शुक्रवार, 20 मार्च 2020

" आखिरी साँस "

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      " मैं तुम्हारे साथ जीवन जी नहीं पाऊँगी तो क्या हुआ... मेरा वादा हैं तुमसे मरूँगी तुम्हारी ही बाँहों में .....आखिरी वक़्त में ... जब मैं तुम्हे आवाज़ दूँगी तो तुम आओगे न ......."  .कहते हुए मेरे होठ थरथरा रहे थे.....   आवाज़ लड़खड़ा रही थी .... " हाँ " में सर हिलाते हुए उसने कहा था.... तुम्हारी  उस आखिरी आवाज़ का मैं  आखिरी साँस तक इंतज़ार करूँगा..... फिर हम दोनों हमेशा हमेशा के लिए जुदा होकर अपने अपने कर्मपथ पर निकल पड़ें थे और फिर......

    इस कठिन कर्मपथ पर चलते हुए 35 साल गुजर गए ..... और आज मैं जीवन के आखिरी लम्हों से चंद कदमो के दुरी पर खड़ी हूँ।  मेरा तन और मन दोनों जीवन के इस लम्बे सफर को तय करते करते थक चूका हैं .....
रोगग्रस्त हो चूका हैं....... मैं विस्तर पड़ पड़ी हूँ .... अपने ही कहे उन शब्दों को , उससे किये अपने वादें को याद कर तड़प रही हूँ...... हर एक साँस में कश्मकश हो रही हैं...  अपने मर्यादाओं के दायरे को लांघकर.....कैसे आवाज़ दूँ उसे ..... अगर हिम्मत जुटाकर मैं आवाज़ दे भी दूँ तो..... ..क्या वो आ पाएगा .....अपनी घर -गृहस्थी 
और समाज के बंदिशों को तोड़कर .......?

      मेरी अंतरात्मा की तड़प बढ़ती जा रही हैं..... मेरा शरीर धीरे -धीरे मेरा साथ छोड़ता जा रहा हैं.... एक एक साँस को सहेजते हुए मैं उसके आने की राह देख रही हूँ ...उसे आवाज़ तो नहीं दे पाई हूँ फिर भी ...आस लगाए बैठी हूँ.... वो आएगा ,जरूर आएगा ......बस ,मुझे उसके  इंतज़ार में अपने साँसों  को थामे रखना हैं ....बस, ये काली स्याह रात गुजर जाए .......अगर सुबह तक वो नहीं आया तो ....एक बार उसे पुकारूँगी जरूर..... मर्यादाएं टूटती हैं तो टूट जाए ...
    
    भोर की पहली किरण के साथ मेरी नजर चौखट पर जा टँगी ....तभी दरवाज़े पर एक साया सा दिखा...... लगा अब तो ये मेरा आखिरी पल ही हैं ....शायद यमराज आ ही गए ....वो कहते हैं न कि-- आखिरी पल, एक साया के रूप में आता हैं .....धीरे धीरे वो साया मेरे करीब आता जा रहा था  ...... मगर ये क्या उसे देख मुझे भय नहीं लग रहा...... मुझे तो सुकुन मिल रहा हैं ......मेरी तरफ बढ़ते उसके हर एक  कदम के साथ मेरे जिस्मो -जान में ख़ुशी की तरंगे उठ रही हैं .....अब वो साया मेरे बिलकुल करीब खड़ा था.... मेरी आँखों में जैसे नूर आ गया .... तुम आ गए ....  उसकी तरफ अपनी बाँहे फैलते हुए .मैंने कहा .....
      उसने फिर से उसी  चिरपरिचित अंदाज़ में " हाँ " में सर हिलाया और  मेरे सरहाने आकर बैठ  गया ....मेरे सिर को उसने अपने गोद में ले लिया..... उसके आँखों से टप- टप मोती टपके और वो मेरे होठो से लगते हुए मुख में जा गिरे.....मेरे मुख में  अब पवित्र गंगाजल की बुँदे आ गिरी  हैं ..... मेरे मोक्ष का पल अब मेरे करीब हैं। मेरी नजर उसके चेहरे पर टिकी हैं ....आँखों से बहते आँसूं उसके स्नेह से अभिभूत हो ,उसके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर रहें हैं .....आँखे उसे जी भर के देखना चाहती हैं .....उसके चेहरे को ,उसके रोम रोम को समेट कर अपनी अंतरात्मा में  समा लेना चाहती हैं मगर ......ये क्या मेरी दृष्टि तो धुंधली हुई जा रही हैं .....यकीनन अब मेरी साँसे भी मेरा साथ छोड़ना चाह रही हैं पर....... अब गम नहीं हैं... मैंने वो पल पा लिया हैं .... जिसके लिए इतनी लम्बी तपस्या की थी ......मैंने उसे नमन करते हुए सुकुन भरी अपनी आखिरी साँस ले ली...
वो मौत थी या मेरी जिन्दगी........ ?
नहीं पता .....








शनिवार, 14 मार्च 2020

" भाईचारा "



" भाईचारा " अर्थात जहां... भाइयों के जैसे आचार -विचार और व्यवहार हो। या ये भी कह सकते हैं कि -" अपने सुख दुःख को साझा करने वालों का समूह  " वैसे भाईचारे की व्याख्या तो पारिवारिक संबंधों के दायरे में ही की जाती हैं लेकिन हमारे देश में इसकी झलक  रक्त संबंधों से परे  जाति  और धर्म से भी ऊपर देखने को मिलती थी । तभी तो भारत देश की प्राचीन  अवधारणा ही हैं " वसुधैव कुटुंबकम "अर्थात सारा विश्व ही एक परिवार हैं। मगर इस देश का दुर्भाग्य कि -आज विश्व भाईचारा तो दूर की बात हैं परिवार से  भी भाईचारा  शब्द लुप्त होता जा रहा हैं।
   मैं  तो सौभाग्यशैली रही हूँ  कि -मैंने  अपने परिवार का वो दौर भी देखा हैं..... जहां पर तीन दादा और उनके तेरह बच्चे [यानि हमारे चाचा और बुआ ] सब प्रेम और भाईचारे के ऐसे डोर से बंधे थे कि -मुझे दसवीं में जाने के बाद भी ये ज्ञात नहीं हुआ था कि - कौन मेरे सगे  दादा -दादी ,बुआ -चाचा हैं और कौन चचेरे । हम सिर्फ उन्हें बड़े दादा ,छोटे दादा ,मंझिले दादा के नाम से ही जानते थे, इतना प्यार और अपनत्व था और आज.... सब कुछ बिखर चूका हैं। हमारे परिवार का सौभाग्य हैं या पुराने संस्कार जो आज कम से कम हमारे सगे भाई तो एक साथ हैं......और घरों में तो ये भी देखने को नहीं मिलता।
     आँखें बंद करके एक पल को सोचती हूँ तो लगता हैं ये तो कल ही की बात हैं.... जहां परिवार तो छोड़े... आस -पड़ोस में भी जाति और धर्म से ऊपर का  भाईचारा था। हमारे कलोनी में हिन्दू -मुस्लिम और ईसाई तीनो धर्म के लोग रहते थे और..... वहाँ भी हमें सबका घर अपना ही घर सा लगता था। हर त्यौहार मिल जुल कर मनाना ,कोई भी दुःख या बिपदा आए सब का एक जुट हो जाना..... ये सब अब एक सपना सा लगता हैं।
     आपको अपनी एक आपबीती सुनती हूँ -हमारे पड़ोस में एक मुस्लिम इंजीनियर का  परिवार रहता था ,उन को एक बेटा और एक बेटी थी और हम दो भाई और दो बहन..... हमारे दोनों परिवार में बहुत ही ज्यादा स्नेह था ,हम छ हर वक़्त एक साथ रहते थे ......हमें कभी एहसास ही नहीं होता था  कि -हम दो धर्म के लोग हैं। कुछ दिनों बाद उनका ट्रांस्फर दूसरे शहर में हो गया। लेकिन हमारी दोस्ती टूटी नहीं....हमारा मिलना जुलना होता रहा। [ये दोस्ती आज तक कायम हैं ,उनकी बेटी मेरी सबसे प्रिय सहेली आज भी हैं ]
    92  की बात हैं जब बाबरी मस्जिद कांड हुआ था देश में चारो तरह दंगे हो रहे थे। मेरी सहेली का भाई [ जो मेरा भी प्रिय भाई हैं मैं उसे राखी भी बांधती हूँ ]  जो उस वक़्त 17 -18 साल का था ,उसे किसी जरुरी काम से मेरे शहर आना पड़ा। दिन में वो अपने सारे काम निपटा कर दोस्तों से मिलजुल कर जब वो मेरे घर आने को हुआ तो.... उसका एक खास दोस्त जो मुस्लिम था ....और उसे बहुत मानता था उसने कहा -" शहीद तुम रात बिताने वहाँ  जाओगे ...वो लोग तो हिन्दू हैं ...तुम्हे डर नहीं लग रहा हैं ...मेरी मानो तो तुम मेरे पास ही रूक जाओं " .शहीद ने जबाब दिया -" वो हिन्दू या मुस्लिम नहीं हैं वो मेरे चाचा -चाची का घर हैं जहां मेरे भाई -बहन मेरा इंतज़ार कर रहे हैं ....उनसे सुरक्षित जगह मेरे लिए कोई हो ही नहीं सकता " ये कह कर वो मेरे घर रुकने आ गया। घर आने पर वो मेरी माँ से लिपटकर बोला -"देखो ना चाची, सब कैसी बातें कर रहे थे... मुझे आपके पास आने से रोक रहे थे.... दंगे हुए हैं रश्ते तो नहीं बदले "
    ये था उस दौर का भाईचारा और आज भाई ही भाई का दुश्मन बना हुआ हैं। ऐसा ना हो कि -प्यार ,बंधुत्व ,भाईचारा  जैसे शब्द ही डिक्शनरी से लुप्त हो जाए। इस शब्द और इसके आस्तित्व को संभालना सहेजना और आने वाली अगली पीढ़ी तक इसे पहुंचना..... अब ये हमारी  पीढ़ी का ही  दायित्व हैं। हमारी लापरवाहियों के वजह से ये लुप्त हुआ हैं तो खामियाजा भी हम ही भुगत रहे हैं और इसका भुगतान भी हम ही करेंगे।

  वैसे इस बार के दिल्ली के दंगे - फसादों ने ये तो साबित कर दिया कि -हमारे नववुवको में विवेक जागृत हो चूका हैं और वो अब धर्म और जाति के नाम पर अपना आपा नहीं खोने वाले।  " वसुधैव कुटुंबकम "वाले संस्कार के बीज अब  भी हमारे भीतर कही न कही बचा हैं.... जरुरत हैं तो  सिर्फ अनुकूल आबो -हवा देकर उन्हें सींचने की....



गुरुवार, 5 मार्च 2020

" कोरोना वायरस "की होम्योपैथिक दवा

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कोरोना वायरस "
आज कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा रखा हैं ,हर देश की सरकार इससे निपटने की पूरी कोशिश कर रही हैं। आए दिन कोई ना कोई एक नया वायरस आकर हमारे दिलों में दहशत फैला जाता। ये सारे वायरस के फैलने की वजह हमेशा से हमारा गलत खान पान और लापरवाही ही रही हैं और खास तौर पर एक व्यक्ति विशेष की लापरवाही की सजा सब भुगतते हैं। 

कोरोना वायरस क्या हैं ?कैसे फैलता हैं  ?इससे वचाव कैसे कर सकते हैं ?क्या क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए इसके बारे में सोशल मिडिया पर बहुत सारी जानकारियां उपलब्ध हैं। लेकिन परेशानी ये हैं कि -ये जानकारी सब एक दूसरे से सिर्फ साझा भर कर रहे हैं खुद भी इसका पालन  कर रहे हैं या नहीं ,पता नहीं। 

इसका सफल इलाज होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक दवा में है। होम्योपैथिक के आर्सेनिक एल्बम 30 में इस वायरस से लड़ने की क्षमता है। यह जानकारी सेवानिवृत्त होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारी एवं आरोग्य भारती के विंध्याचल मंडल विभाग प्रमुख डॉ० गणेश प्रसाद अवस्थी ने दी।इस बात को शशि जी ने भी साझा किया हैं और उनकी बातों से ही मुझे ये प्रेरणा मिली की मैं आप सब से ये जानकारी साझा करूँ। 

मैं खुद एक होमियोपैथिक प्रैक्टिसनर हूँ इसलिए आज मैं आप सब से एक जरुरी जानकारी साझा करना चाहती हूँ। उस पर यकीन कर आप कितना अमल करेंगे वो तो मैं नहीं जानती मगर एक डॉक्टर होने के नाते मैं ये अपना फर्ज समझ रही हूँ कि आप सभी से ये बहुमूल्य जानकारी साझा करूँ। अगर इस पर विश्वास करके आप इसका प्रयोग करेंगे तो यकीन मानिए कोरोना वायरस ही नहीं ,किसी भी तरह के वायरस से आप खुद को और परिवार को सुरक्षित रख पाएंगे। 

आर्सेनिक एल्बम 30 
एकोनाइट नेप 30
 इन्फ्लून्जियम 30 
यूपिटोरियम पर्फ़ 30 
सारी दवाएं Dr.Reckeweg  की होनी चाहिए 

इन चारो दवाओं को बराबर मात्रा में मिलाकर एक अलग शीशी में रख ले। तीन दिन लगातार सुबह खाली पेट इस मिश्रित दवा का दो बून्द सीधे जुबान पर टपका ले। उसके बाद जब तक वायरस फैला हो तब तक सप्ताह में दो बार रविवार और बुधवार को एक बार सुबह में ही लेते रहे। किसी भी तरह का वायरल इन्फेक्शन हो ही नहीं सकता। अगर हो गया हैं तो यही दवा रोग की तेज़ी के अनुसार ,दो दो घंटे के अंतराल पर ले सकते हैं। 

दवा लेते वक़्त सावधानियाँ -
दवा लेने से  आधे घंटे पहले और दवा लेने के आधे घंटे बाद भी कुछ खाना पीना नहीं हैं यानि मुँह में किसी भी तरह का स्वाद नहीं रहना चाहिए। बस इतनी सावधानियाँ बरतनी हैं। 

उम्मीद करती हूँ आप इस जानकारी का लाभ जरूर उठाएंगे। ये दवा पाँच साल तक आप सुरक्षित रख सकते हैं। इस जानकारी को जितना हो सके साझा करें।

अगर आप आर्युवेद को मानने वाले हैं तो ,गिलोय ,तुलसी के पते ,काली मिर्च का सेवन करें। ये भी बहुत लाभदायक हैं। 

"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...