शुक्रवार, 17 जून 2022

"आ अब लौट चले"




"निकले थे कहाँ जाने के लिए,पहुँचे  है कहाँ मालूम नहीं 

        अब अपने भटकते क़दमों को,मंजिल  का निशां मालूम नहीं "


इस सदी के मानव जाति का आज यही ह्रस हो रहा है "कहाँ जाने के लिए निकले थे और कहाँ पहुँच गए है"।   

एक युग था जब मानव घर से  निकलता था आध्यात्म की तलाश में,निर्वाण की तलाश में,मानव कल्याण के मार्ग की तलाश में ,विश्व शांति के उपाय की तलाश में और खुद की तलाश में....जब लौट कर आता था तो खुद का ही नहीं सम्पूर्ण मानव जाति का कल्याण करता था। उन्हें पता होता था वो कहाँ और क्यों जा रहें और यकीन होता था कि  जब लौटेगे तो शुभ फल के साथ। जब जीने के मूल्य कुछ और थे,साधन कुछ और,प्राथमिकता  कुछ और होती थी। जब ऐश्वर्य की अधिकता के वावजूद "साधा जीवन और उच्च विचार" था। जब संघर्ष भी होता था तो सिर्फ  अपने मान-मर्यादा,स्वाभिमान-संस्कार और अधिकार  की रक्षा हेतु। जब प्रकृति भी भरपूर थी तब भी मानव तो मानव जानवर भी उससे उतना ही लेते थे जितने से उनकी क्षुधा पूर्ति हो  जाए। जितना लेते  थे उससे कही ज्यादा प्रकृति को वापस  भी करते थे संतुलन बना रहता था। घर,समाज और देश में शांति के साथ-साथ  वातावरण में भी शांति व्याप्त होता था।  उन दिनों की कल्पना करने मात्र से ही आज भी शांति की अनुभूति होती है। क्यूँ,सच कहा न ?

ज्यादा नहीं आज से तीस-पैतीस वर्ष पूर्व तक भी जीवन इतना मुश्किल तो नहीं था जितना अभी है। सूरजदेव कितनी भी तपिश बरसाए आम-बरगद और पीपल की  ठंडी छाँव हर जगह मिल  जाती थी,गर्मी बढ़ते ही बगीचे की ठंडी छाँव में खाट बिछ जाया करते थे,जब प्यास बुझाने  के लिए सिर्फ पशु-पक्षी और जानवरों  के लिए ही नहीं मानव के लिए भी नदी,ताल-तलईयां और कुपो में भरपूर स्वच्छ जल था। मट्टी के घड़े में सौंधी खशबू से भरा जल तन और मन दोनों को शीतलता प्रदान करने में सक्षम होता था। जीवन सुखद स्वप्नों सा था। आज तो शहर को छोड़े गांव में भी  यदा-कदा ही ये सब देखने को मिलता है। चंद सालों में क्या से क्या हो गया,है न  ??

अब कुछ लोगों का उत्तर होगा "जीवन बहुत आरामदायक और सुविधाओं से लेस हो गया,क्या कुछ नहीं पाया हमने,विज्ञान के चमत्कार ने हमारी हथेलियों में वो ऊर्जा भर दी कि क्षण भर में हम चाँद को छू लेते है,प्यास बुझाने लिए ताल-तलैया तक चलकर कौन जाए, घर में ही शीतल पेय की मशीन पड़ी है,पेड़ों की छाँव किसे चाहिए जब एक बटन दबाते ही सारा घर ठंडा-ठंडा,कूल-कूल हो जाए। शीतल ठंडी हवा का तो मोल ही ख़त्म हो गया,घर हो या ऑफिस चिल ही चिल है। अब इनसे कोई पूछे कि- जब इतने चिल हो ही तो फिर गर्मी-गर्मी क्यों चिल्लाना। अच्छा हाँ,एसी से  निकलते ही तुम्हारा कोमल तन सूरज की तपिश को नहीं सह पाता होगा न। वैसे जनाब हकीकत भी यही है कि-गर्मी आप जैसे लोगो के लिए है भी कहाँ,जलवायु परिवर्तन से आपको क्या ? गर्मी तो बस गरीबो और पशु-पक्षियों के लिए है,उनके एसी-कूलर और फ्रिज को तो तुमने तबाह बर्बाद कर दिया। अपने सुख-सुविधा और अत्यधिक की चाह में तुमने अपना वर्तमान ही नहीं भविष्य को भी जहनुम बना दिया। थूकेगी आने पीढ़ी तुम सब पर,तोहमत लगाएगी कि-तुम सब के किये की  सजा हम और हमारी आने वाली नस्लें भोगेगी। 

अविष्कार करना अनुचित नहीं होता,गलत होता है बिना सोचे-समझे उनका  ज़रूरत से ज्यादा उपभोग करना,उसके  हानिकारक पहलू के विषय में सोच-विचार नहीं करना। हमने भी यही किया -"कहाँ जाने की लिए निकले थे और कहाँ पहुँच गए है।"हम भी एक दिन घर से निकले थे अपने जीवन को सहुलियतो से भरने, चांद तारों पर घर बनाने, धरती से आकाश की दुरी को नापने, पाया भी बहुत कुछ परन्तु, क़ीमत क्या चुकाई ? हमारी नादानी ने हमें मौका ही नहीं दिया सोचने का कि प्रकृति से अप्राकृतिक होने की हमें सजा क्या मिलेगी?  आज सूरज आग उगल रहा है,दिन-ब-दिन गर्मी अपनी अपनी हदे पार करती जा रही है,नदी-तालाब सुख गए, पेड़ झुलस रहें हैं, धरती तप रही है, अम्बर जल रहा है। हमारे नौनिहालों का बचपन बदहाल है और वो घर में कैद रहने को मजबूर है,अब हमारे बनाये एसी-कूलर भी नाकाम हो रहें हैं, अब क्या करेंगे ??

ये अविष्कारों के जनक और हमारे बाप-दादाओ ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि- हम किस आग में झोंक रहे हैं अपनी नस्लों को और ना अभी तक हमें ही सोचने की फुर्सत मिली है।विज्ञान ने ही हमारा भला किया और विज्ञान ही हमारा विनाश भी कर रहा है क्योंकि कोई भी गतिविधि सीमावद्ध ही अच्छी और सार्थक होती है। जलवायु परिवर्तन और  बढ़ते तापमान ने हर एक जागरूक इन्सान की चिंता बढ़ा दी है। यदि इस पर अभी भी रोक लगाने का प्रयास नहीं किया गया तो आने वाले दिन इतनी डरावनी होगी जिसकी कल्पना मात्र से ही रूह कंपा जा रही है।

समस्या होती है तो सामाधान भी होता है। ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका सामाधान ना हो। इस तपते और बदलते वातावरण के साथ  दिनचर्या अर्थात सोने,उठने,काम करने,या स्कूल और दफ्तर के समय को बदलना विकल्प नहीं है। दिनचर्या बदलने से तापमान नहीं बदलने वाला, बदलना ही है तो खुद को बदलिए। अपने जीवन शैली को ही  बदलना होगा और कोई विकल्प है ही नहीं । अब ये ना कहे कि-एक हमारे करने से क्या होगा ? "हमें लौटना ही होगा अपनी भारतीय जीवन शैली की ओर"  जो प्रकृति और संस्कृति दोनों के करीब थी ।भारतीय सभ्यता सबसे पुरानी वेदिक सभ्यता है जहाँ "सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय" का सिद्धांत था। सर्वजन से अभिप्राय सिर्फ मनुष्य जाति से ही नहीं था इनमे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी,समेत सम्पूर्ण ब्रह्मांड आता था। बहुत जी लिये पश्चिमी जीवन शैली से, अब तो उन्हें भी एहसास हो गया है कि उनका तरीका सही नहीं था उन्होंने "यूटर्न" ले लिया है और हमारी सभ्यता अपना रहें हैं।लेकिन हम अभी भी अपनी छोड़ दूसरों के नकल में ही लगे है। अपनी मानसिकता बदलिए,सब कुछ बदलना आसान हो जायेगा। अब ये भी ना कहे कि सिर्फ भारत के लोगो के बदलने से क्या होगा बाकि दुनिया तो परमाणु युद्ध के कगार पर खड़ी है,रूस और यूक्रेन के युद्ध ने वातावरण का कितना नाश किया होगा ?? हम अपने हिस्से की जिम्मेदारी ले सकते हैं पूरी दुनिया की नहीं और हमें पूरी ईमानदारी से वही निभाना है।   

 सोशल मिडिया में जहाँ बहुत बुराई है वहाँ कुछ अच्छाई भी है ये हम पर निर्भर है कि- हम अच्छाई को बढ़ावा दे रहें हैं या बुराई को। सोशल मिडिया पर दिख रहा है कि -बहुत से ऐसे लोग है जो प्रकृति को लेकर फिक्रमंद है। प्रकृति के संरक्षण की दिशा में बहुत से जागरुक लोग नित्य नए प्रयास भी कर रहे हैं और सफल भी हो रहें हैं। उनमे से एक तो हमारे "आदरणीय संदीप जी" ही है। मुझे सोशल मिडिया पर ऐसे कई पेज मिलते है जहाँ पर परम्परागत पुरानी जीवन शैली को अपनाकर  प्रकृति को संरक्षित करने के प्रयास में जागरूक लोगो के बारे में बताया जाता है। जीवन शैली बदलेगी तो प्रकृति खुद को स्वतः ही बदल लेगी। करोना-काल में इस बात के प्रत्यक्षदर्शी हम स्वयं रहें हैं। एक सोशल पेज को में यहाँ साझा कर रही हूँ। इस पेज को साझा करते हुए मेरा उदेश्य सिर्फ इतना है कि-हम इनसे प्रेरणा ले सकते हैं। मैंने अपनी जीवन में इससे प्रेरित होकर बदलाव किये है। (मैं इस पेज को वक्तिगत फायदे के लिए प्रमोट नहीं कर रही) यकीन मानिये, हमारे छोटे-छोटे प्रयास वातावरण में बड़े-बड़े बदलाव लाने में सक्षम है। 

नोट-सोशल मिडिया पेज का नाम है-EcoFreaks by Anuj Ramatri (एक बार देखिएगा जरूर )

("प्रकृति दर्शन"पत्रिका के जून अंक में प्रकाशित मेरा लेख,आदरणीय संदीप जी को बहुत बहुत धन्यवाद )


 



25 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-06-2022) को चर्चा मंच     "अमलतास के झूमर"  (चर्चा अंक 4464)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार सर 🙏

      हटाएं
  2. सार्थक और भविष्य के लिए जागरूक करने वाला लेख ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद दी, जागरूकता तो लानी ही होगी, सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपको 🙏

      हटाएं
  3. वाह वाह वाह वाह! अप्रतिम अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. वाकई हमें अभी भी चेतना होगा ,तभी आने वाली समस्याओं पर शायद हम काबू पा सकें । आपने सार्थक लिखा इस पर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वागत है रंजू जी, सराहना हेतु हृदयतल से धन्यवाद आपको 🙏

      हटाएं
  5. चिंतन से भरपूर लेख हर तथ्य हमें सचेत कर रहा है, प्रकृति और पर्यावरण को महत्व और ममत्व दोनों देने होंगे तभी आगे आने वाली नस्लें कुछ शांति युक्त जीवन जी सकेंगी।
    सांगोपांग प्रेरक सुदृढ़ लेख कामिनी जी ।
    साधुवाद आपको।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी, सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया देने के लिए हृदयतल से आभारी हूं 🙏

      हटाएं
  6. सामयिक व सार्थक लेख...👏👏👏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. स्वागत है आपका, सराहना हेतु बहुत बहुत धन्यवाद एवं सादर नमस्कार 🙏

      हटाएं
  7. प्रकृति संरक्षण की दिशा में जागृत करता बहुत ही सार्थक और उपयोगी आलेख । बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं प्रिय कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
  8. दिल से शुक्रिया जिज्ञासा जी,, विषय चिंतनीय है इस पर ज्यादा से ज्यादा लिखना ज़रूरी है, सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया पाकर बेहद खुशी हुई,सादर नमन आपको 🙏

    जवाब देंहटाएं
  9. First You got a great blog. I will be interested in more similar topics. I see you got really very useful topics, I will be always checking your blog thanks.

    जवाब देंहटाएं
  10. पर्यावरण संरक्षण के प्रति आगाह करता बहुत ही चिंतनपरक लेख ।
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं कामिनी जी!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर

    1. बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी,सादर अभिवादन

      हटाएं
  11. डॉ विभा नायक24 जून 2022 को 10:16 pm बजे

    बहुत अच्छा लेख लिखा आपने। वास्तविकता है कि भौतिक उन्नति तो हमने की है पर इस प्रक्रिया में बहुत कुछ खो भी दिया है।

    जवाब देंहटाएं

  12. बहुत बहुत धन्यवाद स्वर्णा जी,सादर अभिवादन

    जवाब देंहटाएं
  13. सोशल मीडिया की तरह विज्ञान का भी सीमित उपयोग होना चाहिये...विज्ञान को मात्र सुविधाओं के विकास में लगाना उचित नहीं है...विचारणीय लेख...👍👍👍

    जवाब देंहटाएं
  14. आपकी उपस्थिति से लेखन सार्थक हुआ,सादर अभिवादन 🙏

    जवाब देंहटाएं
  15. Having read your article. I appreciate you are taking the time and the effort for putting this useful information together.

    जवाब देंहटाएं

kaminisinha1971@gmail.com

"नारी दिवस"

 नारी दिवस " नारी दिवस " अच्छा लगता है न जब इस विषय पर कुछ पढ़ने या सुनने को मिलता है। खुद के विषय में इतनी बड़ी-बड़ी और सम्मानजनक...