शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

जाने चले जाते हैं कहाँ .....

                       

                                 जाने चले जाते हैं कहाँ ,दुनिया से जाने वाले, जाने चले जाते हैं कहाँ 
                                                  कैसे ढूढ़े कोई उनको ,नहीं क़दमों के निशां 

     अक्सर, मैं भी यही सोचती हूँ आखिर दुनिया से जाने वाले कहाँ चले जाते हैं ? कहते हैं  इस जहाँ  से परे भी कोई जहाँ है, हमें छोड़ शायद वो उसी अलौकिक जहाँ में चले जाते हैं। क्या सचमुच ऐसी कोई दुनिया है ? क्या सचमुच आत्मा अमर है ? क्या वो हमसे बिछड़कर भी हमें देख सुन सकती है? क्या वो आत्माएं भी खुद को हमारी भावनाओं से जोड़ पाती है ? क्या वो दूसरे जहाँ में जाने के बाद भी हमें  हँसते देखकर खुश होते हैं और हमें  उदास देख वो भी उदास हो जाते हैं ? श्राद्ध के दिन चल रहे हैं सारे लोग पितरो के आत्मा की तृप्ति के लिए पूजा-पाठ ,दान-पुण्य कर रहे हैं, क्या हमारे द्वारा  किये हुए दान और तर्पण हमसे बिछड़े हमारे प्रियजनों की आत्मा तक पहुंचते हैं और उन्हें तृप्त करते हैं ? ऐसे अनगिनत सवाल मन में उमड़ते रहते हैं ,ये सारी बाते सत्य है या मिथ्य ?

      युगों से श्राद्ध के विधि-विधान चले आ रहे हैं, हम सब अपने पितरो एवं प्रियजनों के आत्मा की शांति के लिए पूजा-पाठ, दान-पुण्य और जल तर्पण करते आ रहे हैं। आत्मा जैसी कोई चीज़ का इस ब्रह्माण्ड में आस्तित्व तो है इसकी पुष्टि तो विज्ञान भी कर चूका है। पर क्या इन बाहरी क्रियाकलापों से आत्मा को तृप्ति मिलती होगी ? मुझे नहीं पता आत्मा तिल और जल के तर्पण से तृप्त होती है या ब्राह्मणों को भोजन कराने से ,गाय और कौओ को रोटी खिलाने से या गरीबों में वस्त्र और भोजन बांटने से, मंदिरो में दान करने से या पूजा-पाठ-हवन आदि करने से। 

     मुझे तो बस इतना महसूस होता है कि हमसे बिछड़ें  हमारे प्रियजनों की आत्मा  एक अदृश्य तरगों के रूप में हमारे  इर्द-गिर्द तो जरूर रहती है और हमें  दुखी  देख तड़पती है और हमें  खुश देखकर संतुष्ट होती है, उनके द्वारा  दिए गए अच्छे संस्कारों का जब हम पालन करते हैं तो उन्हें शांति मिलती है,  अपने प्रियजनों को सुखी और संतुष्ट देख उन्हें तृप्ति मिलती है  और हमारे सतकर्मो  से उन्हें मोक्ष मिलती है। 


     मुझे तो यही महसूस होता है, जिन्हे हम प्यार करते हैं वो आत्माएं शायद हमारे आस-पास ही होती है वो भी  अनदेखी  हवाओं की तरह बस हमें  छूकर गुजर जाती है।उन्हें याद करके एक पल के लिए आँखें मूंदते ही हमें  उनका स्पर्श महसूस होने लगता है। हम ही उन्हें महसूस नहीं करते शायद वो भी हमारे सुख-दुःख, आँसू और हँसी को महसूस करते  होंगे तभी तो यदा-कदा हमारे  सपनो में आकर  हमें  दिलासा भी दे जाते हैं और कभी-कभी तो अपने होने का एहसास भी करा जाते  हैं । 


     शायद, मृतक आत्माओं के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि ही श्राद्ध है। सिर्फ विधि-विधान का अनुसरण नहीं बल्कि हर वो कार्य जिसमे परहित छुपा हो और पूरी श्रद्धा के साथ की गयी हो, अपने पितरो के प्रति आदर ,सम्मान और प्यार के भावना के साथ की गई हो, अपने पितरो के सिर्फ सतकर्मो को याद करके की गई हो वही सच्ची श्रद्धांजलि है। 

       शायद, ये श्राद्धपक्ष सिर्फ हमें  हमारे पितरो और प्रियेजनों की याद दिलाने ही नहीं आता बल्कि हमें  ये याद दिलाने के लिए भी आता है कि -एक दिन हमें  भी इस जहाँ को छोड़ उस अलौकिक जहाँ में जाना है जहाँ  साथ कोई नहीं होगा  सिर्फ अपने कर्म ही साथ जायेगे और पीछे छोड़ जायेगे अपनी अच्छे कर्मो की दांस्ता और प्यारी सी यादें  जो हमारे प्रियजनो के दिलो में हमारे लिए हमेशा जिन्दा रहेगी और वो अच्छी यादें हमारे वर्तमान व्यक्तित्व पर ही निर्भर करेगी। 

     गलत कहते हैं लोग -"खाली हाथ आये थे हम ,खाली हाथ जायेगे" ना हम खाली हाथ आये है ना खाली जायेगे। हम जब जायेगे तो साथ अपने कर्मो का पिटारा लेकर जायेगे और जब भी फिर इस जहाँ में वापस आना होगा तो उन्ही कर्मो के हिसाब से अपने हाथों  में अपने भाग्य की लकीरें ले कर आयेगे। हाँ,भौतिक सुख-सुविधा के सामान और अपने प्रिये यही पीछे छूट जायेगे। 

     यकीनन,ये श्राद्ध हमें  याद दिलाने आता है कि -इस दुनिया में तुम्हारा आना-जाना लगा रहेंगा और तुम्हारे कर्म ही तुम्हारे सच्चे साथी है। इस श्राद्धपक्ष मैं अपने  प्रिय पापा और भाई तुल्य बहनोई जो मुझे भी अपनी बड़ी बहन समान सम्मान और स्नेह देते थे उनके प्रति अपनी सच्चीश्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ और उन्हें ये वचन भी देती हूँ कि-मैं उनके अधूरे कामो को, अधूरे सपनो को पूरा करने की पूरी ईमानदारी से कोशिश करुँगी। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।    

मंगलवार, 16 जुलाई 2019

गुरु वंदना

गुरुपर्व के पावन अवसर पर " गायत्री परिवार "द्वारा रचित एक हृदयस्पर्शी गुरु वंदना आप सब के साथ साझा कर रही हूँ जो मेरे पापा को अत्यंत प्रिये था और वो इसे हर वक़्त गुनगुनाया करते रहते थे और कहते थे इससे मुझे गुरु की शक्ति मिलती हैं। 

गुरु वो हाथ है जो मुश्किल घडी में भी हमें थामे रखता है 



गुरुवर  तुम्ही बता दो,किसके शरण में जायें     
किसके चरण में गिरकर ,मन की व्यथा सुनायें  
गुरुवर तुम्ही बता दो-----

 अज्ञान के तिमिर ने चारो तरफ से घेरा
क्या रात है प्रलय की ,होगा नहीं सवेरा 
क्या होगा नहीं सवेरा ---
पथ और प्रकाश दो तो ,चलने की शक्ति पायें  
गुरुवर तुम्ही बता दो -------

जीवन के देवता का ,करते रहे निरादर 
कैसे करे समर्पित ,जीवन की जीर्ण चादर  
जीवन की जीर्ण चादर -----
यह पाप की गठरियाँ ,क्या खोलकर दिखायें  
गुरुवर तुम्ही बता दो-----

माना कपूत है हम, क्या रुष्ट रह सकोगें  
मुस्कान ,प्यार, अमृत ,क्या दे नहीं सकोगें  
क्या दे नहीं सकोगें-------
दाता तुम्हारे दर से ,जायें तो कहाँ जायें  
गुरुवर तुम्ही बता दो -------
दाता तुम्ही बता दो --------


सच,है गुरु बिन ज्ञान नहीं होता और आज के युग में गुरु का ही आभाव है। 
मेरा मानना है कि - गुरु सिर्फ वही नहीं है जो संत-महात्मा ही हो 
यदि एक बच्चा भी आपको कोई ज्ञान दे जाता है तो उस पल वही आप का गुरु है 
गुरु अर्थात ज्ञान---
गुरुपर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ,आप सब पर गुरु की कृपा बनी रहें .... 






शनिवार, 29 जून 2019

आत्ममंथन



    आराधना का मन आज बहुत व्यथित हो रहा था। वो फुट फुट  कर रो रही थी और खुद  को कोसे भी जा रही  थी। अपने आप में ही बड़बड़ाये जा रही थी "क्या मिला मुझे सबको इतना प्यार करके,सब पर अपना आप लुटा के ,बचपन के सुख ,जवानी की खुशियाँ तक लुटा दी तुमने ,सबको बाँटा ही कभी किसी से कुछ मांगा नहीं लेकिन आज फिर भी खाली हाथ हो,क्यों ?"वो खुद को कोसे जा रही थी और रोये जा रही थी।

"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "

मानव सभ्यता के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है तो उनकी वजह आने वाली बाढ़ भी हमारी नियति है। हज़ारों वर्षों से नदियों के पानी क...