शनिवार, 4 अप्रैल 2020

" नन्हा देशभक्त "


" पापा देशभक्ति क्या होती हैं ?"  बेटा -देशभक्ति मतलब  "देश से प्यार करना" ....जैसे , आप जिस घर में रहते हो उससे प्यार करते हो न.... तो हम जिस देश में रहते हैं हमें उससे भी प्यार करना चाहिए।" पापा, तब तो देश से प्यार करना  अच्छी बात है"... फिर ये लोग भगत सिंह और उनके दोस्तों को फाँसी क्यों दे रहे हैं... ये लोग तो मर जाएंगे न। टीवी पर "शहीद  भगत सिंह" फिल्म आ रही थी,  जब उन्हें फाँसी दी जा रही थी तो... नन्हा युवी पापा से पूछ बैठा।  बेटा-- ये लोग मरेंगे नहीं, ये तो शहीद होंगे ...जो देश के लिए लड़ते हैं वो कभी मरते नहीं है। पापा .." ये देश के लिए क्यूँ लड़ रहे थे"  लड़ना तो बुरी बात है न। हाँ बेटा --बुरी बात तो है मगर .... यदि तुम्हारे घर में कोई जबरन घुसकर उसे अपना घर कहने लगे.... तुम्हारे माँ-पापा को भी तुमसे छीनने लगे.... तो तुम क्या करोगे।" मैं तो उसे डंडे से मार-मारकर बाहर भगा दूँगा ".... शाबास, ऐसे ही हमारा देश भी तो हम सबका  एक बड़ा सा घर है न ....और जब हमारे देश में अग्रेज घुस आये थे ....तो भगत सिंह और उनके दोस्त उन्हें भगाने के लिए लड़ रहे थे .....परन्तु, उस वक़्त अग्रेज उनसे ज्यादा ताकतवर थे तो.....उन्होंने भगत सिंह को फाँसी पर चढ़ा दिया लेकिन..... भगत सिंह जैसे बहुत सारे देशभक्तों ने मिलकर अग्रेजो को अपने देश से भगा दिया।
" तो पापा मैं भी अपने देश से बहुत प्यार करता हूँ मैं भी देशभक्त हूँ" युवी खड़े होकर जोश में  बोला।  मगर अगले ही पल वो सहम गया ....क्या हुआ बेटा जी --डर क्यूँ गए तुम। पापा-  "जो देश से प्यार करते हैं वो सभी तो  मर जाते हैं न और.... मुझे तो मरने से बहुत डर लगता है..... फिर तो मैं कभी देशभक्त नहीं बन पाऊँगा "-कहते हुए युवी थोड़ा रुआंसा हो गया । आज  ऐसा नहीं है बेटा .....आज तो सच्चा देशभक्त ही जिन्दा रहेगा .....जो देश के दुश्मन है वही मरेंगे.... तुम देशभक्त हो ... सबसे बड़े देशभक्त और तुम जिन्दा भी रहोगे।" वो कैसे पापा" युवी ने उत्सुकता से पूछा। आपको पता है न आज कल हमलोग घर में क्यों बंद होकर रह रहे हैं....
 हाँ पापा, . कोरोना बीमारी फैली है इसीलिए। हाँ बेटा जी , ये कोरोना बहुत बड़ा देश का दुश्मन है....और हमें इसे भगाना  है और.... सबसे बड़ा देशभक्त बनना है.....और, कोरोना को कैसे भगाना है.. वो तो तुम जानते ही हो। हाँ पापा  - युवी ख़ुशी  से उछलता हुआ बोला --" मुझे पता है हम घर के भीतर रहेंगे तो कोरोना हमसे डर कर भाग जाएगा और.... हम देशभक्त कहलाएंगे।"  तो पापा क्या हमारा नाम भी देशभक्तों के नाम के साथ आएगा"...  हाँ बेटा जी,  जो जिन्दा रहेंगे...वो  सभी देशभक्त कहलाएंगे।" समझे न मेरे देश के छोटे सिपाही "- कहते हुए अभिषेक ने युवी को गले से लगा लिया।

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

दूरियाँ भी है जरुरी

" हैप्पी बर्थ डे बेटा जी "

" क्या मम्मा ,कैसा बर्थ डे ना केक है, ना पापा है और ना ही कोई अपना फिर कैसा बर्थ डे "फोन में ही देखते हुए  उदास आवाज में मनु  बोली ...अरे, इधर देखो तो सही ...नीरा ने कहा। अरे, मम्मा ये क्या हैं... नीरा के हाथों में एक छोटी से प्लेट में एक छोटा सा केक सजा देख मनु चहकती हुई उठ बैठी..... कैसे किया आपने घर में तो कुछ भी नहीं था। बस,  बेटा जी , जो कुछ भी था... जैसे , थोड़ा ब्रेड, थोड़ा आमंड बटर, थोड़ा ड्राई फ्रूट्स और ढेर सारा प्यार मिलाकर.... मैं ये छोटा सा केक लाई हूँ .... उठो -उठो,  सबको विडिओ कॉल करते हैं और केक काटते हैं ....मनु नीरा के गले से लिपटकर उसे चूमने लगी। फिर विडिओ कॉल पर ही सबके साथ मिलकर मनु ने केक कटाकर अपना जन्मदिन मनाया। 

    मम्मा ,कैसा दिन आ गया है न..... हमने कभी सोचा भी नहीं था कि -हम कभी ऐसे ...सबसे इतनी दूर अकेले होकर.... अपना बर्थ डे मनाएंगे। कोई बात नहीं बेटा,  ये दिन भी एक यादगार हो सकता है न ....पता है आपको ,
जब हरपल  हम सबके साथ होते हैं न तो उनकी अहमियत भूल जाते हैं .....दूरियाँ हमें सबकी अहमियत समझती है और अपनों का कद्र करना सिखाती है.....जो परिवार के करीब होते हुए भी परिवार की परवाह ना करके सिर्फ भौतिक सुखों के पीछे भागते हैं ....उस पल उन्हें समझ ही नहीं आता कि -जिसके लिए आप कमा रहे हैं .. उन्ही को भूले जा रहें हो ....रोटी कमाने के लिए घर से निकलते हैं और रोटी खाने की ही फुरसत नहीं होती...कोरोना काल का ये पल उन्हें समझा रहा है कि -भौतिक सुख तुम्हें बाहरी खुशियाँ तो दे सकती है मगर साथ ही भटकाव भी दे रही है..... परिवार  के बीच रहकर नमक रोटी खाकर जो  सुख और शांति तुम्हें मिलेगी वो परमानंद है....जो तुम्हें  परमात्मा के करीब ले जाएगा..... देखो न बेटा,  आज पैसा होते हुए भी हम जरूरत की चीज़े नहीं खरीद पा रहे हैं ....ये हमें कम में जीना सीखा रही है, है न  .....इतना ही नहीं,  ऐसे हालत में आगे हमें पैसों की कमी भी होगी और तब पैसो से दुरी..... हमें पैसे की अहमियत भी समझाएंगी ....  ऐसे में जिसने कम में ख़ुशी खरीदना और बाँटना सीख लिया न उनका समय सार्थक गुजरेगा.......बेटा,  ये पल हमें ढेरों अनुभव देकर जाएगा ......अब आप इस अनुभव को अपने जीवन में कैसे उतारते हो.... टूटकर बिखर जाते हो या अपने जीवन जीने का नजरिया बदलकर हमेशा के लिए सम्भल जाते हो.... ये आप पर निर्भर है.... बेटा,  ये बिपदा की घडी भी हमें बहुत कुछ समझाने- सीखने आई हैं.... अगर, हम समझना चाहे तो....यदि  अब भी नहीं समझे और सम्भले..... तो हमारा विनाश निश्चित है।  

     नीरा कहती जा रही थी और मनु उसके बाँहों में सोये-सोये ख़ामोशी से सब सुन रही थी.... शायद वो समझने की कोशिश कर रही थी .....जीवन के उतार-चढाव को,वक़्त के दिखाए फेर -बदल को, रिश्तो की अहमियत को ,अपनों के प्यार और एहसास को .....




शनिवार, 28 मार्च 2020

" काजल से अथाह प्रेम "


" काजल " गोरी के आँखों को सजाये  तो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा देता हैं.... नन्हे शिशु के नैनो में  जब माँ काजल भर के उसकी बलाएँ लेती हैं तो ....वही काजल उस शिशु के लिए नजरबटु बन शिशु की हर बुरी नजरों से रक्षा करता है लेकिन......वही काजल जब दामन पर लग जाएँ तो दाग बन जाता है।
   हमारे भारतीय संस्कृति के  श्रृंगार में काजल का एक खास स्थान है। यदि आँखें काजल बिना सुनी हो तो श्रृंगार अधूरा ही रहता है। काजल ने  गोरी के आँखों में ही अपनी  खास जगह नहीं बनाई बल्कि कवियों की कविताएं हो या गीतकारों के गीत या शायरों की शायरी काजल ने सबके दिलों और कलम पर भी अपना हक जमा रखा है।

    हर लड़की की तरह मेरा  भी काजल से गहरा संबंध रहा है। "काजल" ने मुझे मेरे जीवन का बहुत बड़ा  पाठ पढ़ाया है। अब आप सोचेंगे  कि - "काजल" क्या सीख दे सकती है। दे सकती......इस जहाँ कि... हर एक सय आपको कोई ना कोई सीख जरूर देती है। बात मेरे बचपन की है जब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। पापा मेरा एडमिशन शहर के सबसे अच्छे स्कुल में कराना चाहते थे। मैं एडमिशन के लिए गई... वहाँ मैं टेस्ट में पास भी हो गई। लेकिन क्लास ज्वाइन करने से पहले प्रिंसिपल ने कहा कि -"मुझे स्कूल बिलकुल साधारण भेष -भूषा में ही आना होगा"...बाकी सब तो ठीक था लेकिन,  मुझे "काजल" भी नहीं लगाना था....ये मेरे लिए बहुत मुश्किल था। क्योंकि मेरी माँ खुद भी कभी भी बिना काजल के नहीं रही थी और मुझे भी उस उम्र तक याद नहीं कि.. एक दिन भी मैं बिना काजल लगाये रही हूँ। खैर ,स्कूल जाना शुरू हुआ बिना काजल के...मगर पहले ही दिन से मेरी आँखों में  सूजन शुरू हो गई ....दो दिन गुजरे ...आँखों से पानी आना शुरू हो गया और तीसरे दिन तो मेरी आँखों ने  काजल की जुदाई को बर्दास्त करने से इंकार ही कर दिया....चौथे दिन , वो लाल -पिली हुई और पाँचवे दिन नाराज होकर पलको ने अपना पट बंद ही कर लिया। साथ ही साथ मेरा स्कूल जाना भी बंद हो गया। हार कर माँ ने आँखों का काजल से मिलन  करा ही दिया और फिर जैसे ही ....दोनों का मिलन हुआ आँखों की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा और अगले दिन ही वो सारी नाराजगी भूल गई और... अपना पट खोल दी।
    माँ -पापा समझ चुके थे कि -मेरी आँखें काजल की जुदाई बर्दास्त नहीं कर पाएंगी सो ...उन्होंने प्रिंसपल के पास जाकर मेरी आँखों की व्यथा-कथा सुनाई और उनसे मिन्नत की कि-- मुझे काजल लगाकर आने की इजाजत दे दे ....मगर प्रिंसिपल को मेरी आँखों पर जरा भी दया नहीं आई.... वो किसी भी हाल में अपने स्कूल का नियम नहीं तोड़ सकती थी।माँ एक महीने  तक बार-बार  प्रयास करती रही कि -मेरी आँखों को काजल के बिना रहना सीखा सकें मगर.... वो असफल रही  लिहाज माँ -पापा ने ही हथियार डाल दिए और मेरा एडमिसन किसी और स्कूल में कराया जहाँ ...उन्हें मेरी आँखों को काजल से मिलने से कोई आपत्ति नहीं थी।

    इस घटना से मुझे बेहद तकलीफ हुई ...मेरा भी सपना था उस बड़े स्कूल में पढ़ने का मगर मेरी आँखों का काजल से अथाह प्रेम ने मेरा वो सपना तोड़ दिया। मैंने उसी दिन तय कर लिया कि.. इनका संबंध तो तोड़कर ही रहूँगी और उसी दिन... उस छोटी उम्र में ही मैंने ये भी प्रण लिया कि -"मैं खुद को कभी भी ,किसी भी चीज की ..किसी भी आदत की आदि नहीं बनाऊँगी।"  मैंने धीरे-धीरे आँखों को काजल से दूर कर दिया और ऐसा दूर किया कि - चौथी कक्षा के बाद आज तक मेरी आँखों ने  काजल को नहीं देखा।

   और इस तरह ....काजल ने मुझे जीवन का एक बड़ा सबक सिखाया - " कभी भी किसी चीज के आदि मत बनो ,किसी से इतना मत जुडो कि ---" उससे अलगाव बर्दास्त नहीं कर सको " हमें नहीं पता कब... हम से हमारी कोई प्यारी चीज छीन ली जाएँ या हम उसे छोड़ने पर मजबूर हो जाएँ। 


"नारी दिवस"

 नारी दिवस " नारी दिवस " अच्छा लगता है न जब इस विषय पर कुछ पढ़ने या सुनने को मिलता है। खुद के विषय में इतनी बड़ी-बड़ी और सम्मानजनक...