" तू कहे तो तेरे ही कदम के मैं निशानों पे चलूँ रुक इशारे पे "
तुम्हारे क़दमों का अनुसरण करते हुए.....तुम्हारे पीछे- पीछे हमेशा से चलती रही हूँ....चलती रहूंगी आखिरी साँस तक..... बिना कोई सवाल किये.....बिना किसी शिकायत के .....रास्ते चाहें पथरीले हो या तपती रेगिस्तान के...। तुम्हे तो मुझे आवाज़ देने की भी जरूरत नहीं पड़ती....ना ही पीछे मुड़कर देखने की .....क्योँकि तुम्हे इस बात का यकीन हैं कि -" मेरे पास कोई और दूसरी राह तो हैं नहीं.... जाऊँगी कहाँ.....तुम्हारे पीछे ही मुझे आना हैं....खुद को तुम्हे समर्पित जो कर चुकी हूँ.....मैं तो सदियों से यही करती आ रही हूँ....करती भी रहूंगी.....। "
मगर, आज ना जाने क्युँ तुमसे कुछ सवाल करने का दिल कर रहा हैं ...मुझे संदेह भी हैं कि- क्या तुम मेरे सवालों का जबाब दे पाओगें ? संदेह होने के वावजूद एक बार तुमसे पूछना तो जरुरी हैं न.....अगर मैं कहूँ कि -
" क्या तुम भी कभी मेरे लिए ये कर सकोगे ....क्या हमेशा आगे चलने वाले "तुम" कभी मेरे पीछे भी चल सकोगे....क्या तुम मेरे पदचिन्हो का अनुसरण कर सकोगे ....मैं हर पल तुम्हारी परछाई बन तुम्हारे पीछे रही हूँ.....क्या तुम कभी मेरी परछाई बन पाओगे ....? " तुम्हारा "अहम" तुम्हे करने देगा मेरा अनुसरण.... हमेशा से तुम मुझे मंदबुद्धि समझते आये हो.....हमेशा तुम्हे ये लगा कि - मुझे ही तुम्हारे सहारे की जरूरत हैं....जबकि सहारा मैं तुम्हे देती हूँ...तुम्हारे पीछे- पीछे चल....मैं तुम्हे गिरने से बचाने की कोशिश करती रही हूँ .....
" क्या तुम भी कभी मेरे लिए ये कर सकोगे ....क्या हमेशा आगे चलने वाले "तुम" कभी मेरे पीछे भी चल सकोगे....क्या तुम मेरे पदचिन्हो का अनुसरण कर सकोगे ....मैं हर पल तुम्हारी परछाई बन तुम्हारे पीछे रही हूँ.....क्या तुम कभी मेरी परछाई बन पाओगे ....? " तुम्हारा "अहम" तुम्हे करने देगा मेरा अनुसरण.... हमेशा से तुम मुझे मंदबुद्धि समझते आये हो.....हमेशा तुम्हे ये लगा कि - मुझे ही तुम्हारे सहारे की जरूरत हैं....जबकि सहारा मैं तुम्हे देती हूँ...तुम्हारे पीछे- पीछे चल....मैं तुम्हे गिरने से बचाने की कोशिश करती रही हूँ .....
तुम्हे लगता हैं कि -" तुम मेरा भरण पोषण करते हो जबकि इसमें आधी भागीदारी मेरी भी होती हैं...तुम्हे लगता हैं तुम मुझे संभालते हो.....जबकि दुनिया भर की थकान को दूर करने के लिए तुम्हे मेरे आँचल के पनाह की जरूरत होती हैं.....मानती हूँ तुम अपने आँसू छुपा लेते हो.....मुझमे वो क्षमता नहीं....मेरे आँसू पलकों पर झलक आते हैं.....फिर भी बिना तुम्हारे कहे ही.....मैं तुम्हरे दर्द को अपने सीने में महसूस करती हूँ और तुम्हारे दर्द पर अपने स्नेह का मरहम लगाकर तुम्हारे होठो पर हँसी लाने की कोशिश करती हूँ...।
बस पूछना चाहती हूँ - "क्या मैं कभी तुमसे आगे जाना चहुँ तो तुम मेरे पीछे-पीछे आ सकते हो...यकीन मानो आगे बढ़कर भी मैं तुम्हारी राहो के कांटो को चुनकर, तुम्हारी राह को निष्कंटक ही करुँगी....बस,आगे बढ़ते हुए कभी जो "मैं " डगमगाऊं तो क्या तुम मुझे संभाल लोगे....आगे-आगे चलने का ताना तो ना दोगें.....?
बहुत बढ़िया। आत्मीयता का मधुर परिमल प्रवाह!बधाई और आभार!
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,सादर नमस्कार
हटाएंअगर आपसी तालमेल अच्छा है तो आगे कोई भी चले ...क्या फर्क पड़ता है।
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी पोस्ट।
सादर
सहृदय धन्यवाद सर ,तालमेल ही तो नहीं बना अब तक इसलिय फर्क तो पड़ता ही रहा हैं ,आपके सार्थक विचारों के लिए दिल से आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंमार्मिक और सशक्त प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर , दिल से आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंमार्मिक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार
हटाएंसहृदय धन्यवाद दी ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार आपका ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंन पीछे चलकर सम्हालने से न आगे जाकर काँटें बीनने से कोई फ़र्क आना है. सवाल वैसे ही रह जाएँगे बेजवाब. जहाँ सब सही वहाँ सवाल ही उत्पन्न न होंगे. बहुत सुन्दर लिखा आपने.
जवाब देंहटाएं" जहाँ सब सही वहाँ सवाल ही उत्पन्न न होंगे." बिलकुल सत्य कहा आपने -पर सही ही तो नहीं है तो सवाल भी है ,जबाब भी नहीं मिलेगा ये भी सत्य है।
हटाएंआपकी इस सार्थक प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया शबनम जी ,सादर नमस्कार
होना तो यह चाहिए कि कदम से कदम मिला कर चलें..ना कोई आगे..ना कोई पीछे..मगर ऐसा होता कहाँ है ।
जवाब देंहटाएंचिन्तनपरक लेख । सादर नमन कामिनी जी ।
दिल से धन्यवाद मीना जी ,सही कहा आपने कि - " कदम से कदम मिला कर चलना ही सही हैं "आपकी इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार ,सादर नमन
हटाएंबेहद मर्मस्पर्शी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद अनुराधा जी ,आपकी इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार ,सादर नमन
हटाएंप्रिय कामिनी, बहुत सुंदर लिखा है आपने। अंतिम परिच्छेद तो हृदय में उतर गया।
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद मीना जी ,आपकी इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार ,सादर नमन
हटाएंदिल को छू लेने वाली रचना।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंइस छोटी सी आशा या इच्छा को ना कहना ... क्यों ... जब दोनों एक ही पहियें हैं तो कौन आगे कौन पीछे ...
जवाब देंहटाएंपीछे कोई नहीं होता साथ चलना ही अच्छा होता है ... और साथ ही चलते हैं तो जीवन डोर बनी रहती है ... सुन्दर आलेख ...
सहृदय धन्यवाद दिगंबर जी,सहमत हूँ आपकी कथन से ,सादर नमस्कार
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आपका,सादर नमस्कार
हटाएंहमसफ़र का साथ होना ही काफी है। पर यदि दिल मील न हो तो ऐसे वक्त ये सवाल जरूर उठता है कि कौन आगे है और कौन पीछे।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी,बिलकुल सही कहा आपने ,सादर नमस्कार
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