मत रो माँ -आँसू पोछते हुए कुमुद ने माँ को अपने सीने से लगा लिया। कैसे ना रोऊँ बेटा...मेरा बसा बसाया चमन उजड़ गया....तिनका-तिनका चुन कर...कितने प्यार से तुम्हारे पापा और मैंने ये घरौंदा बसाया था....आज वो उजड़ रहा है और मैं मूक बनी देख रही हूँ । ऐसा क्यूँ सोचती हो....ये सोचों ना एक जगह से उजाड़कर दूसरी जगह बस रहा है...कुमुद ने माँ को ढाढ़स बंधाना चाहा। पर...वो मेरा घरौदा नहीं होगा न-कहते हुए माँ सिसक पड़ी।
किसी भी चीज़ से इतना मोह नहीं करते माँ....कल तुम्हारा था...आज इनका है...यही होता रहा है...यही होता रहेगा....फिर क्यों रोना - एक बार फिर कुमुद ने माँ को समझाने का प्रयास किया जब कि पिता के उजड़ते बगियाँ को देख उसका दिल भी रो रहा था...उससे भी दूर हो रही थी उसकी बचपन की यादें....भाई-बहनों के साथ गुजारे ठिठोली भरे दिन....उनका खुद का ही नहीं उनके बच्चों की किलकारियाँ भी गुंजी थी इस घरौंदा में....पापा के जाते ही कैसे तहस-नहस हो गया। उसका दिल सैकड़ो सवाल कर रहा था-क्यों होता है ऐसा....क्यों बाहर से जिन सदस्यों को प्यार से अपना बनाकर हम घर लाते हैं....और ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें अपना घर ही नहीं जिगर के टुकड़े को भी सौप देते हैं....वही उस घर को लुट लेते हैं....क्या ज्यादा की ख्वाहिश होती है उन्हें.....जो वो एक माँ का दर्द नहीं समझते....मिट्टी-गारे के मकान को ही नहीं... चीर डालते हैं माँ के दिल को। सवालों में उलझी...माँ को सीने से लगाये... खुद को संभालती हुई...कुमुद, माँ को उलटे-सीधे तर्क से समझाने का प्रयास कर रही थी।
माँ ये मिट्टी-गारे का घर है....क्यों रोना उसके लिए -कुमुद ने फिर माँ को समझाना चाहा। हाँ,बेटा मैं भी समझती हूँ.... तुम क्या समझ रही हो मुझे इस घर का दुःख है.....मैंने कभी इन सुख-सुविधाओं के चीज़ों का मोल नहीं किया...मेरी सम्पति...मेरा गुरुर.....मेरे बगियाँ के फूल....तो बस मेरे बच्चें थे....जो जहाँ भी रहते थे महकते-चहकते रहते थे .....आज, मेरी सम्पति बिखर गई...मेरा गुरुर टूट गया....मेरे बगियाँ के फूल बिखर गए और...लोगों को तमाशा देखने का मौका मिल गया....कहाँ चूक हो गई मुझसे..... कहते हुए माँ फुट-फुटकर रोने लगी।
तभी कही से एक गाने की आवाज़ सुनाई दी.....
मुझको बर्बादी का कोई गम नहीं
गम है बर्बादी का क्यूँ चर्चा हुआ
कल चमन था, आज एक सहरा हुआ
देखते ही देखते ये क्या हुआ ?
कुमुद ने महसूस किया- ये आवाज़ माँ के दिल से आ रही थी जिसे सुन कुमुद भी आँसू नहीं रोक पाई।
मर्मस्पर्शी ,वक़्त के साथ खुद को बदलना पड़ता है ... अपने घर से मोह होना स्वाभाविक है फिर भी इस दुख को सहना तो पड़ता है ।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना
किसी भी माँ को दुःख घर टूटने का कम होता है दी परिवार टूटने का ज्यादा
हटाएंप्रतिक्रिया देकर उत्साहवर्धन करने के लिए दिल से शुक्रिया दी,सादर नमन
क्यों बाहर से जिन सदस्यों को प्यार से अपना बनाकर हम घर लाते हैं....और ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें अपना घर ही नहीं जिगर के टुकड़े को भी सौप देते है....वही उस घर को लुट लेते हैं.
जवाब देंहटाएंयही कड़वी सच्चाई है, कामीनी दी।
यदि हर नारी इस बारे सोचे विचार करे तो शायद घरौंदे टूटे ही नही। बहुत सटीक रचना।
"यदि हर नारी इस बारे सोचे विचार करे तो शायद घरौंदे टूटे ही नही।"सही कहा आपने ज्योति जी,
हटाएंक्यों नारी नहीं समझती कि-आज जिस जगह पर वो बूढी माँ है कल वो खुद भी उसी जगह पर होगी।
शायद समझती भी है फिर भी वो इसे एक परम्परा बना रखी है और दूसरों की दुर्गति भी करती है और खुद की भी करवाती है।
दुखद ये है कि -21 वी सदी में भी ये बदल नहीं रहा।
प्रतिक्रिया देने के लिए दिल से शुक्रिया ज्योति जी,सादर नमन
मर्मस्पर्शी कथा के लिए आपको ढेरों शुभकामनाएं। सादर।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद वीरेंद्र जी,सादर नमन
हटाएंसंवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमन
हटाएंहृदय स्पर्शी सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
सादर
दिल से शुक्रिया अनीता
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमन
हटाएंचर्चा मंच पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद मीना जी,सादर नमन
जवाब देंहटाएंकितनी भी दिलासा दी जाए पर जिस पर बीतती है वही जानता है !
जवाब देंहटाएंमार्मिक !
सही कहा आपने सर,आभार एवं नमन आपको
हटाएंकामिनी जी,आपकी लघुकथा कहीं गहरे अंतर्मन को छू गई, आखिर कोई कैसे अपने सजे सजाए,बने बनाए घर को भूल सकता है,बहुत मर्मस्पर्शी...कामिनी जी, मैंने भी बहुत दिन बाद अपने "गागर में सागर" ब्लॉग पर एक लघुकथा डाली है,आपसे निवेदन है, कि आप अपनी दृष्टि डालें और मार्गदर्शन करें । आपको मेरा सादर नमन।
जवाब देंहटाएंमार्मिक लघुकथा, सुन्दर प्रवाह में लिखी गई रचना हृदय को छूती है साधुवाद सह आदरणीया।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,प्रशंसा हेतु आभार एवं नमन आपको
हटाएंहृदय स्पर्शी लघुकथा कामिनी जी दर्द छलक रहा है हर पंक्ति में सार्थक संवेदनशील रचना।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद।
दिल से शुक्रिया कुसुम जी,कथा का मर्म लिख पाने में मैं सफल रही ये जान कर ख़ुशी हुई ,आभार एवं नमन आपको
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंसह्रदय धन्यवाद नितीश जी,आभार एवं नमन आपको
हटाएंइंसानी प्रवृत्ति ही यही है वह कभी ये नहीं सोचता कि जो वो बूढ़े माँ बाप के साथ कर रहा है वही उसके साथ आगे भी होगा। जब तक उसे अहसास होता है तब तक पछताने का वक्त भी जा चुका होता है।
जवाब देंहटाएंसह्रदय धन्यवाद विकास जी,बिल्कुल सही कहा...आभार एवं नमन आपको
हटाएंसच जिस घर में सबकी परवरिश हो, जीवन बीता हो, वह ईंट गारे का नहीं हो सकता, उसमें हमारी मानवीय संवेदनायें, भावनायें और जीवन सांसे बसी रहती हैं, उसके बदले दूसरा घर कैसे अपना होगा, यह वह हर कोई इंसान समझ सकता हैं, जो उस दौर से गुजरता है
जवाब देंहटाएंमानवीय संवेदना जगाती प्रेरक प्रस्तुति
दिल से शुक्रिया कविता जी,बिल्कुल सही कहा...आभार एवं नमन आपको
हटाएंबातें करना और उन सभी बातों को जीना ...ये बहुत अलग बाते हैं ...
जवाब देंहटाएंजहाँ जीवन बीतता है ... जिन में यादें बसी हैं, उस आशियाने को छोड़ना सम्भव नहीं होता एक टीस, दर्द और भावनाओं का एहसास बरबस नज़रों से निकल आता है ...
सह्रदय धन्यवाद दिगंबर जी,बिल्कुल सही कहा जिस पर बिताती है वही समझ सकता है इस पीड़ा को --आभार एवं नमन आपको
हटाएंआप सभी का तहे दिल से शुक्रिया,आभार व्यक्त करने में देरी हुई इसके लिए क्षमा चाहती हूँ ,आभार एवं नमन आप सभी को
जवाब देंहटाएंएक माँ के दर्द को और यथार्थ को बयां करती अत्यंत मार्मिक व हृदयस्पर्शी लघुकथा!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मनीषा,ढेर सारा स्नेह आपको
हटाएंएक माँ के लिए घर टूटना उतना दुखद नहीं जितना परिवार टूटना...।आश्चर्य तो तब होता है जब बेटी माँ की भावनाओं को समझती है उसके दुख को बिनकहे ही भांप लेती है वहीं बेटा अपनी पत्नी के साथ मिलकर माँ बाप के दुख का कारण बनता है और उसे उनकी अथाह दुख में डूबती भावनाओं की भनक तक नहीं लगती...वह भी उन्हीं की परवरिश है फिर ऐसा क्यों....
जवाब देंहटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।
सहृदय धन्यवाद सुधा जी,सही कहा आपने घर टूटने से ज्यादा दुखदाई परिवार टूटना ही होता है और ये तो अब घर-घर की कहानी बन गयी है,सराहना हेतु हृदयतल से आभारी हूँ,सादर नमन आपको
हटाएंमर्मस्पर्शी रचना निःशब्द कर जाती है, एक सुन्दर प्रवाह आपकी रचनाओं में होता है, जो पाठकों को अपने साथ बांधे रखता है - - अतुलनीय रचना कामिनी दी अभिनन्दन सह ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सराहना हेतु हृदयतल से आभारी हूँ,सादर नमन आपको
हटाएंदिल छू लिया इस कहानी ने।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आपको ,सादर नमन
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