बुधवार, 1 अप्रैल 2020

दूरियाँ भी है जरुरी

" हैप्पी बर्थ डे बेटा जी "

" क्या मम्मा ,कैसा बर्थ डे ना केक है, ना पापा है और ना ही कोई अपना फिर कैसा बर्थ डे "फोन में ही देखते हुए  उदास आवाज में मनु  बोली ...अरे, इधर देखो तो सही ...नीरा ने कहा। अरे, मम्मा ये क्या हैं... नीरा के हाथों में एक छोटी से प्लेट में एक छोटा सा केक सजा देख मनु चहकती हुई उठ बैठी..... कैसे किया आपने घर में तो कुछ भी नहीं था। बस,  बेटा जी , जो कुछ भी था... जैसे , थोड़ा ब्रेड, थोड़ा आमंड बटर, थोड़ा ड्राई फ्रूट्स और ढेर सारा प्यार मिलाकर.... मैं ये छोटा सा केक लाई हूँ .... उठो -उठो,  सबको विडिओ कॉल करते हैं और केक काटते हैं ....मनु नीरा के गले से लिपटकर उसे चूमने लगी। फिर विडिओ कॉल पर ही सबके साथ मिलकर मनु ने केक कटाकर अपना जन्मदिन मनाया। 

    मम्मा ,कैसा दिन आ गया है न..... हमने कभी सोचा भी नहीं था कि -हम कभी ऐसे ...सबसे इतनी दूर अकेले होकर.... अपना बर्थ डे मनाएंगे। कोई बात नहीं बेटा,  ये दिन भी एक यादगार हो सकता है न ....पता है आपको ,
जब हरपल  हम सबके साथ होते हैं न तो उनकी अहमियत भूल जाते हैं .....दूरियाँ हमें सबकी अहमियत समझती है और अपनों का कद्र करना सिखाती है.....जो परिवार के करीब होते हुए भी परिवार की परवाह ना करके सिर्फ भौतिक सुखों के पीछे भागते हैं ....उस पल उन्हें समझ ही नहीं आता कि -जिसके लिए आप कमा रहे हैं .. उन्ही को भूले जा रहें हो ....रोटी कमाने के लिए घर से निकलते हैं और रोटी खाने की ही फुरसत नहीं होती...कोरोना काल का ये पल उन्हें समझा रहा है कि -भौतिक सुख तुम्हें बाहरी खुशियाँ तो दे सकती है मगर साथ ही भटकाव भी दे रही है..... परिवार  के बीच रहकर नमक रोटी खाकर जो  सुख और शांति तुम्हें मिलेगी वो परमानंद है....जो तुम्हें  परमात्मा के करीब ले जाएगा..... देखो न बेटा,  आज पैसा होते हुए भी हम जरूरत की चीज़े नहीं खरीद पा रहे हैं ....ये हमें कम में जीना सीखा रही है, है न  .....इतना ही नहीं,  ऐसे हालत में आगे हमें पैसों की कमी भी होगी और तब पैसो से दुरी..... हमें पैसे की अहमियत भी समझाएंगी ....  ऐसे में जिसने कम में ख़ुशी खरीदना और बाँटना सीख लिया न उनका समय सार्थक गुजरेगा.......बेटा,  ये पल हमें ढेरों अनुभव देकर जाएगा ......अब आप इस अनुभव को अपने जीवन में कैसे उतारते हो.... टूटकर बिखर जाते हो या अपने जीवन जीने का नजरिया बदलकर हमेशा के लिए सम्भल जाते हो.... ये आप पर निर्भर है.... बेटा,  ये बिपदा की घडी भी हमें बहुत कुछ समझाने- सीखने आई हैं.... अगर, हम समझना चाहे तो....यदि  अब भी नहीं समझे और सम्भले..... तो हमारा विनाश निश्चित है।  

     नीरा कहती जा रही थी और मनु उसके बाँहों में सोये-सोये ख़ामोशी से सब सुन रही थी.... शायद वो समझने की कोशिश कर रही थी .....जीवन के उतार-चढाव को,वक़्त के दिखाए फेर -बदल को, रिश्तो की अहमियत को ,अपनों के प्यार और एहसास को .....




शनिवार, 28 मार्च 2020

" काजल से अथाह प्रेम "


" काजल " गोरी के आँखों को सजाये  तो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देता हैं.... नन्हे शिशु के नैनो में  जब माँ काजल भर के उसकी बलाएँ लेती हैं तो ....वही काजल उस शिशु के लिए नजरबटु बन शिशु की हर बुरी नजरों से रक्षा करता है लेकिन......वही काजल जब दामन पर लग जाएँ तो दाग बन जाता है।
   हमारे भारतीय संस्कृति के  श्रृंगार में काजल का एक खास स्थान है। यदि आँखें काजल बिना सुनी हो तो श्रृंगार अधूरा ही रहता है। काजल ने  गोरी के आँखों में ही अपनी  खास जगह नहीं बनाई बल्कि कवियों की कविताएं हो या गीतकारों के गीत या शायरों की शायरी काजल ने सबके दिलों और कलम पर भी अपना हक जमा रखा है।

    हर लड़की की तरह मेरा  भी काजल से गहरा संबंध रहा है। "काजल" ने मुझे मेरे जीवन का बहुत बड़ा  पाठ पढ़ाया है। अब आप सोचेंगे  कि - "काजल" क्या सीख दे सकती है। दे सकती......इस जहाँ कि... हर एक सय आपको कोई ना कोई सीख जरूर देती है। बात मेरे बचपन की है जब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। पापा मेरा एडमिशन शहर के सबसे अच्छे स्कुल में कराना चाहते थे। मैं एडमिशन के लिए गई... वहाँ मैं टेस्ट में पास भी हो गई। लेकिन क्लास ज्वाइन करने से पहले प्रिंसिपल ने कहा कि -"मुझे स्कूल बिलकुल साधारण भेष -भूषा में ही आना होगा"...बाकी सब तो ठीक था लेकिन,  मुझे "काजल" भी नहीं लगाना था....ये मेरे लिए बहुत मुश्किल था। क्योंकि मेरी माँ खुद भी कभी भी बिना काजल के नहीं रही थी और मुझे भी उस उम्र तक याद नहीं कि.. एक दिन भी मैं बिना काजल लगाये रही हूँ। खैर ,स्कूल जाना शुरू हुआ बिना काजल के...मगर पहले ही दिन से मेरी आँखों में  सूजन शुरू हो गई ....दो दिन गुजरे ...आँखों से पानी आना शुरू हो गया और तीसरे दिन तो मेरी आँखों ने  काजल की जुदाई को बर्दास्त करने से इंकार ही कर दिया....चौथे दिन , वो लाल -पिली हुई और पाँचवे दिन नाराज होकर पलको ने अपना पट बंद ही कर लिया। साथ ही साथ मेरा स्कूल जाना भी बंद हो गया। हार कर माँ ने आँखों का काजल से मिलन  करा ही दिया और फिर जैसे ही ....दोनों का मिलन हुआ आँखों की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा और अगले दिन ही वो सारी नाराजगी भूल गई और... अपना पट खोल दी।
    माँ -पापा समझ चुके थे कि -मेरी आँखें काजल की जुदाई बर्दास्त नहीं कर पाएंगी सो ...उन्होंने प्रिंसपल के पास जाकर मेरी आँखों की व्यथा-कथा सुनाई और उनसे मिन्नत की कि-- मुझे काजल लगाकर आने की इजाजत दे दे ....मगर प्रिंसिपल को मेरी आँखों पर जरा भी दया नहीं आई.... वो किसी भी हाल में अपने स्कूल का नियम नहीं तोड़ सकती थी।माँ एक महीने  तक बार-बार  प्रयास करती रही कि -मेरी आँखों को काजल के बिना रहना सीखा सकें मगर.... वो असफल रही  लिहाज माँ -पापा ने ही हथियार डाल दिए और मेरा एडमिसन किसी और स्कूल में कराया जहाँ ...उन्हें मेरी आँखों को काजल से मिलने से कोई आपत्ति नहीं थी।

    इस घटना से मुझे बेहद तकलीफ हुई ...मेरा भी सपना था उस बड़े स्कूल में पढ़ने का मगर मेरी आँखों का काजल से अथाह प्रेम ने मेरा वो सपना तोड़ दिया। मैंने उसी दिन तय कर लिया कि.. इनका संबंध तो तोड़कर ही रहूँगी और उसी दिन... उस छोटी उम्र में ही मैंने ये भी प्रण लिया कि -"मैं खुद को कभी भी ,किसी भी चीज की ..किसी भी आदत की आदि नहीं बनाऊँगी।"  मैंने धीरे-धीरे आँखों को काजल से दूर कर दिया और ऐसा दूर किया कि - चौथी कक्षा के बाद आज तक मेरी आँखों ने  काजल को नहीं देखा।

   और इस तरह ....काजल ने मुझे जीवन का एक बड़ा सबक सिखाया - " कभी भी किसी चीज के आदि मत बनो ,किसी से इतना मत जुडो कि ---" उससे अलगाव बर्दास्त नहीं कर सको " हमें नहीं पता कब... हम से हमारी कोई प्यारी चीज छीन ली जाएँ या हम उसे छोड़ने पर मजबूर हो जाएँ। 


शुक्रवार, 27 मार्च 2020

" मन और मानवता "


 मानव " हाड़ -मांस- रक्त से निर्मित सृष्टि की सबसे नायब कृति और " मन "  मानव शरीर का वो अदृश्य अंग जो दिखाई तो नहीं देता मगर होता सबसे शक्तिशाली हैं।मानव का मन ही समस्त शक्तियों का स्त्रोत होता हैं। काम-, क्रोध लोभ- मोह, ईर्ष्या -द्वेष, पाना- खोना, हँसना- रोना ये सारे कर्म मन ही करता हैं। 

मन ही देवता, मन ही ईश्वर
मन से बड़ा ना कोए
मन उजियारा जब जब फैले
जग उजियारा होये
और  " मानवता " यानि " मानव की मूल प्रवृति "   प्राणी मात्र से प्रेम  ,दया- करुणा,परोपकार, परस्पर सहयोगिता ही मानवता हैं और  विश्व में प्रेम, शांति, व संतुलन के साथ-साथ मनुष्य जन्म को सार्थक करने के लिए मनुष्य में इन मानवीय गुणों का होना अति आवश्यक है। " जिस मन में परमात्मा का वास हो वहाँ मानवता का वास स्वतः ही हो जाता हैं।" मानवता में ही सज्जानता निहित हैं। मानव होने के नाते जब तक हम दूसरो  के दु:ख-दर्द में साथ नहीं निभाएंगे तब तक ये जीवन सार्थक नहीं हैं और हम मानव कहलाने के योग्य भी नहीं हैं।वर्तमान में हमने मानवता को भुलाकर अपने आप को जाति-धर्म, उच्च -नीच ,गरीब-अमीर जैसे कई बंधनों में बांध लिया हैं। हमारे अति पाने की लालसा और स्वार्थ में लिप्त हमारी बुद्धि ने हमारे मन को विकार ग्रस्त कर दिया हैं.और हमने  इन सभी मानवीय गुणों से खुद को रिक्त कर लिया हैं। 


और आज मानवता खोने के कारण ही पूरा विश्व त्राहिमाम कर रहा हैं। एक देश की लापरवाही ने पूरी मानव जाति को संकट में डाल रखा हैं। कोई भी अविष्कार यदि प्रकृति , मानव और मानवता के भले के लिए हो तो  हमारी उपलब्धि हैं मगर उनका ये अविष्कार मानवता के हनन के लिए था। मगर कहते हैं न कि -" प्रत्येक इफेक्ट का एक साइड इफेक्ट भी होता हैं। " इस भयावह महामारी में डॉक्टर ,नर्स ,पुलिसकर्मी और सफाईकर्मियों की  एक एक बलिदान की घटना जो सुनने को मिल रहे है तो यकीन हो रहा हैं कि -" आज भी मानवता जिन्दा हैं "बिलकुल मृत नहीं हैं बस आवश्यकता हैं उसे फिर से सींचने की।और ये वही वक़्त हैं जब हमें प्रकृति ने डराकर, सचेतकर मानवता को सीचने का  अवसर दिया हैं ,वो कह रही हैं  -" अब भी वक़्त हैं सम्भल जाओं ,वरना मैं तुम्हारा समूल नाश करने से नहीं चुकूँगी। 
" कोरोना " हमसे कह रही हैं -करो- ना ( नहीं करो ) यानी 
प्रकृति का हनन नहीं करों ,
संस्कृति -सभ्यता का हनन नहीं करों 
बेजुबानो का हनन नहीं करों 
आवश्यकता से अधिक के लालच में आकर परिवार का हनन नहीं करों 
मानवता का हनन नहीं करो 
इस धरा से प्रेम ,विश्वास ,भाईचारा का हनन नहीं करो 
कोरोना कह रही हैं ---एक बार सोचो --मानव से मानव का कितना गहरा संबंध हैं --एक मानव ने पुरे विश्व में मुझे फैला दिया ---सिर्फ छूकर ---मैं फैली हूँ सिर्फ छूने से। ये बता रही हैं मानव का मानव के लिए क्या अहमियत हैं। हम लाख खुद को परिवार से समाज से अलग कर ले लेकिन --जैसे पानी पर लकीरे नहीं खींची जा सकती---वैसे ही मानव से मानव का दूर होना सम्भव नहीं हैं---लकीरे खींचकर देश अलग हो जाते हैं मानव नहीं। अपने  अच्छे बुरे कर्मो से जब एक देश का मानव दूसरे देश को भी चपेट में ले सकता हैं तो हमारे कर्मो का  हमारे परिवार, हमारे समाज और हमारे देश  पर कितना गहरा असर होता होगा । " कोरोना " समझा रही हैं --मानव से मानव की श्रृंखला सिर्फ स्पर्श मात्र से जब रोग फैला सकती हैं तो क्या प्रेम ,अपनत्व ,भाईचारा नहीं फैला सकती। मगर आज  मानवता की सबसे बड़ी सेवा यही  होगी कि -" हम खुद को भी इस महामारी से सुरक्षित रखे और अपने परिवार ,समाज और देश को भी। "









"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...