गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

"तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है "


 

 "नानी माँ, अगर मैं अपनी पसंद से शादी कर लुंगी तो क्या आप उसे अपना लेंगी " मनु ने नानी माँ को  गले लगाते हुए बड़े प्यार से पूछा। हाँ ,अपना ही लेगें और कर भी क्या सकते हैं .....आखिर रहना तो तुम्ही को है उसके साथ....इसीलिए अपनी पसंद से लाओ तो ही बेहतर है - नानी माँ ने भी उसी प्यार से जबाब दे दिया। 

     मैंने तुरंत एतराज किया -"ये क्या माँ,हमें तो लड़को से बात  करने की भी आजादी नहीं थी,बात क्या हमें तो किसी लड़के की तरफ देखना तक मना था और इसे अपनी पसंद से शादी करने की इजाजत मिल रही है "

     जमाना बदल गया है बेटा .....जमाना नहीं आप भी बदल गयी हो -मैंने तुनुकते हुए कहा। जमाने के साथ बदलना ही पड़ता है बेटा-माँ ठंडी साँस लेते हुए हँस पड़ी। 

मनु ने मुझे टोकते हुए कहा -" मम्मी पहले मुझे बात करने दो ....नानी माँ, मैं चाहती हूँ कि मैं जिससे भी शादी करूँ आप सब उसे मुझसे भी ज्यादा प्यार करें ....आप सब की ख़ुशी और रजामंदी  मेरे लिए बहुत मायने रखता है, इसलिए आप खुलकर बोले.... "

अरे,बेटा जी... मुझे तुम पर पूरा भरोसा है "तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है "

नानी माँ के बातों की गहराई को मनु ने समझा या नहीं  ये तो नहीं पता बस,  इतना सुनते ही वो ख़ुशी से नानी माँ से लिपट गई और मुझे बड़ी जोर की हँसी आ गई। क्यों हँस रही हो माँ -मनु ने हैरानी से पूछा।   मैंने कहा- कुछ नहीं बेटा। 

सच, हमारे बुजुर्ग कितने सयाने होते है बिना कुछ कहे भी बहुत कुछ कह जाते हैं  बिना डोर के भी आपको कितने ही बंधनों में बाँध देते हैं । 

 "तुम्हारी आँखें हमारी आँखों से अलग थोड़े ही है " 

 ये कहकर माँ ने मनु को इजाजत भी दे दिया और हिदायत भी कि -  पसंद वही करना जो हमारे संस्कारों में  बँधा हो, हमारी संस्कारों से बाहर जाने की इजाजत नहीं है तुम्हें। इसीलिए तो, बुजुर्ग हमारे "मार्गदर्शक भी होते हैं और मार्गरक्षक भी।"

  

गुरुवार, 7 जनवरी 2021

दोष किसका ???

    









नमस्ते आंटी जी, कैसी है आप - शर्मा आंटी  को देखते ही मैंने हाथ जोड़ते हुए पूछा। 

    खुश रहो बेटा....तुम कैसी हो...कब आई दिल्ली....बिटिया कैसी है....कितने दिनों के लिए आई हो....शर्मा आंटी अपनी चिरपरचित अंदाज़ में सवालों की झड़ी लगा दी। अरे, ये मुआ कोरोना जो ना कराये.....जरूर बिटिया का काम  छूट गया होगा तभी आयी हो न.... इस कोरोना के कारण तो घर से निकलना ही नहीं हो रहा....आज कितने दिनों बाद निकली हूँ घर से ......ना निकलती तो पता ही नहीं चलता की तुम आ गई हो - वो बोले जा रही थी। 

     अरे आंटी, सांस तो ले लो-  मैंने हँसते हुए कहा। मेरे इतना कहते ही वो भी हँसने लगी। मैंने कहा -आंटी मेरी छोडो अपनी सुनाओं कैसे हैं सब....आपकी बहु कैसी है....अब तो बहु के हाथ का खा रही है इसीलिए वजन बहुत बढ़ गया है आपका....शादी हुए तो एक साल से ज्यादा हो गया जरूर घर में नन्हा-मुन्ना भी आ ही गया होगा...कब खिला रही है मिठाई - मैंने भी उन्ही के जैसे एक पर एक सवाल रख दिए।  जैसे-जैसे मैं आंटी से सवाल किए जा रही थी वैसे-वैसे आंटी के मुँह का ज्योग्राफिया बदलता जा रहा था। मैं मन ही मन सोच रही थी -इन्हे क्या हुआ इनका मुँह तो कड़वे करेले जैसा बनता जा रहा। 

   मेरे सवालों से आंटी के सब्र का बांध जैसे टूट गया अचानक से झिड़कती हुई बोली -अरे मेरे आगे उस कलमुही का नाम ना ले, खून जलने लगता है मेरा...मर गई वो। हे भगवान ! कब मर गई...कैसे मर गई - मुझे तो शॉक सा लग गया, मैं एक साल बाद दिल्ली आई थी मुझे तो ये पता ही नहीं था। वो उतने ही गुस्से में बोली- अरे, मेरे वास्ते मर गई....वो तो शादी के एक महीने बाद ही मेरे बेटे को छोड़ कर चली गई....किसी दूसरे के साथ चक्कर था उसका......नाहक शादी में इतने पैसे खर्च कर दिए...हाथ ढेला ना आया। 

    आंटी तो गुस्से में बड़बड़ाती हुई निकल गई, उनकी दुखती रग पर हाथ जो रख दिया था मैंने, मगर मैं उनकी बातें सुनकर सन्न रह गई। आंटी हमारे ही मुहल्ले में रहती है एक बेटा एक बेटी है अच्छा-खासा धूम-धाम से बेटे का व्याह की थी और बहु एक महीने में ही घर छोड़कर चली गई और तलाक का नोटिस भेज दी। आंटी की बेटी तो पहले से ही तलाकशुदा थी वो भी आंटी के घर में ही बैठी थी। आंटी तो चली गई मगर मेरे जेहन में कई सवाल छोड़ गई.... 

कमी किस में थी ?

दोष किसका था ?

क्यूँ घर बस काम रहे हैं, उजड़ ज्यादा रहे हैं ?

क्यूँ आखिर क्यूँ ?

गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

"नई सोच के साथ, नया साल मुबारक हो"


" 2021 "आख़िरकार नया साल आ ही गया। कितने उत्साह, कितने उमंग के साथ आज रात को पुराने साल की विदाई और नए साल के स्वागत का जश्न चलेगा। पुराने साल को ढेरों बद्दुआएं देकर कोसा जायेगा और नए साल से कई नयी उम्मीदें लगायी जायेगी। उम्मीदें लगाना, अच्छा सोचना और आशावान होना सकारात्मक सोच है जो होना ही चाहिए। 

मगर सवाल ये है कि - किस आधार पर हम नए साल में नए बदलाव की कामना कर सकते हैं ? 

 अक्सर मन में विचार आता है "नया साल" आखिर  होता क्या है ?  देखे तो वही दिन वही रात होती है वही सुबह वही शाम होती है ,बस कैलेंडर पर तारीखे बदलती रहती है। हाँ,कोई एक किस्सा, कोई एक हादसा, कोई एक घटना उस तारीख के नाम हो जाती है बस। जैसा कि 2020 एक  भयानक जानलेवा बीमारी और त्रासदी के नाम से याद किया जाएगा। इस साल में जितनी अनहोनियां हुई है उतनी शायद ही किसी साल में हुई हो।अभी ये दिन गुजरा ही नहीं है कि आने वाला साल अपने साथ एक नया दहशत  लेकर आ रहा है। फिर नया क्या है ?किस बात का जश्न मना रहे है हम ? 

    ये नहीं है कि पुराना  साल हमें सिर्फ दुःख-दर्द ,डर और दहशत ही दे गया है,उसने हमें एक सबक एक चेतावनी भी दी है। मगर हम में से ज्यादातर लोग उस बुरे घटनाक्रम को ही याद रखेगें,मात्र दस प्रतिशत लोग ही उस सबक और चेतावनी को यादकर खुद को बदलने की कोशिश करेगें। 

  "नया" शब्द का मतलब क्या है ? नया यानि बदलाव,अब वो बदलाव अच्छा भी हो सकता है बुरा भी। अगर बदलाव अच्छाई,शांति और ख़ुशी लेकर आए तो खुशियाँ मानना जायज है अगर बदलाव दिनों-दिन हमें बुराई, अशांति दुःख-दर्द की ओर ले जा रही है तो फिर किस नयी बात का जश्न  मनाया जाये ?

   पिछले दशक यानि 2010 से 2020 तक समाज में जितना बदलाव हुआ है वो शायद ही किसी और दशक में हुआ हो। नयी टेक्नॉलजी आई,समाज में इतना बड़ा परिवर्तन हुआ जिसकी 2000 तक कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। सोशल मिडिया ने हमारा पूरा सामाजिक ढांचा ही बदल दिया। आया था अच्छे के लिए मगर हमने उससे अपना बुरा ही किया। चिकित्सा जगत में नए-नए खोजकर पुरानी बिमारियों का इलाज ढूढ़ा गया।  क्या हम रोगमुक्त हुए या हमें कई प्रकार की नई बिमारियों ने आ जकड़ा ? आज एक बीमारी ने पुरे विश्व को त्राहि-माम करने पर मजबूर कर दिया। अनगिनत जानें तो गई ही समूचा विश्व आर्धिक तंगी के चपेट में भी आगया।सारे महान ज्ञानियों के खोज-बिन के बाद सभी को इस बीमारी से बचने का बस एक उपाय  सुझा कि -"अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये और इस बोमरी से बचें,दूसरा कोई इलाज नहीं है।"

   इस त्रासदी के शुरूआती दिनों में तो हम डरे,बच-बचाव के सारे उपाय किये, अपनी सेहत पर ध्यान देना शुरू किया,योग-प्राणायाम ,खान-पान सब पर पूरी सतर्कता से अम्ल किया और अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का पूरा प्रयास किया । मगर धीरे-धीरे हम उस रोग में ही रचते-बसते चलें गए है और नतीजा वही "ढाक के तीन पात". 

   क्यों हम एक ही गलती बार-बार दोहराते जाते हैं और दुःख-दर्द,परेशानी का रोना रोते रहते हैं  और फिर ये कामना भी करते हैं कि -"आनेवाले दिनों में सब ठीक हो जायेगा" ?

कैसे ठीक हो जायेगा ? हम अपनी परिस्थिति को ठीक करने के लिए क्या योग्यदान कर रहे है?

  ज्ञानीजनों ने,भविष्य वक्ताओं ने  कहा था 21 वी सदी बदलाव का युग होगा। बदलाव तो दिख रहा है, मगर ये कैसा बदलाव है जिसमे हर तरफ दर्द और सिसकियाँ ही सुनाई पड़ रही है। 

    बदलाव हो जायेगा यदि हम 2020 की दी हुई एक-एक सीख को स्मरण कर अपनी गलतियों को सुधारने लगेंगे। आधुनिकता की अंधी दौड़ से खुद को निकलकर अपनी परम्परागत जीवन शैली को अपनाते हुए खुद के सेहत का धयान रखना शुरू करेगें,घर को सुख-ऐश्वर्य के सामान से ही नहीं परिवार से सजाना शुरू करेगें,समाज को कुंठित-कलुषित करना छोड़ उसमे प्यार और भाईचारा का रंग भरना शुरू करेगें,प्रकृति को दूषित करना छोड़, उसे प्रदूषणरहित करने की ओर अग्रसर होंगे, अपनी सोच को बदलगे तो  बदलाव जरूर आएगा। ये निश्चित है। 

फिर उस दिन शान से कहेगें - "नई सोच के साथ, नया साल मुबारक हो"


"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...