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गुरुवार, 14 अप्रैल 2022

"कू कू करती कोयलिया तुम...."

आज सुबह-सुबह कोयल की कुकू से जब आँखें खुली तो एक बार को लगा मैं स्वप्न देख रही हूँ...

मुंबई की "अँधेरी नगरी" और कोयल की आवाज़.....? 

अरे नहीं, ये तो हकीकत था....मन मयूर बन झूम उठा... 

और फिर कुछ ख़्यालात उमड़ने लगे....सोचा शब्दों में पिरो लू.... 

अब छंदबद्ध ठीक-ठाक है की नहीं वो तो आप जाने....

उसका ज्ञान तो मुझे है नहीं बस, अपनी भावनाएं व्यक्त कर दी मैने 

त्रुटि हो तो क्षमा चाहती हूँ। 




कू कू करती कोयलिया तुम,

आज कहाँ से आई हो ?

मेरे गांव के उस जहाँ से, 

इस जहाँ में कैसे, आई हो ?


पत्थर के घर, पत्थर के जन,

पथरीली भावनाएं जहाँ है। 

कंक्रीट के इस शहर में

कहो ! कैसे, तुम आई हो ?


बड़े दिनों बाद, सुन तेरी  तान

नाच उठा  मन  मेरा है। 

ऐसा लगता है यादों के,

 नंदनवन संग लाईं हो। 


मुधुर-मधुर ये तान तुम्हारी

आज  हिय में हुक उठाती है। 

गांव, घर-आंगन,बाग-बगीचे,

सखियों की याद दिलाती है। 

 

तेरे सुर में सुर  मिलाकर, 

हम तुम संग ही तो गाते थे। 

तुझसे भी ज्यादा हम तो, 

खुद पर ही इतराते थे। 


अच्छा,चलो बता दो अब तो 

इस नगर कैसे आयी हो ?

राह भुली अपने उपवन का

या, हमें जगाने आईं हो। 


जागो ! ऐ पुत्र धरा के

अपनी आँखें खोलो तुम,

प्रकृति है अनमोल रत्न धन 

 क्या,ये समझाने आई हो ?


या, सन्देशा लाई हो तुम

अपने संगी-साथी का।

 वन-उपवन है घर हमारे,

मत काटो बेदर्दी से। 

ना आग लगाओ इन जंगलों में,

जो जीवन आधार हमारे। 


या, तड़पकर तुम भी,

ये  बद्दुआ  देने आई हो। 

जैसे घर जलाया मेरा,

जलोगे उस आग में तुम भी। 

हम ना रहेंगे तो, 

तुम भी ना रहोगे

क्या,ये धमकाने आई हो ?


सच,कोयल हम गुनहगार है,

इस जल-थल और गगन के। 

अब बारी है, कठिन सजा की

हाँ,तुम ये बतलाने आई हो। 




32 टिप्‍पणियां:

  1. चेतने का समय आ चुका है ! नहीं तो दुष्परिणामों की कल्पना भी नहीं की जा सकती

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १५ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद एवं नमन श्वेता जी 🙏

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१५-०४ -२०२२ ) को
    'तुम्हें छू कर, गीतों का अंकुर फिर उगाना है'(चर्चा अंक -४४०१)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता

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  4. वाह कामिनी जी, कोयल के माध्‍यम से क्‍लाइमेट चेंज और मनुष्‍य के पक्षियों के घरों पर अत्‍याचार...एक पूरी व्‍यथा कह दी आपने...या, तड़पकर तुम भी,

    ये बद्दुआ देने आई हो।

    जैसे घर जलाया मेरा,

    जलोगे उस आग में तुम भी।

    हम ना रहेंगे तो,

    तुम भी ना रहोगे

    क्या,ये धमकाने आई हो ?...अद्भुत रचना

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    1. सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद अलकनंदा जी 🙏

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  5. ।बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना प्रिय कामिनी।कोकिल से संवेदनशील मन का ये संवाद बहुत कुछ कहता है।कंक्रीट के जंगल में भी कोयल अपने मधुर गीत के माध्यम से लोगों को3बहुत कुछ बताती है,पर वो सुनना नहीं चाहते।डर है कि सचमुच इन प्राणियों की बददुआ ना लग जाए इस सुन्दर दुनिया को।लाजवाब प्रश्न और संवेदनाओं से भरी चिंतनपरक रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं सखी।♥️♥️❤❤🌺🌺🌷🌷

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    1. तुम सही कह रही हो सखी, सराहना हेतु हृदयतल से धन्यवाद सखी

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  6. कोयल के माध्यम से सार्थक संदेश देती सुंदर रचना
    वाह
    बधाई

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  7. बहुत बहुत सुन्दर, बहुत बहुत मधुर रचना।

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    1. हृदयतल से धन्यवाद सर, सादर नमस्कार आपको 🙏

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  8. भावों को कोई कभी छंदबद्ध कर पाया है क्या? बस मिथ्याभास होता है कि ऐसा हो सकता है। हृदय को जो छू ले वही कविता है। सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

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    1. आपकी साकारात्मक प्रतिक्रिया से सन्तोष हुआ।सच कहा आपने भावों को किसी सीमा में बांधना सम्भव नहीं।तहे दिल से शुक्रिया आपका अमृता जी, सादर नमन आपको 🙏

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  9. आपने कोयल के माध्यम से कंक्रीट के वन तैयार करते इन्सान को कुहूक ( कोयल की आवाज़) के माध्यम से बहुत सुन्दर और सार्थक संदेश दिया है।अति सुन्दर सृजन ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद मीना जी, आपकी सराहना सम्पन्न प्रतिक्रिया से लेखन को बल मिलता है। सादर नमस्कार आपको 🙏

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  10. कामिनी दी,कोयल के माध्यम से आज इंसान पशु पक्षियों पर जो अनजाने ही सही अत्याचार के रहा है उसका बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है आपने।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया ज्योति जी, कभी कभी डर लगता है कि इन गलतियों का खामियाजा भुगतना ही पड़ेगा। सादर नमस्कार आपको 🙏

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  11. कोयलिया की कुहुक सुनकर दिल में इतना कुछ कौंध गया, एक संवेदनशील हृदय की यही तो विशेषता है, सारे जहां का दर्द और ख़ुशी उसे नेमत में मिली होती है

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    1. सही कहा अनीता जी,इन पक्षियों की आवाज दिल को छू जाती है। सराहना हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं सादर नमस्कार 🙏

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  12. उत्तर
    1. जी जरूर,हम सभी एक दूसरे के सहयोग से ही हाथ थामे चलते हैं।

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  13. बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना.......... शुभकामनायें ।

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    1. सहृदय धन्यवाद संजय जी,आपकी टिप्पणी स्पैम में चली जा रही थी,अभी अभी समस्या का समाधन मिला है ,सादर नमन

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