गुरुवार, 28 दिसंबर 2023

"नई विचारधारा के साथ नव वर्ष का आगाज़"

      


    समय के साथ हर चीज की परिभाषा बदलती रहती है। बदलाव प्रकृति का नियम है तो हमें इसे स्वीकार करना ही होता है। लेकिन हर बात को स्वीकारने या नाकारने से पहले उस पर चिन्तन करना क्या ज़रूरी नहीं होता ?

    शास्त्रों में लिखा है "माता-पिता और गुरु देवस्वरूप है " हमनें कहानियों में भी पढ़ा है कि -गणेश जी ने माता-पिता को ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मानकर उन्ही की परिक्रमा कर ली थी।श्रवणकुमार की कथा कौन नहीं जानता है।  ऐसे ही अनेकों किस्से-कहानियां है जो हमें ये सिखलाते हैं कि-माता-पिता देवतुल्य है,उनके चरणों में ही स्वर्ग सुख है आदि,और उस युग में ये सत प्रतिशत सत्य भी था। 

   ये सत्य है कि - जब किसी व्यक्ति विशेष में हम देवत्व के गुण देखते हैं तो हम उसे देवतुल्य या देव कहते हैं। परन्तु,चाहें वो माता-पिता हो या गुरु यदि उसमें देव का एक भी गुण नहीं हो तब भी क्या हमें उन्हें देवता कहना चाहिए ???

    पुराने जमाने यानि 100 -200 साल पहले के भी कितने ही किस्से-कहानियों में ये वर्णित है कि -माँ-बाप के जरूरत से ज्यादा तानाशाह और महत्वकांक्षा ने कितने ही बच्चों की ज़िंदगियाँ बर्बाद कर दी।70 के दशक तक भी माँ-बाप को देवता मानकर उनकी हर आज्ञा को शिरोधार्य किया जाता था। भले ही वो दिल से ना माना जाये मगर, उनके आज्ञा की अवहेलना करना पाप ही समझा जाता था। हमारी पीढ़ी ने भी माँ-बाप की ख़ुशी और मान-सम्मान के लिए ना जाने कितने समझौते किये। जबकि उस वक़्त में भी माँ-बाप के गलत निर्णय और जरुरत से ज्यादा सख्ती के कारण कितने ही बच्चों ने आत्महत्या तक कर ली और आज भी करते हैं । 

    ये भी सत्य है कि- जब हम किसी को भगवान का दर्जा देते है तो वो स्वयं को भाग्यविधाता ही मान बैठता है। और शायद यही गलती अब तक माता-पिता करते आये है और उनकी इसी गलती ने आज वो दिन दिखा दिया जब बच्चें माँ-बाप को देवता छोड़ें जन्मदाता तक मानकर भी सम्मान नहीं देते।  ये भी सही है कि 21 वी सदी के -"माँ-बाप तो जन्मदाता तक का फ़र्ज़ भी सही से नहीं निभा पा रहें हैं"   

    गुरुओं ने भी यही किया हम आँख बंद कर  गुरु भक्ति करते रहें और वो हमारी ही भावनाओं से खेलते रहें। यहां तक की शास्त्रों के ज्ञान को भी अपने हित के मुताबिक  तोड़-मड़ोड़कर हमारे समक्ष प्रस्तुत करते रहें और हम भ्रमित होते रहें फिर ऐसा वक्त आया कि हम प्रत्येक रीती-रिवाजों और शास्त्रों के बातों को आडंबर कहते हुए नाकरते रहें । गुरु का स्थान कितना ऊंचा था ,कहते थे कि -"गुरु गोविन्द दाऊ खड़े काके लागू पाय,बलिहारी गुरु आपने जो गोविन्द दियो बताये" मगर आज कितने ही गुरु घंटाल जेल की सलाखों के पीछे है और उनके दुष्कर्मो की गिनतियाँ  नहीं है। 

     हमारी पीढ़ी तक को ये सिखाया गया था की "पति परमेश्वर होता है" परमेश्वर से तो कोई गलती नहीं होती और कोई ऐसा पति नहीं जिससे गलती ना हुई हो.....तो फिर क्या पति को परमेश्वर मानना उचित था? 

   आज हम जरूर शिकवे-गीले कर रहे है कि -बच्चें माँ-बाप की बेकद्री कर रहे हैं,उनको घर से बेघर कर रहें  हैं.......समाज में अब  गुरुओं का सम्मान नहीं हो रहा....लड़कियां पति का सम्मान नहीं करती....रिश्तें  टूट रहे हैं।   क्या इन सब बातों के जिम्मेदार माँ-बाप, गुरु और पति स्वयं नहीं है ? ये सारी स्थितियाँ एक दिन में तो बदली नहीं है सदियों से होती हुई गलतियों का धीमा परिणाम ही तो है ये ।  

      अवल तो हमें जब तक किसी में देवत्व का अंश ना दिखे उसे देव की उपाधि देनी ही नहीं चाहिए यदि हम  भाव अभिभूत होकर देव की  उपाधि दे दे  तो उसे व्यक्ति विशेष को भी अपने देवत्व की गरिमा बनाये रखनी चाहिए और खुद को भाग्यविधाता नहीं मान बैठना चाहिए। 

     मेरा मन मुझसे ये सवाल करता है कि-"क्या हम रिश्तों को उसके ओहदे के मुताबिक स्थान देकर मान-सम्मान नहीं दे सकते ?? क्या आज के दौर में भी उन्हें देव की उपाधि देना जरुरी है ?"क्या देवता बनने के वजाय एक आदर्श व्यक्ति बनकर रहना ही उचित नहीं है ताकि रिश्तों में हम सम्मान तो पा सकें?

    सोशल मिडिया की वजह से नई पीढ़ी जागरूक हो रही है, प्रत्येक विषय पर खोजबीन कर रही है, तर्क-वितर्क  भी कर रही है।  उनमें अपनी धर्म,संस्कृति और इतिहास को जानने की भी उत्सुकता बढ़ रही है।विचारधारायें बदल रही है,हमें भी बदलना होगा और बहुत चीजों की परिभाषा भी बदलनी होगी। हमें नई पीढ़ी के आगे एक नया उदाहरण प्रस्तुत करना ही होगा।

    जैसा कि पिछले कुछ दिनों में नई पीढ़ी में ये जागरूकता आई है कि हमारा नव वर्ष 1 जनवरी को नहीं बल्कि चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता था। लेकिन हमारी संस्कृति में यह भी सिखाया गया है कि -सभी धर्मो और उनके रीति-रिवाजों का सम्मान करना चाहिए,सभी की भावनाओं को मान देना चाहिए। तो अंग्रेजों के द्वारा थोपी गई इस परम्परा का भी हम ख़ुशी ख़ुशी निभाएंगे मगर अपना भूलेंगे भी नहीं। 

चलिए, नई विचारधारा के साथ नव वर्ष का आगाज़ करे। नव वर्ष हम सभी के लिए मंगलमय हो यही कामना है। 

 





  

18 टिप्‍पणियां:

  1. जी कामिनी जी,
    परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है।
    समय के साथ स्वयं को संशोधित करते रहना जरूरी है किंतु अपने अस्तित्व की पहचान, अपनी जड़ों को थामे हुए। वरना दुनिया के समुंदर में गुम होते देर नहीं लगेगी।
    अंग्रेजी कैलेंडर से ही हमारे दैनिक जीवन के सारे काम सुचारू रूप से चलते हैं इसे नववर्ष की तरह खुशी से स्वीकार करना ही चाहिए अपनी संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर...।
    सस्नेह।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ दिसम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. आपने बिल्कुल सही कहा,वैसे यदि काम काज की बात करें तो वो भी मार्च क्लोजिंग कर 1 अप्रैल से ही नई शुरुआत होती है। लेकिन इतने सालों से चली आ रही परम्परा कहे या आदत को बदलना आसान नहीं। सुंदर प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल से शुक्रिया, मेरी रचना को भी साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी,सादर नमन

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  2. नव वर्ष सभी के लिए मंगलमय हो | सुन्दर रचना |

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    1. सहृदय धन्यवाद सर,आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

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  3. नव वर्ष मंगलमय हो, सुंदर प्रस्तुति

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद हरीश जी ,आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

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  4. सही कहा कामिनी जी ! आज की युवा पीढ़ी को दोष देना कहाँ तक उचित है ये आज जो भी फलित हो रहा है कल का अपना ही बोया है ...अत्यधिक अपेक्षा और महत्वाकांक्षा उचित नहीं... माता-पिता हों या गुरु , सम्मान तो कमाना पड़ता है..।
    सोशल मीडिया से ही सही कम से कम हम सबको पता तो चला कि हमारा अपना भी नववर्ष आता है ।
    फिलहाल इस नववर्ष की आपको भघ अग्रिम शुभकामनाएं ।

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  5. सम्मान सभी का और आनद भी सभी का ... स्वागत भी सभी का ... तो अपने को न भूलें ये भी उचित है ... दोष के बजाये खुद की मान्यताएं अच्छी हैं तो उन्हें इतना उठाना चाहिए की सब आदर करें ... समय का फेर है ,... समय ही ठीक करेगा सब ...

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    1. बहुत ही सुन्दर बात कही आपने सर, सहृदय धन्यवाद 🙏

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  6. “ नई विचारधारा के साथ नव वर्ष का आगाज़ करे। नव वर्ष हम सभी के लिए मंगलमय हो यही कामना है।”
    सतत जागरूकता , चिन्तन-मनन हमें प्रेरित करते समय के साथ आगे बढ़ने के लिए ॥ हमेशा की तरह चिन्तनपरक पोस्ट । आपको सपरिवार नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ कामिनी जी 🙏

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    1. इस सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद मीना जी,आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

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  7. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
    नववर्ष मंगलमय हो

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    1. सहृदय धन्यवाद भारती जी,आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

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  8. अंग्रेज़ी कैलेंडर के नव वर्ष को जीवन में हमनें कुछ इस तरह समाहित कर लिया है कि अब कितना भी चाहो अब नया वर्ष यही लगता है, हां अब जागरुकता आई है, कि हमारे नव वर्ष में ही नव वर्ष के असल कार्य प्रारंभ होते हैं, इसमें हमारी पीढ़ी से ज्यादा सोशल मीडिया की भूमिका है, जिसे आगे ले जाने की जरूरत है।
    बहुत सुंदर जरूरी आलेख
    बहुत शुभकामनाएं सखी।

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  9. हां जिज्ञासा जी, आदतें ना एक दिन में बनती है ना बदलती है, सारगर्भित प्रतिक्रिया देने के लिए दिल से शुक्रिया 🙏

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  10. सुंदर प्रस्तुति, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद मनोज जी, आप को भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

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