बुधवार, 19 दिसंबर 2018

समंदर - " मेरी नज़र में "

 

       क्या कभी आपने समंदर किनारे बैठ कर उसकी आती-जाती लहरों को ध्यान से देखा हैं ? सागर दिन में तो बिल्कुल शांत और गंभीर होता है। ऐसा लगता है जैसे, अपना विशाल आँचल फैलाये....और उसके अंदर अनेकों  राज छुपाये....एक खामोश लड़की हो.....जिसने सारे जहां के दर्द और सारी दुनिया की गन्दगियों को अपने दामन मे समेट रखा है। लेकिन फिर भी खामोश है....उसे किसी से कोई शिकायत नहीं....कोई दुःख नहीं ....कोई तड़प नहीं। ( वैसे हमेशा से सागर को पुरुष के रूप में ही सम्बोधित किया गया है लेकिन मुझे उसमे एक नारी दिखती है) हाँ, कभी कभी उसमें हल्की-फुल्की लहरें जरूर उठती रहती है।  उस पल ऐसा लगता है जैसे, दर्द सहते-सहते अचानक से वो तड़प उठी हो और उसके दिल की तड़प ने ही लहरों का रूप ले लिया हो।  
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  लेकिन जैसे-जैसे शाम होती है उसकी लहरों में तेज़ी आती जाती है। वो काफी उछाल के साथ किनारे की तरफ तेज़ी से बढ़ती जाती है। ऐसा लगता है जैसे, किनारे पर उसे उसका प्रियतम खड़ा दिखाई दे रहा है... जिससे वो बरसों से नहीं मिली और अब वो अपने सारे बंधनो को खोलते हुए....सारी सीमाओं को तोड़ते हुए....बेचैन हो कर अपनी पूरी शक्ति के साथ.....अपने प्रियतम से मिलने के लिए दौड पड़ी है। लेकिन किनारे तक आते-आते उसकी हिम्मत टूट जाती है.....वो थक कर....निढ़ाल होकर गिर जाती है।  

    तभी कोई हाथ बढ़ता है और उसे खींच कर फिर से अंदर की तरफ ले जाता है और कहता है - " तुम्हे अपनी सीमाओं को तोड़ने का कोई हक़ नहीं है " दो पल के लिए वो शांत हो जाती है....उसे भी लगता है कि - "हां, मुझे अपनी सीमाओं के मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए " लेकिन फिर.....जैसे ही उसकी नज़र किनारे पर इंतज़ार कर रहे अपने प्रेमी पर पड़ती है....वो फिर उसी व्याकुलता...उसी बेचैनी से....अपनी दुगुनी शक्ति के साथ....अपने प्रियतम के बाहों में जाने को दौड पड़ती है।  

    जैसे-जैसे रात गहरी होती जाती है उसकी बेचैनियाँ लहरों की तेज़ी को बढाती जाती है। कभी-कभी तो वो आखिरी देहलीज़ तक चली जाती है ( जहाँ  सागर की सीमाओं को पत्थर और दीवारों से घेर कर बंधा गया है ) अपनी दहलीज़ से टकरा- टकरा कर वो वापस आती रहती है लेकिन फिर भी अपनी कोशिश नहीं छोड़ती। सारी रात ये सिलसिला चलता रहता है और जैसे-जैसे सुबह होती जाती है वो धीरे-धीरे शांत होती जाती है। सूरज के निकलते ही वो फिर अपनों पहली वाली स्थिति में आ जाती है। ऐसा लगता है सूरज ने उसे डराकर शांत कर दिया। फिर सारा दिन सूरज की गर्मी में जलने को मजबूर....रात का इंतज़ार करती रहती है। 

    जिस दिन चन्द्रमा अपने पुरे नूर में रहता है उस रात उसकी बेचैनियाँ और ज्यादा बढ़ जाती है शायद चाँदनी रात में प्रिय मिलन की तड़प उसे और भी ज्यादा बेचैन कर देता है। मुझे नहीं पता वो अपने प्रियतम से कभी मिल भी पाती  है या नहीं।  लेकिन ये सिलसिला हर दिन चलता है, दिनों से नहीं ये तो अनंत कल से चलता आ रहा है और अनंत कल तक चलता रहेगा। शायद, जब प्रियतम मिलन की उसकी व्याकुलता हद से ज्यादा  बढ़ जाती है तो उसकी लहरे सुनामी का रूप ले लेती है और चारों तरफ तबाही फैला देती है। ये तो सत्य है न कि-जब प्यार अपनी सारी सीमायें  तोड़ता है तो तबाही ही लाता है....किसी शायर ने क्या खूब कहा है -
                                " सूरज को धरती तरसे, धरती को चन्द्रमा ,           
                                                 पानी में सीप जैसे प्यासी हर आत्मा "

24 टिप्‍पणियां:

  1. आभार सखी मेरे साथ बने रहने के लिए और मेरे लेख पर अपनी बहुमूल्य प्रितिक्रिया देने के लिए ,स्नेह

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  2. प्रिय कामिनी -- आपका लेख एक अलग तरह के दर्शन की अभिव्यक्ति है जो नितांत नई सी है | समन्दर को आज तक सिर्फ पुरुष रूप में देखा गया ही क्योकि संसार में पुरुष को ही सब से अधिक बलवान और गहरा माना गया है - पर आपने उस विचारधारा के विपरीत उसे नारी रूपा मान कर बहुत ही सुंदर तर्क प्रस्तुत किये हैं | सच में नारी सरीखी फितरत होती हैं इसकी | ना नारी की , ना इस समन्दर की गहराई को कहाँ कभी कोई माप सका है |सुंदर सार्थक लेख सराहनीय है | सस्नेह शुभकामनायें और मेरा प्यार |

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    1. आभार.... रेणु ,सच कहा तुमने - समुन्द्र और नारी के अंतर्मन की गहराइयों को आज तक कहाँ कोई माप सका , एक नारी में ही वो सहनशक्ति भी होती है कि - जो संसार की सारी बुराइयों एवम गन्दिगियो को अपने दामन में छुपा सकती है,समुन्द्र भी तो यही करता है .लेकिन ये भी सच है कि .-वैदिक काल से ही समुन्द्र को पुरुष के रूप में ही चित्रित किया गया है शायद ये चित्रण उसकी असीम शक्तियों के कारण ही किया गया हो ,मुझे तो उसमे एक नारी की व्यथा ही दिखती है .

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  3. बेहद खूबसूरत लेख । समुद्र की लहरों पर गहरा चिन्तन ।

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    1. आभार...... मीना जी ,आप के इस प्रोत्साहन के लिए ,सादर स्नेह

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  4. बहुत ही बेहतरीन लेख लिखा आपने 👌

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    1. प्रिये अनुराधा जी ,तहे दिल से शुक्रिया.... ,आपने जो मेरा हौसला बढ़ाया, आभर... स्नेह

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  5. अद्भुत, शानदार और स्तब्ध करता सशक्त लेखन ! बधाई एवं शुभकामनायें

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    1. सहृदय धन्यवाद..... संजय जी, मेरे सारे पोस्ट को इतने दिल से पढ़ने और मुझे प्रोत्साहित करने के लिए ,आभार .......

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  6. शायद वह एक नारी ही है सारी दुनियां की गन्दगी अपने विशाल दामन में छिपाए चुपचाप ...

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  7. वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  8. आप के निमंत्रण का थे दिल से शुक्रिया ,मैं क्षमा चाहती हूँ ,मुझसे ये गुस्ताखी हुई कि मैं अब तक आप के ब्लॉग पर नहीं आ पाई। सादर नमन

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    1. मैं आज कल आप के ब्लॉग पर नहीं आ पाई हूँ वैसे आप के कई रचनाये पढ़ी है मैंने सादर नमन

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  9. सुंदर सराहनीय प्रस्तुति

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    1. हृदयतल से धन्यवाद अनीता जी,सादर नमन

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  11. समंदर में ज्यों हर चीज़ समा लेने की ताकत है उसी प्रकार स्त्री भी बहुत कुछ अपने अंदर समाए रखती है । बेचैनियाँ तो खास तौर से .... गहन विश्लेषण

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    1. सही कहा आपने दी,नारी हृदय ही इतना विशाल होता है कि -अपनी बेचैनियों को छुपकर वो मुस्कुरा सकती है , हृदयतल से धन्यवाद आपका ,सादर नमन

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  12. प्रेमिल लहरें तड़प रही है । अति सुन्दर ।

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    1. हृदयतल से धन्यवाद अमृता जी ,सादर नमन

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  13. मेरी पुरानी रचना को साझा करने के लिए हृदयतल से आभार मीना जी,सादर नमन

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kaminisinha1971@gmail.com

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