"सोना "हाँ ,यही नाम था घुंघट में लिपटी उस दुबली पतली काया का। जैसा नाम वैसा ही रूप और गुण भी। कर्म तो लौहखंड की तरह अटल था बस तक़दीर ही ख़राब थी बेचारी की। आज भी वो दिन मुझे अच्छे से याद है जब वो पहली बार हमारे घर काम करने आई थी। हाँ ,वो एक काम करने वाली बाई थी। पहली नज़र मे देख कर कोई उन्हें काम वाली कह ही नहीं सकता था। कोई उन्हें कामवाली की नज़र से देखता भी नहीं था वो तो सबके घर के एक सदस्य जैसी थी। बच्चे बूढ़े सब उन्हें सोना ही बुलाते थे बस हम भाई बहन उन्हें प्यार से ताई या अम्मा कह के बुलाते थे। प्यार और इज्जत तो सब उनकी करते थे पर हमारे परिवार को उनसे और उन्हें हम सब से एक अलग ही लगाव था। और पढ़िये
सुबह 5 बजे ही वो आ जाती थी मेरे घर, फिर माँ उनके लिए और अपने लिए चाय बनती थी। दोनों चाय पीते पीते बीते दिन की अपनी सारी दुःख सुख बाट लेती थी फिर सोना काम में लग जाती थी और माँ स्नान और पूजा में। फिर 10 बजे तक सोना जब बाकी घरो का काम करके आती थी तो माँ और सोना फिर साथ साथ नास्ता करते और चाय पीते थे। माँ के लिए वो एक सखी जैसी थी। इतना प्यार करने के वावजूद सोना इतनी स्वभिमानी थी की कभी भी मुँह खोल के माँ से कुछ नहीं मांगती थी।
मैं शायद 9 -10 साल की थी , जब पापा का तबादला होकर हम एक नये शहर में रहने आये थे जहाँ हमे गवर्मेंट क्वार्टर रहने को मिला था। पापा इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम करते थे। सबडिवीज़न में ही साहब से लेकर वर्कर तक के क्वाटर बने थे। ये वो जगह है जहाँ बचपन गुजर कर हम जवान भी हुए थे। वहाँ की हर यादे हमारे दिल में बसी है। कुछ अलग ही था वहाँ का माहौल , अफसर के परिवार से लेकर वर्कर के परिवार वाले तक एक दूसरे से काफी घुल मिल के रहते थे बिलकुल एक परिवार के जैसे।
मुझे याद है , हमारे आने के अगले दिन ही एसक्यूटिव इंजीनिअर की बीवी हमारे घर आई थी और बड़े ही आत्मीयता से हम सब से मिली थी और माँ से पूछा था कि" कोई मदद चाहिए तो बेझिझक कहिये हम सब एक परिवार जैसे है। " फिर उन्होंने माँ से कहा कि -आप सोना को काम पर रख ले। माँ ने कहा कि -हम अपना काम खुद कर लेते है हमे काम वाली की जरुरत नहीं है। तो उन्होंने कहा कि -" ये आप की जरुरत नहीं ये सोना की जरुरत है वो बहुत स्वभिमानी है ऐसे कोई मदद नहीं लेती तो हम सबने उसे मदद देने के लिए काम पर रख लिया है,मेरे घर तो गॉवर्मेँट ने कई कर्मचारी दिए है काम करने के लिए फिर भी हमने उन्हें काम पर रखा है। "
माँ ने पूछा - ऐसा क्यूँ,? कौन है ये सोना और क्या परेशानी है उनकी ?
तब उन्होंने सोना की कहानी बताई। जिसे सुन के हम सब की आखे नम हो गई और माँ ने उन्हें अगले ही दिन से काम पर रख लिया। तनख्वाह कितनी मात्र 15 रूपये ,इससे ज्यादा सोना नहीं लेती थी। लेकिन उनकी सादगी ,सच्चई और ईमानदारी कारण 15 रुपये से कई गुना ज्यादा सभी उन्हें यूँ ही देदेते थे। खाना -पीना ,कपडे -लते और साथ में ढेर सारा प्यार और सम्मान भी।
सोना सात बहने थी लगभग सबकी शादी अच्छे खाते -पीते परिवार में हुई थी। सोना का ससुराल भी अच्छा था कोई तकलीफ नहीं थी उन्हें। लेकिन उनकी किस्मत में ज्यादा दिन का सुख नहीं लिखा था। सोना की शादी 14 -15 साल की उम्र में ही हो गई थी और फिर एक एक कर पांच बच्चे भी हो गए थे। जैसा की उस ज़माने में कम पढ़े लिखे और खेतिहर समाज में हो ही जाता था। लेकिन कम उम्र में ही सोना के पति को कई बीमारियों ने घेर लिया था जिस कारण वो धीरे धीरे बिस्तर के ही हो के रह गए थे। कमाने वाला पुरुष जब बिस्तर पर पड़ जाये तो परिवार का क्या होगा। धीरे धीरे उनके घर की आर्धिक हालत ख़राब होने लगी। पांच बच्चे ,पति और सास -स्वसुर की ज़िम्मेदारी सोना पर आ गई थी। सब का पेट भरने के लिए उन्हें घर से बाहर कदम निकलना पड़ा।
सोना नाई जाती की थी, उनकी की माँ का हमारे कलोनी में आना जाना था और एजुकुटीव इंजीनियर के बीवी पर उनका पूरा भरोसा था। उन्होंने सोना का सारा हाल बता उनके घर सोना को काम पर रखवा दिया। सोना 30 -32 साल से ज्यादा की नहीं थी,जवान थी,खूबसूरत थी इसलिए उनकी माँ उन्हें किसी भरोसे की जगह काम पर रखना चाहती थी। और हमारा कलोनी उनके इस भरोसे के लायक था। धीरे धीरे सोना अपने काम और व्यवहार से सब का दिल जीत ली और पावर हॉउस कलोनी के हर घर की प्रिये सदस्य बन गई। वो हमारी कलोनी के अलावा कही और काम नहीं करती थी।
सोना नाई जाति की गरीब और अनपढ़ औरत थी लेकिन उनके संस्कार और विचार काफी उच्च थे। वो अनजाने में ही वो मेरे बाल मन को इतनी शिक्षाऐ दे जाती थी जो शायद किसी पढ़य पुस्तक को पढ़ कर मेरी समझ में नहीं आती। एक दिन की बात है -सोनपापड़ी बेचने वाला आया था वैसे तो मैं कभी ज़िद नहीं करती थी लेकिन उस दिन मैं माँ से सोनपापड़ी खरीदने की ज़िद करने लगी। माँ के पास पैसे नहीं थे इसलिए वो मना कर रही थी ,तभी सोना आई उन्होंने अपनी आँचल के गांठ से एक रूपया निकल कर मुझे दिया ,मैं मना करती रही लेकिन
जबरदस्ती दे दिया। मैंने कहा -25 पैसे में ही हो जायेगा तो बोली चारो भाई बहन ले लो। मैं तो खुश हो गई।
अगले दिन माँ को किसी से पता चला कि सोना के बच्चे कल रात भूखे ही सो गए। वो सयोग की बात थी कि कल उन्हें किसी घर से कुछ नहीं मिला और जो पैसा था शायद सोना उससे कुछ तो खरीद कर अपने बच्चो को खिलाती वो तो मैंने ले लिया था। ये सुन मैं आत्मग्लानि से भर गई कि मेरे छोटी सी ख़ुशी को पूरा करने के वजह से सोना के बच्चे भूखे सो गए। जब सोना आई तो मैं उनसे लिपट कर रोने लगी और बोली -"ताई ,अब कभी भी किसी भी चीज़ के लिए मैं ज़िद नहीं करुँगी मुझे माफ़ कर दो। वो बड़े प्यार से बोली -"मुनिया तू भी तो मेरी ही बेटी है न। " वो मुझे प्यार से मुनिया ही बुलाती है अभी तक। लेकिन मैं उस दिन के बाद से आज तक कभी ज़िद नहीं की।
ऐसी ही एक और घटना है -मेरी माँ हमेशा बीमार रहा करती थी जिस कारण मैं छोटी उम्र से ही घर का काम -काज शुरू कर दी थी जिसमे सोना हमेशा मेरी मदद भी किया करती थी। एक दिन रोटी बनाते वक़्त रोटी के बर्तन में मैं रुमाल रखना भूल गई जिस कारण नीचे की रोटी गल गई मैंने सोचा माँ देखेगी तो डाटेगी इसलिए मैंने वो रोटी किचन की खिड़की से बाहर फेक दिया। जिसे सोना ने देख लिया और उस रोटी को उठा कागज में लपेट अपने घास की टोकरी में रख घर ले कर चली गई।
अगले दिन सोना आई तो दुखी थी माँ के पूछने पर उन्होंने बताया कि उनकी बेटी को फ़ूड पॉइज़निंग हो गया है। माँ ने पूछा- कैसे ? तो उन्होंने बताया कि - मुनिया ने कल एक रोटी बाहर फेक दिया था मैं वो उठा कर ले गई कि बकरियों को देदूगी। मेरी बेटी भूखी थी उसने जब वो रोटी देखा तो मुझसे बिना पूछे उस रोटी को खा गई,रोटी ख़राब हो गई थी इसलिए वो नुकसान कर गई। मालकिन ,जब भूख लगती है तो इंसान मिट्टी तक खा लेता है वो तो बासी रोटी थी। मेरी आत्मा एक बार फिर से दहल गई ,मैं फिर से आत्मग्लानि से भर गई.मैंने सोना का हाथ पकड़ा और बोली -"ताई मैं कसम खाती हूँ ,आज से अन्न का एक दाना भी नहीं फेकूगी। " वो मुझे गले लगा कर बोली -मुनिया अन्न का एक एक दाना कीमती है ना जाने हर रोज कितने लोग अन्न के एक दाने के लिए तरसते है। मैं आज भी उनकी सीख याद रखी हूँ। ना जाने ऐसे कितने ही सीख सोना हमे दे जाती थी।
हम लोग के घर आते उन्हें 4 -5 साल ही हुए थे कि उनके पति चल बसे। इस बीच एजुकुटीव इंजीनियर का भी तबादला हो गया था और सोना हमरे परिवार के और करीब हो गए थी। पापा ने सब से चन्दा इकठा कर उनके पति का बिधिवत संस्कार करवाया था । उनकी दोनों बेटियों का ब्याह भी पापा ने ही करवाया। सहयोग सब करते थे लेकिन सब ने पापा को प्रधान बना दिया था इसलिए ज़िम्मेदारी सारी पापा ही निभाते थे। उनका बड़ा बेटा नाइ का काम करने लगा तो सोना की स्थिति थोड़ी सुधरने लगी।
एक दिन सोना घर आई तो वो बहुत उदास थी माँ ने जब कारण जानना चाहा तो वो माँ को पकड़ रोने लगी और बोली -"मेरा मझला बेटा आज चार दिन से खाना पीना छोड़ रखा है, वो आगे पढ़ना चाहता है आप ही बताये मालकिन मैं कहाँ से उसे पढ़ाऊ,मेरी औकात है उसे I.A--B.A करने की। " सोना का मझला बेटा जिसे बचपन से ही पढ़ने की चाह थी और वो मेघावी भी था। सोना ने उसे बचपन में ही अपनी बहन जो की टीचर थी उसके घर रख दी थी जहां से वो 10 वी पास किया। अभी आठ दिन पहले ही तो सोना पुरे कॉलोनी में मिठाई बाटी थी कि -उसका बेटा पुरे स्कूल में टॉप किया है।
ये सोना के पुरे जीवन सघर्ष की कहानी है तो इसे संक्षिप्त में नहीं कह पाऊंगी तो इसे जानने के लिए आप को मेरे साथ अभी रहना होगा।तो ,सोना के बेटे का आगे क्या हुआ ये जानने के लिए पढ़े -सोना के बेटे की-" हीरा" बनने की कहानी
अद्भूत! क्या खूब लिखा है।
जवाब देंहटाएंआदरणीय संजय जी ,आप के इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए सह्रदय धन्यवाद... सर ये एक सच्ची कहानी है जो मेरे जीवन से जुडी संस्मरण है .
हटाएंजीवन से जुड़े संस्मरण है हमेशा याद रहते है
हटाएंसही कहा आपने आभार..... सादर नमन
हटाएंकामिनी जी बहुत मर्मस्पर्शी संसमरण ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार..... मीना जी ,लेकिन बड़े दुखी मन से ये कहना पड़ रहा है कि वो सोना अब हमारे बीच नहीं रही आज सुबह ही वो हमे हमेशा के लिए छोड़ दूसरी दुनिया में चली गयी और मेरा दुर्भाग्य मैं उनकी अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाई,आपने सोना की कहानी जान ली है तो उनके बेटे की भी कहानी वक़्त निकल कर पढ़िएगा जरूर ,क्योकि कहानी तभी पूरी होगी। भगवान मेरी सोना माँ की आत्मा को शांति दे।
हटाएंआपकी लेखन प्रतिभा व लगन को नमन है। आप प्रगति और प्रसिद्धि के चरमोत्कर्ष पर पहुचें, ईश्वर से यही कामना करूंगा।
जवाब देंहटाएंआभार...... आप का,मैं इतने प्रशंसा के योग्य तो नहीं हूँ परन्तु आप ने जो मेरा मनोबल बढ़ाया है इसके लिए तहे दिल से शुक्रिया... ,मैं आप सब जैसी उच्चकोटि के ज्ञाता तो नहीं बस जो मेरी दृस्टि पटल से गुजरता है और मेरे हृदय को स्पर्श कर जाता है उन्हें ही कलमबद्ध कर लेती हूँ,सादर नमन
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी कभी कभी जिंदगी में ऐसे लोग मिल जाते हैं जिनसे कोई रिश्ता नहीं होते हुए भी दिल का रिश्ता बन जाता है जिंदगी का अनुभव बहुत खूब लिखा आपने 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद... अनुराधा जी सच कहा आपने, कुछ रिश्ते अजीब होते है खून के ना होकर भी सगे से प्यारे बन जाते है ऐसी ही थी मेरी " सोना अम्मा "
हटाएंमर्मस्पर्शी संस्मरण कामिनी जी...
जवाब देंहटाएंआप बहुत अच्छा लिखती हैं..मेरी शुभकामनाएँ. स्वीकार करें।
जीवन की गाड़ी.में साथ चलने वाले हमराही दिल के धागे से ऐसे ही जुड़ जाते ह़ै।
सुनकर बहुत दुख हुआ सोना का निधन हो गया।
ऊँ शांति शांति...🙏
सहृदय धन्यवाद स्वेता जी ,आप के स्नेह और शुभकामना दोनों मेरे लिए अनमोल पुरस्कार है ,और ये लेख तो एक अपराजिता की कहानी थी तो वो खुद ब खुद कलमबद्ध होती चली गई। जब मुझे सोना माँ के निधन का दुखद समाचार मिला तो थोड़ी देर तक मैं उनकी यादो में दुखी थी फिर अपना गम हल्का करने के लिए मैं ब्लॉग भ्रमण कर आप सब के रचनाओं को पढ़ने लगी उसी वक़्त मेरे इस लेख पर मीना जी की प्रतिक्रिया आ गई और भावावेश मैं आप सब से अपना दुःख साझा कर बैठी,शायद आप सब के स्नेह वश मैं ये कर गई। आभार एवं स्नेह
हटाएंनमन आपकी लेखनी को। यह संस्मरण कम और जिंदगी की गठरी धोते एक आम इंसान के जीवन के सच का दस्तावेज ज्यादा है।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद..... विश्वमोहन जी ,आप ने बिलकुल सही कहा ,सादर आभर एवं नमन
हटाएंप्रिय कामिनी -- आज तुम्हारा ये भावपूर्ण लेख मन को भावुक कर गया | मुझे याद है शब्द नगरी में मेरी कहानी अपराजिता को पढ़कर तुमने मुझे सोना माँ के बारे में बताया था और उन्हें भी एक और अपराजिता बताकर उनके और उनके बेटे के बारे में ये मर्मस्पर्शी संस्मरण लिखा था | सबसे बड़ी बात तुमने उनके जीवन में उनके स्वाभिमानी रूप को बहुत ही सहजता से उभारा है साथ ही तुम्हारे परिवार - विशेषकर पिताजी का अतुलनीय सहयोग बहुत ही प्रेरणा से भरा है | इस स्वार्थी दुनिया में कोई किसी के लिए - निस्वार्थ रहकर इतना कुछ कर सकता है ये बात बहुत ही हैरान कर जाती है | विपन्नता से जूझकर भी जिसने अपनी खुद्दारी को आंच नहीं आने दी उस नारी , उस माँ को नमन है | ऐसी महिला को सहारा देकर परिवार ने अपनी इंसानियत की मिसाल तो कायम की ही पर उसके साथ ही अपने बच्चों को भी सदभावना और समभाव के उद्दीप्त संस्कार भी दिए | सोना माँ से तुम्हारा उ जुड़ाव इसी बात से जाहिर हो जाता है कि तुमने उन्हें माँ की संज्ञा दी है | इससे बढ़कर सम्मान और क्या होगा | आज उनके ना रहने के हृदयविदारक समाचार से तुम्हारी विचलित, वेदनापूर्ण मनस्थिति की कल्पना कर सकती हूँ | कभी कभी सोचती हूँ कितना गलत आधार बनाया है समाज और दुनिया ने कि खून के रिश्ते ही अपने होते हैं। सद्भावना के ये रिश्ते जीवन में वो दे जाते हैं जो कथित अपनों से कहीं ज्यादा होता है | अपना ख्याल रखना सखी। जीवन में ये आघात बहुत वेदना पूर्ण हैं हम भी कौंन सा सदैव अमर रहने वाले हैं | सोना माँ की पुण्य स्मृति को शत शत नमन | ईश्वर उन्हें अपने चरणों में विराम दे यही प्रार्थना है |
जवाब देंहटाएंइस भावपूर्ण लेख के लिए तुम्हे शुभकामनायें देती हूँ | आज मकर संक्राति का पावन पर्व है | तुम्हे मेरी हार्दिक शुभकामनायें | हमेशा खुश रहो और ब्लॉग जगत में अपना नाम बुलंद करो - यही दुआ रहेगी | सस्नेह --
प्रिये रेणु ,हां सखी ,तुम्हरे लिखे अपराजिता कहानी से ही मुझे प्रेरणा मिली थी कि मुझे भी सोना माँ की संघर्ष की दास्ता लिखनी चाहिए।वरना , मैंने तो सोचा भी नहीं था कि मैं कभी सोना माँ की कहानी भी लिखूगी ,उनकी कहानी क्या मैं कभी कुछ लिखुंगी ये भी नहीं सोचा था। शायद सोना माँ की लिए मेरी यही श्र्द्धांजलि थी जो शायद नियति ने पहले से तय कर रखी थी ,मैं ने अपनी लेखनी के ज़रिये उन्हें इतने स्नेहिल लोगो से मिलवाया जो उन्हें जानते तक नहीं लेकिन फिर भी सभी ने उनकी आत्मशांति की दुआ की। जानती हो सखी ,सोना माँ के खबर से मैं दुखी थी ( तुम्हे तो पता है मैं अभी घर परिवार से बहुत दूर अकेली हूँ )सो खुद को बहलाने के लिए ब्लॉग भ्रमण करने लगी ,ये ब्लॉग की दुनिया और तुम सब स्नेहिल दोस्त मेरे अकेलेपन के सबसे बड़े साथी हो गए हो ,तभी मीना जी की प्रतिक्रिया इस लेख पर देख मेरी आखे भर गई और मैंने अपना दुःख तुम सब से साझा कर लिया। तुम सबके स्नेह के लिए मैं दिल से आभारी हूँ। और तुम्हारी तो कर्ज़दार हूँ जो तुमने मुझे अपनी सखी बनाकर भेट स्वरूप इतने सारे संगी -साथी दे दिए। हमारा स्नेह और साथ यूँ ही बना रहे यही कामना है।
हटाएंमृम स्पर्शी संस्मरण कामिनी जी सचमुच कुछ व्यक्तित्व अपने न होते हुवे भी अपनों से ज्यादा नजदीक हो जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंसरल गति प्रवाह लिये उत्तम संस्मरण ।
सहृदय धन्यवाद..... कुसुम जी ,आप के स्नेह और अनमोल विचारो के लिए मैं आभारी हूँ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को "असम्भव कुछ भी नहीं" (चर्चा अंक-3900) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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तहे दिल से शुक्रिया सर मेरी पुरानी रचना को स्थान देने हेतु,सादर नमन आपको
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमन आपको
हटाएंहृदयस्पर्शी रचना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सादर नमन आपको
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