सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

हर पल सिखाती ज़िन्दगी



  दोस्तों,मैं कोई शायरा,लेखिका या कवयित्री नहीं हूँ। मैंने जवानी के दिनों में डायरी के अलावा कभी कुछ नहीं लिखा है। हाँ , बचपन से कुछ लिखने की चाह जरूर थी। लेकिन किस्मत कुछ ऐसी रही कि छोटी उम्र से ही जो पारिवारिक जिम्मेदारियों में उलझी तो बस उलझी ही रह गई। उम्र के तीसरे पड़ाव में आ गई लेकिन...कभी फुर्सत ही नहीं मिली कि- कुछ वक़्त खुद के साथ बिताऊँ ...खुद से बातें करूँ...खुद को समझूँ.....खुद के अंदर झांक के देखूँ  कि -मैं कौन हूँ, मैं क्या हूँ, मैं कैसी  हूँ ,मेरा खुद का कोई वज़ूद है भी या नहीं ?
     अपने जीवन की कहानी और उसकी उलझनों को बता कर मैं आप को बोर नहीं करुँगी क्योंकि मेरी पीढ़ी की हर औरत का मेरे जैसा ही हाल रहा। खुद के लिए कम जीना और दुसरों  के लिए ज्यादा। हाँ,ये जरूर बताऊँगी कि मेरी लाइफ में बदलाव कैसे आया। भगवान ने मुझे एक बड़ी प्यारी सी बेटी दी है अभी वो  20 साल की है उसका सपना ऎक्ट्रेस बनने का है और उसी का सपना पूरा करने मैं मुंबई मायानगरी में आई हूँ। यहाँ  सिर्फ मैं और मेरी बेटी ही है। मैंने अपने समय के सारे रूढ़िवादिताओं  को तोड़ कर अपनी बेटी की माँ कम और दोस्त ज्यादा बनने की कोशिश की है। उसमे बहुत हद तक कामयाब भी रही हूँ। मैं अपनी बेटी की ही नहीं उनके दोस्तों की भी दोस्त हूँ। वो अपनी सारी बातें  मुझसे बेझिझक शेयर करते हैं। उन्हें मेरे साथ घुमने या मूवी देखने जाने में भी कोई परहेज़ नहीं होता। संझेप में कहूँ तो मेरे साथ भी वो फुल एन्जॉय करते हैं। इसका मतलब ये नहीं कि वो मेरी respect नहीं करते हैं। मैं भी अपनी सीमाओं का ध्यान रखती हूँ और जितना space उनसे रखना चाहिए रखती भी हूँ। कहने का मतलब, दोस्त के साथ-साथ माँ का रोल भी बाखूबी निभाती हूँ।  जवानी में वो  वक़्त जो मैं कभी जी नहीं पाई थी और सोचा भी नहीं था कि कभी ऐसा पल जी भी पाऊँगी  वो मिला है मुझे इन बच्चों के साथ।               फुर्सत के चंद लम्हे -"एक मुलाकात खुद से "


    जीवन में आये इस परिवर्तन में कुछ अलग ही तरह से वक़्त गुजारने का मौका मिला मुझे। शाम के वक़्त समुन्द्र के  किनारे  घूमना....घंटो बैठे -बैठे समुन्द्र की आती जाती लहरों को निरखना....वहाँ बच्चों और युवाओं  को मस्ती करते देखना....बुजुर्गो को टहलते या रिलेक्स करते देखना....कभी कभी पार्क में बैठ कर झूला झूलना.....हर जिम्मेदारियों  से दूर हूँ मैं। हाँ ,कभी-कभी फ़िक्र होती है घर की,पति की ,भाई बहनों की,माँ की याद भी बहुत आती है। लेकिन इन जगहों  पर आकर मेरी सारी फ़िक्र सारी यादें  पता नहीं कहाँ चली जाती है। दिल बिलकुल सुकून में डूब जाता है। फुर्सत के इन पलों  में बहुत सारे ख़्यालात उमड़ने लगे। मैं उन ख्यालातों को शब्दो में पिरौने लगी और मेरी लेखनी चल पड़ी। मैंने सोचा क्यों न मैं नये  दोस्त बनाऊँ  और उनसे अपनी बाते share करूँ , उनसे कुछ सीखूँ। 
    जिस तरह हर इंसान का जीवन को जीने का  अपना ही अंदाज़ होता है उसी तरह जीवन को, जीवन की परिस्थितियों को, रिश्तों को, समाज को और यहाँ  तक की व्यक्ति विशेष को देखने का भी उनका अपना एक नज़रिया होता है ,अपना एक दृश्टिकोण होता है।  वो अपनी ही नज़रिये से हर परिस्थिति को देखता है , समझता है , संभालता है  और सीखता भी है . यूँ  कहे कि सारा खेल नज़र और नज़रिये का है।  जैसे एक गिलास में आधा गिलास पानी है तो उसे देख कर कोई गिलास आधा भरा कहेंगा तो कोई आधा खाली, ऐसी एक दृष्टि या दृष्टिदोष के कारण कोई अपनी बिगड़ी ज़िंदगी सुधर लेता है तो कोई अपनी सुधरी- सवरी ज़िंदगी बिगड़ लेता है। 

   मैं भी जीवन के 40-45 बसंत देख चुकी हूँ. मैंने यही देखा है कि ये जीवन आप को हर पल कुछ-न-कुछ सिखाती ही रहती है बशर्ते आप सीखना चाहे तो। मैंने अपने जीवन के उतार-चढ़ाव से बहुत कुछ सीखा है। मैं अपने ब्लॉग में आप से अपना यही अनुभव share करुँगी। वैसे तो जीवन की सबसे बड़ी पाठशाला तो आप के खुद का ही जीवन होता है लेकिन इंसान देख कर और पढ़कर भी बहुत कुछ सीखता है।कभी-कभी एक छोटा बच्चा भी आप को बहुत कुछ सीखा जाता है।

      जीवन में कुछ भी शास्वत नहीं है।हर पल जीवन बदलता रहता है अगर आज आप बहुत सुखी है तो जरुरी नहीं की कल आप को दुःख ना देखना पड़ें और आज अगर दुःख है तो एक-ना-एक दिन ख़ुशियाँ वापस जरूर आएगी और जो दुःख जायेगा वो आप को कुछ-ना-कुछ जरूर सीखा कर ही जायेगा।  महत्वपूर्ण ये है कि आप उनमे से कितनी बातों  को ग्रहण करते हैं और उसे आगे अपने जीवन में कैसे अपनाते हैं ।आपने देखा होगा चिड़िया तिनका -तिनका जोड़ कर अपना घोसला बनती है और आँधी आकर एक पल में उनके घोसले को उड़ा ले जाती है। चिड़िया बैठ कर उस घोसले का मातम नहीं मानती बल्कि आँधी के थमते ही वो फिर तिनका इकठा करने में जुट जाती है आज के युवा पीढ़ी से हमने यही सीखा है कि -
                                               " जो गुजर गया वो कल की बात थी "

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

मेरे बारे में



नमस्कार दोस्तों ,

      मैं कामिनी सिन्हा ,मै होमियोपैथ डॉक्टर हूँ । मेरी जन्म भूमि तो बिहार चम्पारण जिला है।हाँ जी ,अपने सही समझा वही जगह जहाँ से गाँधी जी ने अपने सत्याग्रह की शुरुआत की थी। लेकिन शादी के बाद दिल्ली आ बसी और फिर वही की होकर रह गई। बहुत याद आता है अपना घर अपनी जन्मभूमि। लेकिन क्या कर सकते हैं  जिंदगी जहाँ  ले जाये वहाँ जाना ही पड़ता है। खैर ,मैं अपने बारे में आप को कुछ और बता दूँ  ,मैंने सोशियोलॉजी  विषय में   M.A भी किया  है। बचपन  से  ही  मेरी  रूचि  हिंदी  साहित्य में  काफी  रही है। लेखन  का  भी  काफी शौक था  लेकिन  घरेलु  उलझनों  में  उलझ  कर  वो  शौक  कही  खो  गया। अब  जीवन  की  उलझनों  से  थोड़ी  फुर्सत  मिली है  तो  फिर  दिल में एक  नया  जीवन शुरू करने  की  चाह  जगी  है। सोचा, क्यों न कुछ नये दोस्त बनाऊँ कुछ उनकी सुनु कुछ अपनी सुनाऊँ और आज कल के इस व्यस्त जीवन के दौड भाग में तो बस दोस्तों का साथ ही थोड़ा सुकुन देता है,। मैं यहाँ अपने विचारो को कहानी और लेख के माध्यम से आप से साझा करुँगी

       जिस तरह हर इंसान की  जिंदगी को जीने का  अपना ही अंदाज़ होता है उसी तरह जीवन को, जीवन की परिस्थितियों को, समाज को और यहाँ  तक की व्यक्ति विशेष को देखने का भी उनका अपना एक नज़रिया होता है ,अपना एक दृश्टिकोण होता है. वो अपनी ही नज़रिये से हर परिस्थिति को देखता है , समझता है , संभालता है और सीखता भी है . यूँ  कहे कि सारा खेल नज़र और नज़रिये का है. जैसे एक गिलास में आधा गिलास पानी है तो उसे देख कर कोई गिलास आधा भरा कहेंगा तो कोई आधा खाली. ऐसी एक दृस्टि या दृस्टिदोष के कारण कोई अपनी बिगड़ी ज़िंदगी सुधर लेता है तो कोई अपनी सुधरी- सवरी ज़िंदगी बिगड़ लेता है. जीवन को और इस जीवन की परिस्थितियों को मैंने किस नज़रिये से देखा है और कैसे सीखा है ये मैं यहाँ  आप सब से साझा करुँगी आप भी मेरे इस पेज से जुड़ कर अपना अनुभव साझा करें  ताकि हम अपनी अगली पीढ़ी को कुछ सीखा सकें और कुछ उनसे भी सीख सकें  .मेरे इस पेज का सिर्फ यही उदेस्य है कि हम एक दूसरे से अपने जीवन का अनुभव साझा कर उन छोटी-छोटी ख़ुशी को फिर से ढूढ़ सकें  जो हमसे हमारी छोटी छोटी भूल के कारण खो गई या हम उन छोटे-छोटे कारणों को ढूढ़े जिनके वज़ह से हमारे जीवन में बड़े-बड़े बड़े गम आ गए हैं .

इसीलिए तो मेरे ब्लॉग का नाम dristikoneknazriya.blogspot.com है। 

About us:-

Name   -   Kamini Sinha

City      -  Delhi

Contact - kaminisinha1971@gmail.com


"नारी दिवस"

 नारी दिवस " नारी दिवस " अच्छा लगता है न जब इस विषय पर कुछ पढ़ने या सुनने को मिलता है। खुद के विषय में इतनी बड़ी-बड़ी और सम्मानजनक...