
क्या कभी आपने समंदर किनारे बैठ कर उसकी आती-जाती लहरों को ध्यान से देखा हैं ? सागर दिन में तो बिल्कुल शांत और गंभीर होता है। ऐसा लगता है जैसे, अपना विशाल आँचल फैलाये....और उसके अंदर अनेकों राज छुपाये....एक खामोश लड़की हो.....जिसने सारे जहां के दर्द और सारी दुनिया की गन्दगियों को अपने दामन मे समेट रखा है। लेकिन फिर भी खामोश है....उसे किसी से कोई शिकायत नहीं....कोई दुःख नहीं ....कोई तड़प नहीं। ( वैसे हमेशा से सागर को पुरुष के रूप में ही सम्बोधित किया गया है लेकिन मुझे उसमे एक नारी दिखती है) हाँ, कभी कभी उसमें हल्की-फुल्की लहरें जरूर उठती रहती है। उस पल ऐसा लगता है जैसे, दर्द सहते-सहते अचानक से वो तड़प उठी हो और उसके दिल की तड़प ने ही लहरों का रूप ले लिया हो।