी नहीं भूलती। कुमुद कभी मेले वगैरह में नहीं जाती थी लेकिन, उस दिन बुखार से कमजोर होने के वावजूद वो माँ से घूमने जाने को बोली। उस दिन कुमुद ने मुझे अपने घर पर ही रोक लिया था,मैं कुमुद और उसका पूरा परिवार, हम घूमने गये। जब हम माता रानी के मंदिर में पहुँचे तो देखे कि मंदिर की दूसरी तरह सड़क के उस पार एहसान आँखे बिछाये अपने प्यार का इंतजार  कर रहा था, कुमुद को देखते ही उसके चेहरे पर ऐसी खुशी खिली जैसे उसे दोनों जहान मिल गए हो। सड़क के उस पार एहसान और इस पार माता के दरबार में खड़ी कुमुद। दोनों अपलक एक दूसरे को देखे जा रहे थे....दोनों की आँखे नम थी कुमुद के आँखो से तो प्यार मोती बन बरस भी रहे थे और मैं इस अनोखी प्रेम मिलन की साक्षी बनी उन दोनों के प्यार में निखरे रूप को निहारे जा रही थी। मैंने कुमुद से कहा -" जी लो आज के इस दिन को पता नहीं फिर ये पल जीवन में कभी मिले न मिले। "कुमुद ने भी "हां "में सर हिला दिया। उस रात हम शहर हर उस पंडाल में घूमें जहाँ माता रानी स्थापित थी और हमारे साथ-साथ कभी आगे कभी पीछे ,कभी सड़क की दूसरी तरफ चलते हुए एहसान और उसके दोस्त। उन दोनों का जिस्म भले ही अलग-अलग चल रहा था लेकिन आँखों ने एक दूसरे का साथ पल भर को भी नहीं छोड़ा। 

      शाम के सात बजे से रात के ग्यारह बजे तक सफर चला। सफर था कहीं न कहीं खत्म होना था हुआ ,घर वापस आये लेकिन कुमुद का तो सिर्फ शरीर वापस लौटा उसकी रूह नहीं ,वो तो एहसान का साथ छोड़ने को राजी ही नहीं थी सो वो एहसान की आँखों में ही कैद हो उसके साथ चली गई और शायद नहीं यकीनन वो लौट के कभी नहीं आई। एक ऐसी प्रेम  कहानी जो एक दूसरे को बिना देखे शुरू हुई ,जिसमे बिना मिले ही नजरों से ही सारी बातें  होती रही और बिना छुये ही उनका मिलन भी होता रहा ,वो उनकी उम्र के साथ बढ़ता गया और सालो चला। वक्त ने कई करवट बदले, पढाई के लिए एहसान को दूसरे शहर भी जाना पडा ,कई-कई महीने एक दूसरे को देख भी नहीं पाते। हाँ,किसी न किसी माध्यम से छह महीने या साल में खतों का आदान-प्रदान होता रहता था। वैसे उनके प्यार को एक दूसरे के सुख-दुःख को जानने के लिए कभी किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं थी। उनकी हर सांस एक दूसरे की आहट को पहचानती थी। कई बार मैं दंग रह जाती जब कुमुद बिना पीछे देखे कहती - "पीछे देखो एहसान आ रहा है। "

       एक बार की बात है -मैं कुमुद के घर गई तो देखी कुमुद बहुत बीमार है। उसकी माँ ने कहा - कई डॉक्टर देख गये कुछ समझ ही नहीं आ रहा इसे हुआ क्या है...बिस्तर से हिल ही नहीं पा रही है...इसके पैर बेजान से हुए है...कह रही है दाहिना पैर के घुटने में बहुत दर्द है....शरीर तप रहा है...पर थर्मामीटर में बुखार नहीं आ रहा...सिर्फ तड़प रही है और रो रही है....चार दिन हो गये कुछ खा पी भी नहीं रही है। माँ के जाने के बाद वो बोली - "किसी भी तरह पता करो एहसान कैसा है" मैंने कहा -क्या हुआ तुम्हें...कैसे पता करूँ मैं...वो तो इस देश में भी नहीं है...तुम्हे तो पता है दो साल हो गए उसे देश छोड़े। उसने कहा -एहसान जरूर किसी मुसीबत में है...मैंने सपने में देखा है कि एहसान के पैर को मगरमच्छ ने पकड़ लिया है और वो दर्द से कराहता हुआ मुझे आवाज दे रहा है...उसी रात से मेरी ये हालत हुई है। कुमुद 15 दिनों तक बिस्तर पर एक ही कपड़े में पड़ी रही। मैंने कई जुगत लगाई एहसान की खबर निकलने की और जब खबर मिली तो मेरे होश उड़ गये। ये कैसे सम्भव था...मैंने लैला -मजनू के किस्से  सुने थे....लेकिन आज के जमाने में ये कैसे हो सकता है। मेरे पास एहसान का खत आया था एक मेरे नाम और एक कुमुद के नाम....मुझे पता चला की फुटबॉल खेलते हुए उसी दिन एहसान के दाहिने पैर के घुटना टूट गया था  और उसके घुटने की सर्जरी हुई है। लेकिन अब वो ठीक है। मैंने कुमुद को एहसान का खत दिया और सारी बात बताई कहा- अब एहसान ठीक है...अब तू भी ठीक हो जा। एहसान का खत हाथ में मिलते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उनका इश्क बारह साल का हो गया था और चार साल तो उनको बिछड़े हो गया था दो साल से उन्होंने एक दूसरे को ना देखा था ना ही खतों का आदान-प्रदान हुआ था फिर भी दिल कैसे मिले थे ?

     बारह साल के प्यार के सफर में वो सिर्फ एक बार एक दूसरे से मिले थे ,एक दूसरे को करीब से देखा था ,वो भी तब जब वो ग्रेजुएशन कर चुके थे। एहसान हर हाल में कुमुद को पाना चाहता था इसलिए उसने कुमुद को मजबूर किया कि -सिर्फ एक बार वो उससे मिल ले ताकि वो उससे खुल के सारी बातें कह सकें ,वो उसे एक बार करीब से देखना भी चाहता था। मजबूर हो कुमुद अपनी एक दूसरी दोस्त के साथ फिल्म देखने के बहाने उससे मिलने गई। एहसान ने पहली बार खुल के अपनी जुबां से प्यार का इजहार किया उसने कहा -मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता ....तुम्हे पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूँ...तुम्हारे माँ-पापा तो शायद नहीं माने लेकिन...मैं अगर अपने पापा को समझाऊँ तो शायद वो मान जाये....हम भाग के मुंबई चले जायेगे वहाँ हमारे मामा हमारी शादी करवा देंगे फिर सब ठीक हो जायेगा। 

      कुमुद बोली -मैं तुम्हारी सब बात मानूंगी लेकिन मेरी सिर्फ एक सवाल का जबाब दो-"क्या अपनी ख़ुशी के लिए कई दिलो को दुःखना और उन्हें तकलीफ पहुँचाना सही है? "हमारे बीच सबसे बड़ी दिवार हमारा धर्म है मैं हिन्दू और तुम मुस्लिम....हमारा परिवार और समाज हमारे रिश्ते को कभी नहीं अपनाएगा....अभी देश वैसे ही जातिवाद के अग्नि में झुलस रहा है. (1992 -93 का समय जब देश में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद ने लाखों लोगो का खून बहाया  था) ऐसे हालत में हमारा एक भी गलत कदम हमारे परिवार और समाज दोनों को कितना नुकसान पहुँचायेगा....सोचो जरा...।हम और हमारा प्यार स्वार्थी नहीं है जो कितनो की बलि दे अपने खुशियों का महल बनाये....एहसान ,हमारा सफर यही तक था जाओ अपनी दुनिया बसाओ....अपने माँ-पापा के सपने को पूरा करो....मैं भी अपने माँ-पापा का कहा मान अपना घर बसाऊंगी....हमारे प्यार की वजह से कभी किसी को तकलीफ नहीं पहुँचेगी।एहसान तड़प उठा -और हमारा प्यार....हमारी तकलीफ का क्या....पर तुम सही कह रही हूँ....मैं भी अपने परिवार को कभी दुःख पहुँचाना नहीं चाहता....हमें ही दुःख सहना होगा।दुःख किस बात का हमें  मिलने के लिए कभी किसी माध्यम की जरूरत रही है क्या अब तक...हमारा  प्यार यूँ ही एक दूसरे के अंदर दिल बन के धड़कता रहेगा....है न -कुमुद बोली। सही कह रही हो तुम....जब हम तमाम कोशिशों के वावजूद एक दूसरे को प्यार करने से खुद को नहीं  रोक पाये तो एक दूसरे को भूलना भी हमारे लिए संभव नहीं होगा....हम अपने प्यार को यूँ ही अपने दिल में छुपाये अपने सारे कर्तव्य निभाते रहेंगे...लेकिन तुम वादा करो तुम रोओगी नहीं.. सुना है तुम हर वक्त आँसू बहाती रहती  हो -एहसान ने कुमुद के हाथो को अपनी हाथो में लेते हुए कहा और एक दर्द भरी  मुस्कान आ गई उसके चेहरे पर और कुमुद आँखो में आंसू लिए "हाँ" में सर हिला दी 

       एक दूसरे से अपने आँसुओ को छुपाते हुए नम आँखो से उन्होंने एक दूसरे से विदा ली थी और फिर कभी नहीं मिले। एक दो सालो तक खतो के माध्यम से एक दूसरे की खबर लेते रहे। बाद में एहसान ने कुमुद को भूलने के लिए वो शहर ही नहीं बल्कि देश भी छोड़ दिया और उससे बहुत दूर चला गया था। लेकिन उतनी दूर से भी कुमुद की आत्मा उसकी हर धड़कन को महसूस करती थी तभी तो ऑपरेशन एहसान के पैरो का हुआ था और दर्द कुमुद झेल रही थी। दोनों अपने-अपने घर गृहस्ती में अपना कर्तव्य निभाते हुये जी रहे हैं लेकिन उनका प्यार आज भी उनके दिलो में यूँ ही रोशन है। उनके बीच कोई सम्पर्क नहीं फिर भी किसी न किसी माध्यम से एक दूसरे की खैरियत का पता लगा ही लेते है। उनके प्यार ने ये सिद्ध कर दिया था कि -सच्चा प्यार न करना अपने बस में होता है ना भूलना...सच्चा प्यार किसी को तकलीफ पहुँचा अपनी ख़ुशी पाना भी नहीं होता...सच्चा प्यार सिर्फ क़ुरबानी देता है। क्या आज कल की पीढ़ी कभी समझ पायेगी इस प्यार को ? 

       



24 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन लेखन । आपने प्यार की व्याख्या जिस तरह की है, बेहद ही संवेदनशील और अनुकरणीय है। बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएं आदरणीय कामिनी जी।

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    1. तहे दिल से धन्यवाद सर ,आप के इस उत्साहवर्धक शब्दों के लिए आभार ,सादर नमस्कार

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  2. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 16 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सहृदय धन्यवाद यशोदा दी ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार आप का ,सादर नमन

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  3. सहृदय धन्यवाद ...स्वेता जी ,मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार आप का, सादर स्नेह

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  4. दोनों अपने अपने घर गृहस्ती में अपना कर्तव्य निभाते हुये जी रहे हैं लेकिन उनका प्यार आज भी उनके दिलो में यूँ ही रोशन है। उनके बीच कोई सम्पर्क नहीं फिर भी किसी न किसी माध्यम से एक दूसरे की खैरियत का पता लगा ही लेते हैं। उनके प्यार ने ये सिद्ध कर दिया था कि -सच्चा प्यार न करना अपने बस में होता है ना भूलना,सच्चा प्यार किसी को तकलीफ पहुंचा अपनी ख़ुशी पाना भी नहीं होता ,सच्चा प्यार सिर्फ क़ुरबानी देता है। क्या आज कल की पीढ़ी कभी समझ पायेगी इस प्यार को ?

    बहुत सही कहा आपने।
    प्रणाम।

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  5. सहृदय धन्यवाद शशि जी ,आज तो शहीदों की शहादत ने दिल को इतना बोझिल कर दिया की ब्लॉग पर आना भी अच्छा नहीं लग रहा है।

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    1. बेहद खूबसूरत .....,एक रुहानी प्रेम कहानी जो प्रेम के निश्छल प्रतिमान के चिन्ह हृदय पर छोड़ती है ।

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    2. आप के दिल तक ये कहानी पहुंची इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया मीना जी ,सादर स्नेह

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  6. काश इस सच्चे प्यार का अन्त सुखद होता......
    बहुत सुन्दर... हृदयस्पर्शी...

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    1. सच्चे प्यार का कभी अंत ही तो नहीं होता सुधा जी ,मेरी रचना आपके दिल तक पहुंच पाया इसके लिए दिल से शुक्रिया ,सादर नमन

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  7. जज्बातों से लबरेज, सच्चे प्यार को परिभाषित करती सुन्दर भावपूर्ण कहानी और मंत्रमुग्ध करती आपकी धाराप्रवाह लेखन.

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    1. तहे दिल से शुक्रिया सर ,आप की प्रतिक्रिया मेरे लिए पुरस्कार स्वरूप हैं ,आभार आप का, सादर नमस्कार

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  8. प्यार की कोई परिभाषा नहीं होती हैं अगर प्यार को भी परिभाषित करना पड़े तो फिर वह प्यार नहीं कोई सवाल बन जाएगा और प्यार में सवाल नहीं होते प्यार तो हर सवाल का अंतिम उत्तर हैं...और अगर सच्चा प्यार होता है तो सच्चे प्यार का कभी अंत ही तो नहीं होता बेहद खूबसूरत प्रेम कहानी कामिनी जी पढ़ते पढ़ते खो ही गया था मैं

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    1. तहे दिल से शुक्रिया संजय जी ,मेरी कहानी आप को पसन्द आई ,आप की प्रतिक्रिया मेरा उत्साहवर्धन करती है ,आभार आप का ,सादर नमन

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  9. प्रिय कामिनी -- सच्चे प्रेम को समर्पित तुम्हारा ये संस्मरण पढ़कर बहुत ही भावुक हो गयी |कितना सुंदर लिखा है तुमने सराहना कहीं परे !!! कबीर जी ने कहा है--
    प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
    राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय!!!!!!!!!!!
    ये खतपतवार है जो त्याग और समर्पण की धरा पर स्वतः उग आता है | और प्रेम का कभी अंत नहीं होता वह अपने रूहानी रूप में हमेशा विद्यमान रहता है | कुमुद और एहसान में वो हमेशा व्याप्त रहा होगा | उनकी कहानी सच्चे और गरिमापूर्ण प्रेम की महिमा बढ़ाती है | काश ! कपड़ों की तरह साथी बदलने वाले आज के युवा इस प्रेम का अनुसरण करें है और प्रेम की सच्ची महिमा को जाने | बेहद प्रभावी भावपूर्ण लेख के लिए मेरी बधाई ,शुभकामनायें और प्यार |

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    1. सखी, तुम्हारी इस भावपूर्ण अनमोल टिप्पणी के लिए दिल से धन्यवाद। सखी मैं कोई लेखिका तो हूँ नहीं बस अपने जीवन में जो देखा सीखा और अनुभव किया है उसे ही शब्दों का रूप दे देती हूँ जो सत प्रतिशत सत्य होता हैं कोई कोरी कल्पना नहीं होती। इंसान के जीवन में और उसके इर्द गिर्द इतनी कहानियां हैं कि वो लिखते लिखते थक जाये पर कहानियां ख़त्म नहीं होगी। अभी जो देश के हालत हैं ये भी तो हमारे जीवन का इतिहास बन कई कहानियां लिख जायेगा। बस भगवन से प्रार्थना है हमारे देश में शांति कायम रहे और हमारे जवानो की हमेशा जय हो

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  10. अत्यंत सुन्दर प्रवाह में बहाती हुई कहानी एक अलग ही आकर्षण में बाँध रही है। प्रभावी लेखन।

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    1. आप की उपस्थिति पाकर बेहद खुशी हुई अमृता जी, सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया हेतु हृदय तल से धन्यवाद एवं नमन आपको

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  11. सखी आज फिर से ये रूहानी प्रेम की दास्ताँ पढ़कर बहुत अच्छा लगा | हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार तुम्हारे लिए |

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  12. मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद दी, सादर नमस्कार

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  13. बेहद हृदयस्पर्शी और प्रभावी लेखन। बहुत सुंदर कहानी।

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"नारी दिवस"

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