नदी,सागर ,झील या झरने ये सारे जल के स्त्रोत है, यही हमारे जीवन के आधार भी है। ये सब जानते और मानते भी है कि " जल ही जीवन है." जीवन से हमारा तात्त्पर्य सिर्फ मानव जीवन से नहीं है। जीवन अर्थात " प्रकृति " अगर प्रकृति है तो हम है। लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम है ? क्या हम जिन्दा है? क्या हमने अपनी नदियों को , तालाबों को ,झरनो को ,समंदर को ,हवाओ को, यहाँ तक कि धरती माँ तक को जिन्दा छोड़ा है? इन्ही से तो हमारा आस्तित्व है न....अपनी भागती दोड़ती दिनचर्या को एक पल के लिए रोके और अपनी चारो तरफ एक नज़र डाले और दो घडी के लिए सोचे....हमने खुद अपने ही हाथो अपनी प्रकृति को यहाँ तक की अपने चरित्र तक को कितना दूषित कर लिया है।
जीवन का सारा खेल एक नज़र और नज़रिये का ही तो होता है ,किसी को पथ्थर में भगवान नजर आते है किसी को भगवान भी पत्थर के नज़र आते है----
शुक्रवार, 25 जनवरी 2019
सोमवार, 7 जनवरी 2019
" बृद्धाआश्रम "बनाम "सेकेण्ड इनिंग होम "
" बृद्धाआश्रम "ये शब्द सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। कितना डरावना है ये शब्द और कितनी डरावनी है इस घर यानि "आश्रम" की कल्पना। अपनी भागती दौड़ती ज़िन्दगी में दो पल ठहरें और सोचे, आप भी 60 -65 साल के हो चुके हैं ,अपनी नौकरी और घर की ज़िम्मेदारियों से आज़ाद हो चुके हैं। आप के बच्चों के पास फुर्सत नही है कि वो आप के लिए थोड़ा समय निकले और आप की देखभाल करें।(कृपया ये लेख पूरा पढ़ेगे )
बुधवार, 2 जनवरी 2019
जीवन का अनमोल "अवॉर्ड "
" नववर्ष मंगलमय हो "
" हमारा देश और समज नशामुक्त हो "
नशा जो सुरसा बन हमारी युवा पीढ़ी को निगले जा रहा है...
अपने आस पास नजरे घुमाये देखे...आये दिन कई घर और ज़िंदगियाँ
इस नशे रुपी सुरसा के मुख में समाती जा रही है। मेरे जीवन से जुड़ा मेरा ये
संस्मरण नशामुक्ति के खिलाफ एक आवाज़ है........
" हमारा देश और समज नशामुक्त हो "
नशा जो सुरसा बन हमारी युवा पीढ़ी को निगले जा रहा है...
अपने आस पास नजरे घुमाये देखे...आये दिन कई घर और ज़िंदगियाँ
इस नशे रुपी सुरसा के मुख में समाती जा रही है। मेरे जीवन से जुड़ा मेरा ये
संस्मरण नशामुक्ति के खिलाफ एक आवाज़ है........
सुबह-सुबह अभी उठ के चाय ही पी रही थी कि फोन की घंटी बजी...मैंने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से चहकते हुए शालू की आवाज़ आई, हैलो माँ --" Merry Christmas" मैंने कहा -" Merry Christmas you too" बेटा , मैं अभी-अभी सो कर उठी हूँ और उठते ही मैंने सोचा सबसे पहले अपने सेंटा को Wish करूँ--वो चहकते हुए बोली। मैंने कहा --बेटा, मैं तो आप से इतनी दूर हूँ और...पिछले साल से मैंने आप को कोई गिफ्ट भी नहीं दिया..फिर मैं आप की सेंटा कैसे हुई? उसने बड़े प्यारी आवाज़ में कहा -" माँ,आप जो हमें गिफ्ट दे चुकी है उससे बड़ा गिफ्ट ना किसी ने दिया है और ना दे सकता है...उससे बड़ा गिफ्ट तो कोई हो ही नहीं सकता " मैं थोड़ी सोचती हई बोली --ऐसा कौन सा बड़ा गिफ्ट मैंने दे दिया आप को बच्चे, जो मुझे याद भी नही। रुथे हुए गले से वो बोली -" पापा " आपने हमें हमारे पापा को वापस हमें दिया है माँ। ये सुन मैं निशब्द हो गई।
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"हमारी जागरूकता ही प्राकृतिक त्रासदी को रोक सकती है "
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