भारतीय मान्यता हैं कि -" हर मनुष्य को उसके कर्मो के हिसाब से मरने के बाद स्वर्ग या नरक की प्राप्ति होती हैं। मेरी समझ से तो ये स्वर्ग और नरक इसी धरती पर हैं। आखिर ये " स्वर्ग और नरक " हैं क्या ? शायद , सुखी -संपन्न जीवन या ये भी कह सकते हैं कि अपनी मर्जी ,अपने पसंद का जीवन स्वर्ग हैं और दुःख दरिद्रता भरा या अपनी पसंद से बिपरीत जीवन नरक हैं। या शायद, जहाँ प्रेम ,परवाह ,अपनत्व और शांति हो वो जगह स्वर्ग हैं और जहाँ कलह, कलेश, लालच और घृणा का वास हो , वो जगह नरक हैं। ये तो लोग अपनी अपनी मानसिकता से तय कर लेते हैं।
मुझे नहीं पता मरने के बाद क्या होता हैं ? पर अपने जीवन के अनुभव से इतना तो जरूर समझ चुकी हूँ कि -" कर्मो " का यानि अपने किये का फल आपको भुगतना ही पड़ता हैं ,ये सृष्टि का नियम हैं। इसे हम अपनी अना या विवकहीनता के कारण बेतुकी बात भले ही कह देते हैं मगर हमारी अंतरात्मा इस सत्य को जरूर काबुल करती हैं। हाँ ,कभी कभी भले लोगो को आकरण दुःख पाते देख मन इस बारे में चिंतन करने लगता हैं कि -कही सचमुच पिछले जन्म की मान्यता सही तो नहीं , कही ये पिछला कर्मा तो नहीं ? लेकिन अक्सर ये भी देखने में आता हैं कि -एक ना एक दिन उस भले आदमी की अच्छाइयों की कद्र होती हैं और उसके अच्छे कर्मो का फल भी उसे जीते -जी मिलता ही हैं। हाँ ,कभी कभी देर भले हो जाए। वैसे भी हमारे कर्मो का फल मिलने में थोड़ी देर तो होती ही हैं जैसे ,आज हम अपने शरीर के साथ लापरवाही कर रहें हैं तो उसकी सजा हमें हमारा शरीर एक -दो साल बाद ही देगा न।
खैर ,जो भी हो मगर आज के परिवेश में, इस बिषम परिस्थिति में जब कि -सबको अपने मर्जी के बिपरीत ही चलना पड़ रहा हैं, ये कर्मफल विशेष रूप से उजागर होते दिखाई दे रहे हैं। ऐसा लग रहा हैं जैसे प्रकृति हमसे अत्यंत रुष्ट होकर ,कोई प्रपंच रच रही हैं और हमें जीते- जी ही, अपने -अपने कर्मफलों को भोगने का अनुभव कराना चाहती हैं। इसी धरा पर हमने जो खुद से ही अपना -अपना स्वर्ग नरक निर्मित कर रखा हैं, उसे भोगने को सृष्टि हमें मजबूर कर रही हैं।
आज ये महामारी और इससे जूझते सम्पूर्ण विश्व के लोगो को देखकर एक बात तो हर एक ने स्वीकार कर ली हैं कि -ये सारी मुसीबतें मानव ने खुद ही निर्मित की हैं और खुद के किए को उन्हें भुगतना ही पड़ेगा। प्रकृति के आगे हमारा वज़ूद नगण्य हैं और उससे छेड़छाड़ के हमारे दुःसाहस का परिणाम ही प्रकृति हमें दे रही हैं। खुद को महाशक्ति समझने का गुरुर रखने वाले देशों को भी अपनी औकात पता चल गई हैं। आज वो भी लाचार और बेबस होकर मौत का तांडव देख रहे हैं।
खैर ,ये तो बहुत बड़ी बड़ी बाते हैं इसका विश्लेषण करने का दुःसाहस " मैं " मंदबुद्धि नहीं करुँगी। मगर छोटी छोटी घटनाक्रमो को देखकर भी मैं हतप्रस्थ हूँ। जिस प्रकृति को हमने दूषित कर रखा था, वो प्रकृति खुद का शुद्धिकरण कर चुकी हैं, मगर हमें कैद में रहने की सजा सुना चुकी ताकि हम उसका आनंद ना उठा सकें ,यकीनन ये हमारी सजा ही तो हैं। " लॉकडाऊन " हर व्यक्ति के लिए ,हर परिवार के लिए ,हर समाज के लिए, हर देश के लिए एक नया अनुभव ,एक नई सीख ,एक नई समझ ,एक नई चेतावनी लेकर आया हैं। जिसने भी जिस वस्तु विशेष या उस व्यक्ति विशेष की, जो हर पल उसे प्राप्त था मगर उसने कभी उसकी कदर नहीं की थी, उसे उसी चीज़ के लिए तरसा रहा हैं, उसकी अहमियत भी समझा रहा हैं। यही नहीं जिन्हे जो चीज़ ,रिश्ते या व्यक्ति नापसंद थे, उन्हें उन्ही के साथ रहने को मजबूर कर रहा हैं। जिस भारतीय संस्कृति की ,औषधी की, योग की हमने अवहेलना की थी, आज उसी को अपना जीवन रक्षक मान उसके प्रयोग करने को हम मजबूर हैं और उसे बढ़ावा भी दे रहे हैं।
जहाँ तक बात करे भारतीय रिश्तों की तो , उसकी भी हमने बड़ी नाकदरी की हैं और आज वही परिवार, वही घर ही हमारा सब से सुरक्षित बसेरा बना हुआ हैं। परन्तु हमारे पिछले कर्मो के हिसाब से यानि हमने पहले से ही जो अपने घर का वातावरण बना रखा था , उसी के बुनियाद पर आज हमारा खुद का घर ही हमारे लिए स्वयं निर्मित स्वर्ग और नरक का रूप ले चूका हैं और हम उसे भोगने को विवश हैं। जिस परिवार में सारी व्यस्तता के वावजूद पहले से ही प्रेम ,परवाह और एक दूसरे की कदर करने की मानसिकता थी आज वो नमक रोटी खाकर ,सारे अभावो को झेलने के वावजूद भी खुश हैं क्योंकि उन्हें एक दूसरे के साथ समय बिताने का अवसर मिला हैं। मगर जिस परिवार में हमेशा पारिवारिक सुख के वजाय आर्थिक सुख को अहमियत दी गई थी जहाँ एक दूसरे के साथ एक पल भी गुजरना वक़्त की बर्बादी समझा जाता था ,आज वो घर पूरी तरह नरक का रूप ले चूका हैं।
चेतावनी स्वरूप आई ये बिषम परस्थितियाँ आज हमें एक और अवसर प्रदान कर रही हैं ,हमसे कह रही हैं -" सम्भल जाओ ,सुधर जाओ ,अभी भी वक़्त हैं कदर करो अपनी प्रकृति की ,अपनी संस्कृति की ,अपने संस्कारो की ,अपने रिश्तों की ,अपने स्वर्गरूपी घर की....
चेतावनी स्वरूप आई ये बिषम परस्थितियाँ आज हमें एक और अवसर प्रदान कर रही हैं ,हमसे कह रही हैं -" सम्भल जाओ ,सुधर जाओ ,अभी भी वक़्त हैं कदर करो अपनी प्रकृति की ,अपनी संस्कृति की ,अपने संस्कारो की ,अपने रिश्तों की ,अपने स्वर्गरूपी घर की....
अच्छी पोस्ट |आप स्वस्थ और सुरक्षित रहें |
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार
हटाएंकायनात तो अपने तरीके से वर्षों से चेताती आ रही है ! पहले उसने प्यार से समझाया, फिर थोड़ी सख्ती दिखलाई पर हम नासमझ अपनी हेकड़ी के चलते कुछ भी समझने को तैयार नहीं हुए तो उसने कोरोना की छड़ी उठाई पर अभी भी हमें पूरी अक्ल नहीं आ पाई है ! शायद उसी का नतीजा है अब अम्फान ! जो अब तक के सभी तूफानों से भयंकर है !
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,आपने बिलकुल सही कहा ,प्रतिक्रिया देने के लिए आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंउपयोगी और प्रेरक सन्देश
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3708 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
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हटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंकार्य-कारण का सिद्धांत तो एक वैज्ञानिक सत्य है। भला किसी कार्य को उसके कारण से पृथक आप कैसे कर सकती हैं। वैसे ही कर्म फल को उस कर्म से विलग किया जाना तो संभव ही नहीं। गम्भीर विचार और चिंतन से भारी-पूरी रचना।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,आपने बिलकुल सही कहा ,प्रतिक्रिया देने के लिए आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 21 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सहृदय धन्यवाद सर ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंचेतावनी तो है पर कितनी गम्भीरता से मनुष्य उसको ले रहा है वो भी एक प्रश्न है। सुन्दर लेख।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,अब भी ना सचेत होंगे तो कब ? ,प्रतिक्रिया देने के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंवाह!सखी ,बहुत सुंदर विचार ..। दुख तो इस बात का है कि इस चेतावनी को भी इंसान गम्भीरता से नहीं ले रहा ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी ,हाँ,तभी तो नतीजा भी भुगत रहा हैं ,प्रतिक्रिया देने के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंप्रकृति समय-समय पर चेतावनी देती रहती है पर इंसान न कभी गंभीर हुआ न आगे होगा। किसी एक की करनी की सजा सम्पूर्ण विश्व यूँही भुगतता रहेगा। बहुत सुंदर और उपयोगी लेख लिखा सखी 👌
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी ,चंद स्वार्थियों की करनी की सजा ही पूरा समाज भुगतता हैं ,प्रतिक्रिया देने के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंबहुत सुंदर लेख और उपयोगी सन्देश
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद जोया जी। प्रतिक्रिया देने के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंसही कहा आपने।
जवाब देंहटाएंसादर
सहृदय धन्यवाद सर , प्रतिक्रिया देने के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंविस्तृत बुरे प्रयोग
जवाब देंहटाएंज्ञान संसाधन के !
शिथिल मानवी अंग
बिना उपयोगों के !
खंडित वातावरण,
प्रभामण्डल बिखरा ,
दुखद संक्रमण काल,तुम मुझे क्या दोगे !
सहृदय धन्यवाद सर ,आपकी उपस्थिति से लेखन सार्थक हुआ ,इन चंद पंक्तियों में आपने बहुत गहरी बातें कह दी ,सादर नमन आपको
हटाएंबढ़िया सामयिक लेख , बधाई
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर , प्रतिक्रिया देने के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार
हटाएंसमसामयिक संवेदनशील विषय पर बहुत प्रेरक लेख कामिनी जी ।सत्य कथन है कि मनुष्य के स्वर्ग व नर्क की दशा व दिशा उसके
जवाब देंहटाएंस्वयं के हाथ है । सादर नमन...
दिल से धन्यवाद मीना जी ,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार
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