कैसी रस्में है ये?
क्या ये ढकोसला है या बेवकूफी?
आज के इस जेट और नेट के युग में भी ये रुढ़िवादिता ?
देखने-सुनने में कितना अजीब लगता है न ?
दूसरे धर्मो के लोग इसे क्या समझेंगे ?
लेकिन ये है सनातन धर्म की "आस्था की प्रकाष्ठा"
आज की नई पीढ़ी के लिए ये सारी बातें जरूर ढकोसला या अन्धविश्वास होगा मगर, ये प्रथाएं सिद्ध करती है कि-हमारी पौराणिक कथाओं में कुछ तो सत्यता है जो आज भी ऐसी प्रथाओं को पुरी आस्था-विश्वास और श्रद्धा साथ निभाया जाता है। लोग इतने प्यार से तुलसी जी को सजा-सँवार रहें थे जैसे अपनी बेटी को सजाते हैं हल्दी,मेहँदी,चूड़ी-कंगन,बिंदी-सिंदूर और चुँदरी चढ़ा रहें थे। एक वर पक्ष था जो शालिग्राम जी को हाथ में लिए हुए थे और एक कन्या पक्ष जो तुलसी जी को हाथ में उठाये हुए थे और उनके फेरे लगवाएं गए उससे पहले वधु पक्ष ने तुलसी जी का कन्यादान भी किया। सारे विधि-विधान पुरे आस्था और श्रद्धा के साथ किया गया।
ये सब देख मैं सोच थी कि-कितनी गहरी है हमारी सनातन धर्म की जड़ें जो आज भी किसी के हिलाये नहीं हिलती। तुलसी और शालिग्राम जी की कथा तो सर्वविदित है इसे बताने की जरूरत नहीं। बस ये कहना चाहूँगी कि-कुछ बातें ऐसी होती है जो पौराणिक कथाओं की सत्यता स्वयं सिद्ध करती है।
तुलसी जी का नाम वृंदा था। वृंदा एक वैध थी और उनमें निष्काम सेवा भाव कूट-कूटकर भरा था। पंचतत्व का शरीर त्यागने के बाद जब उन्होंने एक पौधे का रूप धारण किया तब भी वो अपनी प्रवृत्ति नहीं बदली, इस रुप में भी वो अपनी औषधीय गुण से मानव कल्याण ही करती है।तुलसी के पौधे का एक-एक भाग ओषधियें गुणों से भरपूर है। "शालिग्राम" को जीवाश्म पथ्थर कहते हैं। "जीवाश्म" अर्थात "पृथ्वी पर किसी समय जीवित रहने वाले अति प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों" अर्थात किसी समय ये पथ्थर सचमुच जीवित होगा और शालिग्राम जी गंडकी नदी के अलावा और कहीं क्यों नहीं मिलते? एक पत्थर ही तो है कहीं भी मिल सकते थे।ये सारी बातें कही-न-कही ये सिद्ध करती है कि-कुछ तो सच्चाई थी इन कथाओं में।अब तर्क-कुतर्क करने वालों को तो कुछ कह नहीं सकते। ये कहानी एक बात और सिद्ध करती है कि भक्त और भगवान के सम्बंध में कोई बड़ा-छोटा नही होता। भक्त वृन्दा के श्राप से भगवान भी मुक्त नही हो सकें।
अब एक बार ये सोचे कि-ये बातें मनगढ़ंत है तब भी प्रकृति और पुरुष का ये अद्धभुत मिलन समारोह ये क्या सिद्ध नहीं करता कि -हमारी सनातन संस्कृति अपनी प्राकृतिक धरोहर को पूजनीय मान इनका पूरी श्रद्धा से संरक्षण करती थी ?
और आज हम अपने ही हाथों से अपनी संस्कृति और प्रकृति दोनों का सर्वनाश कर रहें हैं।
बहुत सुंदर।धार्मिक आस्थाएं भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर 🙏
हटाएंप्रकृति उपासना की कथाएं सूर्य , चन्द्रमा,जल , तुलसी ,बड. ,पीपल इत्यादि के सन्दर्भ में बचपन में सुनी हैं ।उपासना की पद्धति समयानुसार परिवर्तित लगती हैं । चिन्तनपरक सृजन ।
जवाब देंहटाएंहां मीना जी, बहुत कुछ बदल गया है फिर भी आस्था बाकी है, प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपको 🙏
हटाएंकामिनी दी, मैं आपकी इस बात से सहमत हूं कि -ये बातें मनगढ़ंत है तब भी प्रकृति और पुरुष का ये अद्धभुत मिलन समारोह ये बात सिद्ध करती है कि -हमारी सनातन संस्कृति अपनी प्राकृतिक धरोहर को पूजनीय मान इनका पूरी श्रद्धा से संरक्षण करती थी
जवाब देंहटाएंहां ज्योति बहन, ये बात विचारणीय है। सकारात्मक प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपको 🙏
हटाएंबहुत ही सुन्दर सार्थक और संदेश प्रद सृजन हमारी धार्मिक मान्यताएं कभी निराधार नहीं थी।आज विश्व भी उनके महत्व को मान रहा है और अपना रहा है।अधकचरा ज्ञान रखने वाले इनका महत्त्व कभी नहीं समझेंगे।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने सखी, दुनिया अपना रही है और हम छोड़ रहे हैं जो चिंताजनक है, बहुत बहुत धन्यवाद सखी 🙏
हटाएंबेहद सुंदर आस्थापूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया भारती जी 🙏
जवाब देंहटाएंवाकई हमारी सनातन संस्कृति अपनी प्राकृतिक धरोहर को पूजनीय मान आज भी इनका पूरी श्रद्धा से संरक्षण कर रही है
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अनीता जी 🙏
हटाएंसही कहा कामिनी जी आपने हमारी सनातन संस्कृति की मान्यताएं धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक तथ्यों पर भी आधारित हैं तुलसी विवाह वाकई प्रकृति संरक्षण तुलसी संरक्षण हेतु ही है इस तरह तुलसी पर चुन्नी चढ़ाकर शिशिर के तुषार से तुलसी की रक्षा भी हो जाती है ।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने, बहुत बहुत धन्यवाद आपको 🙏
जवाब देंहटाएंहमारी धार्मिक मान्यताएं कभी निराधार नहीं थी।आज विश्व भी उनके महत्व को मान रहा है बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही कहा संजय जी, सराहना हेतु आभार
हटाएंसनातन धर्म मान्यताओं को निराधार नहीं कह सकते हैं विज्ञान की कसौटी पर भी खरी उतरती है बहुत ही शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने सर, साकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्नता हुई, आभार 🙏
हटाएंऐसी विभिन्न परंपराएं समाहित हैं हमारी सनातन संस्कृति में, जो प्रकृति और समाज को समृद्ध बनाती रही हैं, जिसका संसार में कहीं भी उदाहरण नहीं मिलता है, विदेशों में भी उन्हें महते दिया जा रहा है पर पश्चिमी सभ्यता के नकल में अपने देश में ही आजकल लोग उन्हें महत्व नहीं दे रहे हैं, ये बहुत ही चिंतनपूर्ण स्थिति है ।
जवाब देंहटाएंसुंदर विचारणीय आलेख ।
सही कहा आपने सखी, सहृदय धन्यवाद 🙏
जवाब देंहटाएंNice Post Good Informatio ( Chek Out )
जवाब देंहटाएं👉 बिहार के किसान आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखें
👉 class 10th history ( सामाजिक विज्ञान ) objective question answer in hindi
👉 Dramacool In hindi
👉 Class 10th history objective question answer
👉 best gk hindi telegram group link
👉 Top 10 Educational App
👉 IPL फ्री में कैसे देखे 2023