कहते है, औरत को बेटी से ज्यादा बेटे की चाह होती है लेकिन मुझे ये धारणा थोड़ी गलत लगती है। पुत्र की कामना शायद वो सिर्फ परिवार और पति के इच्छा को पूरा करने और वंश को आगे बढ़ाने के मोह वश करती है। क्यूकि हमारे देश में औरते अपने ख़ुशी से ज्यादा दुसरो की ख़ुशी का ख्याल रखती है। वरना ,हर औरत अपने बच्चे में अपना अक्स देखना चाहती है। एक बेटी को पालने पोसने और सजाने -सवारने में उसे जो आत्मिक ख़ुशी मिलती है उसे शब्दों में बया करना मुश्किल है।
जीवन का सारा खेल एक नज़र और नज़रिये का ही तो होता है ,किसी को पथ्थर में भगवान नजर आते है किसी को भगवान भी पत्थर के नज़र आते है----
रविवार, 24 मार्च 2019
माँ- बेटी " कल आज और कल "
कहते है, औरत को बेटी से ज्यादा बेटे की चाह होती है लेकिन मुझे ये धारणा थोड़ी गलत लगती है। पुत्र की कामना शायद वो सिर्फ परिवार और पति के इच्छा को पूरा करने और वंश को आगे बढ़ाने के मोह वश करती है। क्यूकि हमारे देश में औरते अपने ख़ुशी से ज्यादा दुसरो की ख़ुशी का ख्याल रखती है। वरना ,हर औरत अपने बच्चे में अपना अक्स देखना चाहती है। एक बेटी को पालने पोसने और सजाने -सवारने में उसे जो आत्मिक ख़ुशी मिलती है उसे शब्दों में बया करना मुश्किल है।
शनिवार, 16 मार्च 2019
एक विरहन ऐसी भी..........
यारा सिली सिली विरह की आग में जलना।
ये भी कोई जीना हैं , ये भी कोई मरना।
यारा सिली सिली विरह की आग में जलना।
विरह एक ऐसी अग्नि हैं जो विरहन के शरीर को ही नहीं आत्मा तक को धीमी धीमी आँच पर सुलगता रहता हैं। "ना मैं जीवति ना मरियो मैं विरहा मारो रोग रे ,वावरी बोले लोग।" बस यही दशा होती हैं उसकी। जब भी कोई विरह गीत ,कवित ,दोहे या छंद लिखे जाते है तो उनकी मुख्य नायिका राधा ,मीरा ,सीता या यशोधरा आदि ही होती हैं।इन सब ने असीम विरह वेदना सही हैं। पर क्या इन सब की विरह-वेदना एक सी थी। शायद नहीं ,जैसे प्रेम के अलग-अलग रूप और एहसास होते हैं वैसे ही विरह के भी कई रूप होते हैं और उनकी वेदना भी अलग -अलग होती है। वैसे प्रेम और विरह की जो मुलभुत संवेदनाये होती हैं वो तो एक सी ही होता है।
सोमवार, 4 मार्च 2019
एक खत पापा के नाम
सादर प्रणाम ,
ये नहीं पूछूंगी कि- कैसे है आप ? कहाँ है आप ? क्योकि मैं जानती हूँ -आप उस परमलोक में है जहां सिर्फ आनन्द ही आनन्द है। ये भी जानती हूँ कि उस परम आनंद को छोड़ कर आप कभी कभी हम सब के इर्द गिर्द भी मडराते रहते है। जानती हूँ न अच्छे से आप, को इतना ज्यादा प्यार करते है आप हम सब से कि रह ही नहीं सकते हम सब से ज्यादा देर दूर और मुझसे तो और नहीं। याद है न माँ आप से कितना लड़ती थी मेरे शादी के लिए और आप क्या कहते थे -" मैं नहीं रह सकता अपनी बेटी से एक दिन भी दूर "और माँ गुस्सा होकर कहती -" कितने स्वार्थी बाप है आप " फिर आप झट से कहते -मैं तुम्हारे साथ दहेज़ में चलूँगा है न बेटा ,तुम्हारी सास से कहूँगा कि बहु के साथ उसके बाप को भी कबुल करो तब अपनी बेटी विदा करुँगा और मैं भी आप से लिपट कर कहती -बिलकुल ठीक पापा जी।
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