हिन्दू धर्म में जन्म से लेकर मरण तक कई संस्कार होते हैं जैसे -पुंसवन संस्कार ,अन्नप्रासन संस्कार ,मुंडन संस्कार ,उपनयन संस्कार ,विवाह संस्कार एवं दाह -संस्कार आदि।वैसे तो संस्कार सोलह माने गए है (कही-कही तो 48 संस्कार भी बताये गए है ) लेकिन ये छह संस्कार तो महत्वपूर्ण है जो अभी तक अपने टूटे- बिखरे रूप में निभाए ही जा रहे हैं। " संस्कार "यानि वो गुण जो सिर्फ आपके शरीर से ही नहीं वरन आत्मा तक से जुड़ जाते हैं। मान्यता ये है कि -आत्मा से जुड़े गुण एक जन्म से दूसरे जन्म तक स्थाई रूप से बनी रहती है। यदि आत्मा पूर्व जन्म से कोई दुर्गुण लेकर आयी भी है तो ये सारे संस्कार उस आत्मा की सुधि भी करते हैं और शायद इसीलिए विवाह संस्कार भी होते हैं और ये मानते हैं कि -विवाह एक जन्म नही वरन जन्म-जन्म का साथ होता है।
अब ऐसा होता हैं या नही ये तो वाद -विवाद का विषय है इसलिए मैं उसमे नही जाना चाहती ,क्योकि ये अपनी अपनी विश्वास की बात है जिस पर कोई तर्क -वितर्क नही। लेकिन इतना तो जरूर है कि हमारे पूर्वजो द्वारा चलाये गए इन संस्कारो की कुछ तो विशेषता जरूर होगी। विवाह को भी समझौता नहीं वरन "संस्कार" कहा गया। जिसमे वेद मंत्रो के साथ एक यज्ञ करते हुए एक पुरुष और स्त्री बंधन में बंधते थे और सृष्टि के विकास में अपना योगदान देते थे। ये बंधन कुछ नियम कानून और अधिकार -कर्तव्य के दायरे में होते थे। इस विवाह संस्कार में कुछ तो ऐसी खास बात जरूर थी कि -उस वक़्त हर घर स्वर्ग होता था।
वैदिक काल को छोड़े ,बस आज के तत्कालीन परिवेश को छोड़ 20 -25 साल पीछे ही चलते हैं तब भी हमारे समाज में शादी को एक संस्कार ही मान परिवार वाले बड़े दायित्व के साथ पूरा करते थे और वर-वधु भी उसे हृदय से अपनाते थे।अपने बच्चों के लिए वर -वधु तलाशने का अधिकार सिर्फ माँ -बाप को होता था। खुद के लिए जीवन साथी चुनने का अधिकार हमें नहीं था। ईका - दुका घटनायें होती थी जहाँ बच्चें अपनी मनमानी करते थे लेकिन उस हालत में लड़कियों को तो बदचलन ही कहा जाता था। माँ बाप की आज्ञा मान हम लड़कियां एक अजनवी के साथ कभी ना टूटने वाली बंधन में बांध जाती थी और अपनों से दूर जा कर एक पराये घर को अपना बना प्रेम और सेवाभाव से उस घर को एक मंदिर बनती थी। एक गीत के बोल याद आ रही है -
जैसे जैसे भँवर पड़े मन घर अंगना को छोड़े
एक एक भाँवर नाता अंजानो से जोड़े
सच, उस वक़्त तक भी हम लड़कियां ,मंत्रोच्चारण के साथ अग्नि को साक्षी मान जब एक अजनवी पुरुष के साथ सात फेरे लेती थी तो एक-एक फेरे के साथ खुद को उस पुरुष को समर्पित करती जाती थी। शादी की सारी रस्में गहरी भावनाओं लिए होती थी । जब कन्यादान की रस्म होती थी तो एक माता- पिता अपनी लाड़ली का हाथ उस पुरुष के हाथ में पूर्ण विश्वास के साथ देते थे कि -आज से ये पुरुष मेरी बेटी के जीवन के सुख दुःख का साथी है और बेटी को भी ये विश्वास होता था कि मेरे पिता ने मेरा हाथ सुरक्षित हाथों में दिया है। इसी विश्वास के साथ फेरे लेते-लेते ही उस अजनवी को वो अपना तन-मन समर्पित कर देती थी और सिन्दूर दान होते होते वो परपुरुष अपना हो जाता था और स्वतः ही उस पर खुद का अधिकार भाव भी आ जाता था। शादी की एक एक रस्मो के साथ वर -वधु ही नहीं परिवार का एक एक सदस्य एक पवित्र रिश्ते में बँधा जाता था।
मेरी शादी भी इन्ही परंरागत रस्मो के साथ हुई थी मैंने भी अपने पति को सगाई के दिन ही देखा था। और फिर शादी के दिन ,इस बीच बात-चीत करना तो दूर एक दूसरे को देखे भी नहीं थे । अपने पसंद की शादी करना या शादी से पहले मिलना, बाते करना ये सब तो आज के दौड की रस्मे हैं। हमारे समय में तो हमे यही पता था कि हम से बेहतर हमारे लिए हमारे माँ बाप सोचते हैं, हमारा कर्तव्य सिर्फ उनकी आज्ञा का पालन करना हैं। अब ये सही था या गलत नहीं कह पाऊँगी क्योकि उस वक़्त भी कभी कभी माँ बाप के जिद्द और अहम का शिकार कई बच्चे हो जाते थे और उनके लिए शादी अभिशाप बन कर रह जाती थी ( इसकी संख्या कम थी)फिर भी वो शादी के बंधन को तोड़ नहीं पाते थे, शायद हमारे संस्कार ही ऐसे थे। आज जबकि पूरी स्वछंदता मिली हैं अपना जीवन साथी खुद चुनने का तो शादियां यकीनन ज्यादा ही टूट रही हैं। मुझे नहीं पता पहले के नियम सही थे या आज के लेकिन पहले एक अच्छी बात तो जरूर थी कि -शादी चाहे अपनी मर्जी से हो या परिवार के जब हो गई तो हो गई फिर उसे निभाने की पूरी कोशिश होती थी । इसका सबसे सकारात्मक असर बच्चो पर होता था क्योकि परिवार नहीं टूटते थे।
हाँ ,तो मैं अपनी शादी की बात बता रही थी -मुझे आज भी याद हैं शादी के रस्मो के बाद अपने पति से वो पहली मुलाकात या वार्तालाप कह सकते है। सारी रस्मे होते होते सुबह के पांच बज गए थे जब हमे पूजा घर में ले जाया गया ,जहाँ कुछ और रस्मे कर आखिरी रस्म " मुँह दिखाई "के लिए हमे थोड़ी देर के लिए अकेले छोड़ा गया ,चुकि सुबह हो चुकी थी इसलिए हमे सिर्फ पाँच मिनट ही मिले थे। सबके जाते ही मेरे पति ने मेरा हाथ अपने हाथो में लिया और एक छोटा सा पैकेट मेरे हाथो में दे दिया। मैं कुछ नहीं बोली ,उन्होंने कहा -"कुछ बोलोगी नहीं " मैं चुप थी। उन्होंने फिर कहा -" देखो तो खोलकर क्या हैं ? "मैं फिर भी कुछ नहीं बोली।" कुछ भी नहीं बोलोगी ,थैंक्यू भी नहीं " उन्होंने फिर पूछा। मैं उनकी तरफ देख रुआँसी होकर बोली -" क्यूँ बोलू थैंक्यू ,आपने मेरे पापा को इतना परेशान क्यूँ किया ? वो दो सेकेण्ड मुझे टकटकी बंधे देखते रहे ,मैंने अपनी आँखें नीची कर ली ,फिर वो बड़े प्यार से बोले -" मैंने कहाँ परेशान किया वो तो मेरे रिस्तेदारो ने किया न और शादी व्याह में ऐसी छोटी छोटी बाते होती रहती हैं। मैं सिर निचे किये हुए ही बोली -"आप रोक तो सकते थे न "वो मुस्कुराते हुए मेरे दोनों हाथो को अपनी हाथो से कसकर पकड़ते हुए बोले - " ये तुम नहीं वो अधिकार बोल रहे हैं जो आज से तुमने मुझ पर पा लिया हैं। "
उनकी बाते सुन जैसे मैं नींद से जाग गई ,मैंने एक पल पहले ये कैसी बाते कह दी थी इनसे ,क्यों कहा ? हमारी पहली मिलन की घडी और मेरा उनसे पहला संवाद वो भी शिकायत और उलाहने के रूप में , मैं कैसे कह गई ?मैं तो अभी उन्हें जानती भी नहीं ,अभी तक मैंने उन्हें ठीक से देखा तक नहीं हैं ,अभी चंद घंटे पहले तक तो मेरा उनसे कोई रिश्ता भी नहीं था ,एक पल में कैसे बदल गया ? उन्होंने ये क्यों कहा कि - उनपर मेरे अधिकार ने ही मुझसे ये सब कहलवाया ? हाँ ,मैंने वो एक एक शब्द उनपर अधिकार के साथ ही तो बोले थे ,पर कैसे ? क्या मुझे ये अधिकार उनके चुटकी भर सिंदूर ने दिया था या गले में बंधे ये काले मोतियों की मालाओ ने जिसे मंगलसूत्र कहते हैं या अग्नि के इर्द गिर्द लेते उन सात फेरो ने ? यकीनन नहीं ये सारे तो कर्मकांड थे ,मुझे उन पर अधिकार मिला था मेरे समर्पण से।
जैसे ही माँ -बाप ने कन्यादान दिया और मैं उनकी बामांगी बनी ,मैंने उसी पल अपना तन उन्हें समर्पित कर दिया और अग्नि के एक एक फेरे के साथ मैं अपना मन भी उन्हें समर्पित करती चली गई,सिंदूरदान होते ही मुझे उनके प्रति अपने कर्तव्यों का भान हो चूका था। यकीनन तभी एकांत में उनके समीप बैठते ही मैंने उनपर अपना अधिकार जता उलाहना देदिया। आज भी मेरे पति हंसी -मज़ाक में मेरी बेटी से कहते है -तुम्हारी माँ तो पहली मुलाकात में ही मुझसे लड़ना शुरू कर दी थी। सच ,अजीब होती थी हमारे समय में ये शादी के बंधन भी ,माँ बाप ने जिससे रिश्ता जोड़ दिया उसे अपना सारा जीवन समर्पित कर देते थे और पूरी उम्र यही कोशिश करते थे कि इस बंधन में कोई भी गाँठ ना पड़ने पाये। आज समर्पण नहीं सिर्फ अधिकार भाव ही बचा हैं।
आज 2 जून ,मेरी शादी को 23 साल हो गये और आज भी हमारा रिश्ता पति पत्नी से ज्यादा एक सच्चे और पक्के दोस्त की तरह हैं। ऐसा नहीं हैं कि इन 23 सालो में कभी झगडे नहीं हुए ,मनमुटाव नहीं हुआ। हुआ ,सबका होता हैं लेकिन मतभेद हुआ मनभेद कभी नहीं। आज एक साल से मैं अपने पति से दूर हूँ लेकिन आज भी हमारे बीच प्यार की वही मधुर गंगा बहती हैं।मेरी बेटी के दोस्त सब कहते हैं कि अंकल -आंटी long distance relationship में हैं। तो मैं हसँ कर कहती हूँ -बेटा ,ये हमारे जमाने का प्यार हैं यहां दुरी होने पर प्यार और गहरा होता हैं। आप सब की तरह हमारे पास ढेरो ऑप्शन्स नहीं थे ,हम एक से प्यार करते और आजीवन उन्ही से निभाते थे वो भी ख़ुशी ख़ुशी। शायद यही हमारे संस्कारो की खासियत थी। आज विकल्पों के अधिकता के कारण विवाह संस्कार के स्वरूप ही बदल गये और उनके परिणाम भी। आज के विवाह हमारे गुड्डे -गुड़ियों के विवाह के खेल जैसे भी नही रहे ,हम तो उस विवाह संबंधो को भी बरसो तक बड़े प्यार से निभाते थे।
आज तो विवाह संबंधित जो भी कार्यक्रम होते हैं वो तो तीन घंटे का इंटरटेनमेंट प्रोग्राम होता हैं और उनसे बने संबंध तीन महीने में ही दम तोड़ने लगते हैं ,यदि ज्यादा सब्र वाले हुए तो तीन साल खींचकर ले जाते हैं। यकीनन हमे अपने जीवन के प्रति ,अपने व्यवहारों के प्रति और अपने संबंधो के प्रति मजबूती प्रदान करने में उन शुद्ध संस्कारो का और नियमो का बहुत बड़ा योगदान था और वो संस्कार ही हमसे शनैः शनैः छूटे ही जा रहे हैं। मैं अपने आप को अपने परिवार को भाग्यशाली मानती हूँ कि -हम आज भी उन संस्कारो से पूर्णतः जुड़े हैं।
बहुत बहुत बधाई वैवाहिक वर्षगांठ की। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आपका जीवन खुशियों से भरा रहे।
जवाब देंहटाएंविवाह संस्कार पर इतना सुंदर लेख लिखने हेतु भी बधाई।
दिल से धन्यवाद मीना जी ,आप के इस असीम स्नेह के लिए आभार ,सादर स्नेह
हटाएंहार्दिक शुभकामनाएं और बहुत बहुत बधाई कामिनी जी इस पावन अवसर पर..., वैवाहिक संस्कारों पर बहुत अनमोल लेख ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद मीना जी ,आप सब का स्नेह अनमोल हैं ,मैं तो बस अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की कोशिश करती हूँ ,सादर स्नेह
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जवाब देंहटाएंविवाह के संस्कारों पर बहुत सुंदर लेख लिखा आपने शादी की सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयां सखी
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सखी ,आप की स्नेहिल प्रतिक्रिया एवं शुभकामना के लिए ,सादर स्नेह
हटाएंप्रिय कामिनी -- सबसे पहले तुम्हे तुम्हारी शादी की वर्ष गांठ पर बहुत बहुत बधाई सखी |तुम्हारी जोड़ी और खुशियाँ दोनों अटल हों मेरी यही कामना है | तुमने बहुत ही भावपूर्ण लेख लिखा है | सच लिखा तुमने आज से मात्र तेईस साल पहले [ क्योकि मेरी भी शादी तुमसे कुछ ही दिन पहले आठ मई को हुई थी ] शादी व्याह में जो लाड चाव और सरसता नजर आती थी वह आज कल नहीं आती | हम लोग सगाई से ही प्रतिबद्ध हो गये थे इस साथ को आजीवन निभाने के लिए | माता - पिता की पसंद पर कभी संदेह नहीं किया और ऊँगली नहीं उठाई | पर आज मानो बच्चो की शादी विवाह के बारे में सोचकर मन विकल सा हो जाता है | ना जाने हमें वो अधिकार मिल भी पायेगा या नहीं जिसका सौभाग्य हमारे माता पिता को मिला था क्योकि आज बच्चे अपने सभी निर्णय खुद लेने को आतुर हैं | बदलते समय के साथ आज ये मांग उठने लगी है जब सभी काम अपनी पसंद के तो जीवन का इतना महत्वपूर्ण निर्णय दूसरों के भरोसे क्यों |? जाने ये हमारी कुछ कमी है या बदलते समय की बात है || दुआ करते हैं कि जैसे हमलोगों ने अपने सुखद वैवाहिक जीवन का आनन्द लिया वैसे ही अगली पीढ़ी उस बात को समझे की सचमुच ये कोई सीरियल वाली शादी नहीं -- आजीवन साथ रहने का अटूट बंधन है | जिसे अटूट रखने के लिए आपसी विशवास और पूर्ण समर्पण की जरूरत है |
जवाब देंहटाएंहाँ ये बातकी जरुरत है कि हम बच्चो को भी अनसुना ना करें
एक बार फिर तुम्हे बधाई और प्यार | सुंदर लेख के लिए हार्दिक शुभकामनायें सखी | एक बार फिर से तुमने मौलिक चिंतन का परिचय दिया है |
दिल से शुक्रिया सखी ,तुम्हारा आशीर्वाद और स्नेह मेरे लिए अनमोल हैं , तुम्हे भी खुशहाल वैवाहिक जीवन की ढेरो शुभकामनाये ,तुम्हारा वैवाहिक जीवन खुशियों से भरा रहे। सखी, नई पीढ़ी शादी अपनी मर्जी से करे या परिवार वालो की मर्जी से बस कामना यही हैं कि वो इस बंधन को निभाना सीखे ताकि घर -परिवार ना टूटे और बच्चे माँ -बाप के होते हुए भी बेघर ना हो। बस यही दुआ हैं ,सादर स्नेह सखी
हटाएंपरिणयोत्सव की ढेर सारी शुभकामनायें!!!
जवाब देंहटाएं'मैं उनकी बामाग्नि बनी' बड़ा खतरनाक वाक्य है. इसे 'मैं उनकी "वामांगी" बनी' बना दीजिये, मधुरता का प्रवाह हो जाएगा. ईश्वर आपकी खुशियों को चिरंतन बनाये रखें.
सहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,सबसे पहले अपने टंकण अशुद्धियो के लिए आप से क्षमा चाहती हूँ,सच कहा आपने बहुत बड़ी गलती थी ,वो कहते हैं न कि" नुक्ता की कमी से खुदा जुदा बन गया "वही गलती मुझसे हो गयी थी। मैं आप की बहुत आभारी हूँ आगे भी यूँही मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे यही कामना करती हूँ ,सादर नमस्कार
हटाएंशादी की सालगिरह की ढेर सारी शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ,नीतीश जी
हटाएंशादी की सालगिरह मुबारक हो..सुंदर लेख।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद पम्मी जी ,मेरी रचना आप को पसंद आई ये जान बहुत प्रसन्ता हुई ,आप के इस स्नेह के लिए आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंमेरी और ब्लॉग बुलेटिन की ओर से हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करें|
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 03/06/2019 की बुलेटिन, " इस मौसम में रखें बच्चो का ख़ास ख़्याल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सहृदय धन्यवाद शिवम जी ,मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में स्थान देने के लिए आभार आप का ,सादर नमस्कार
हटाएंकामिनी जी विवाह की वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएँँ मेरी भी स्वीकार करिये। माता रानी जोड़ी पर सदैव अपना आशीष बनाये रखे।
जवाब देंहटाएंआपका लिखा संस्मरणात्मक लेख सदैव की भाँति सराहनीय भावों से गूँथी हुई है।
अप्रतिम👌
दिल से शुक्रिया श्वेता जी ,मैं तो इस लेख में अपनी शादी का जिक्र यूँ ही कर गई थी ,जैसा कि मैंने अपनी लेख में जिक्र भी किया हैं कि " एक साल से मैं अपने पति से दूर हूँ" तो शायद भावनाओं में बह कर ये लेख लिख गई। मुझे तो अंदाज़ा भी नहीं था आप सब मुझे इतना स्नेह देंगे ,आप सब के मित्रता, स्नेह और आशीर्वाद के लिए हृदय तल से धन्यवाद ,सादर स्नेह
हटाएंजन्मों जन्मों तक आपका रिश्ता यू ही बना रहे,
जवाब देंहटाएंखुशिया आपके जीवन में हर दिन नए रंग भरे,
दुआ हैं रब से आपका रिश्ता यू ही सलामत रहे
शादी के सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं...
कामिनी दी।
बहुत बहुत सुंदर ज्योति जी ,आप के स्नेह एवं आशीर्वाद के लिए दिल से शुक्रिया ,सखी
हटाएंदेरी से आया माफ़ी चाहता हूँ सबसे पहले तो कामिनी दी शादी की 23 वीं वर्षगाँठ के पावन अवसर
जवाब देंहटाएंपर आप दोनों को प्यार भरी बधाई कोई प्यार का गीत गुनगुनाइए, और मुस्कुराइए, और खिलखिलाइए !
विवाह कहे अनकहे तरीके से ये एहसास दिलाता रहता है तुम्हारे जीवन का एक मूल्य है और उस मूल्य को समझने वाला एक साथी हमेशा तुम्हारे साथ है और पति पत्नी का रिश्ता एक सच्चे दोस्त की तरह हो जाता है वैवाहिक संस्कारों पर बहुत ही सराहनीय लेख :)
दिल से धन्यवाद संजय जी ,आप के इस स्नेह भरे आशीर्वाद से बहुत ख़ुशी हुई ,देर से ही सही आपने आशीर्वाद दिया एक बहन के लिए यही बहुत हैं ,आप सब के स्नेह की मैं आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंआपको विवाह के वर्षगाँठ की सादर बधाई। देर के लिए क्षमा चाहुँगा। पहले की तुलना में आज हर रिश्ते में पर्याप्त स्वतंत्रता उपल्बध है और हर व्यक्ति की राय महत्त्वपूर्ण है। आज शायद ही किसी अरेंग विवाह में लड़के और लड़कियों की राय नहीं ली जाती है और प्रेम विवाह में तो खैर सब कुछ उनके हिसाब से ही रहता है। फिर समस्याएं बढ़ रही हैं। हो सकता है मेरी राय गलत हो परन्तु मुझे लगता है कि विवाह के संबन्ध में हमसे बेहतर हमारे माता-पिता जानते हैं। हमारी जरूरत क्या है, हम किस तरह के व्यक्ति के साथ जीवन गुजार सकते हैं, इन सवालों का उत्तर उनके पास होता है। और मेरा अनुभव है कि जिस विवाह में लोभ या महत्त्वाकांक्षा को आधार बनाया जाता है, वहाँ ही ऐसी समस्याएं ज्यादा आती है। खैर ये राय बहुत व्यक्तिगत और छोटे अनुभव पर आधारित है।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद राजीव जी ,सर्वप्रथम आप का मेरे ब्लॉग पर स्वागत हैं। आपने सही कहा -मैं आपके विचारो से पूर्णतः सहमत हूँ ,सादर नमस्कार
हटाएंएक शानदार लेख के लिये बधाई कामिनी जी जो संस्कार मान के निभाये जाती रही वो प्रथा बस व्यवहारिकता और भार स्वरूप निभा रहे हैं युवा पीछे क्या भावनाएं थी इन को बनाने की सभझे बिना आज के दौर में हवन और मंत्रोच्चारण के समय दोस्त सखियाँ मिल पण्डितजी के शब्दों को हंसी में उडा देते हैं और कहीं कहीं तो घूस प्रथा शुरू हो गई है भाई पण्डित इतने रूपय में मामला फिट फेरे जल्दी निबटा देना खैर... आपके हर लेख की तरह बहुत सशक्त लेख बारिकियों से सब कुछ बताता।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अनीता जी ,मेरी लेख को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद कुसुम जी , आपने सही कहा -संस्कार का महत्व ही खो चूका हैं ,आप की टिप्पणी का मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहता हैं आप की प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साहवर्धन करती हैं ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लेख
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ओंकार जी ,प्रोत्साहन के लिए आभार ,सादर नमस्कार
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