अरे....बिट्टू बेटा, बाहर इतना शोर क्यों हो रहा है और बाबुजी किस पर गुस्सा हो रहे हैं।
अरे चाची... क्या बताऊँ, दादा जी छोटी सी बात पर किसी औरत पर बहुत गुस्सा हो रहे हैं....
उसे ही अभद्र बोल रहे हैं....
जब कि गलती उस औरत की है भी नहीं....यदि वो दुकान से कोई सामान ले रही है
और उसमे कुछ कमी है तो... शिकायत करना उसका वाज़िब है न
मगर..... दादा जी को कौन समझाए.....
यदि हम छोटी सी बात भी चीखकर या गुस्से में बोले तो अभद्र हो जाते हैं...
और जब बड़े ऐसा करें तो, उन्हें कौन रोकें......
ऐसा नहीं बोलते बिट्टू, दादा जी बड़े है न.....
हाँ, चाची वही तो वो बड़े है जो करे वो सही.....
क्या बड़े कभी गलत नहीं होते ?
मुँह बनाकर बोलते हुए बिट्टू तो निकल गया और मैं....
सोचती रही बात तो सही कह रहा है लेकिन मैं उसे प्रोत्साहन तो दे नहीं सकती.......
क्योंकि वो गलत होगा और चुप रहना वो भी सही नहीं.....
फिर मैं तो घर की नई सदस्य हूँ ......घर के रीत-रश्मों से भी बेखबर.....बोलूँ भी तो क्या ?
दिमाग ख्यालों में उलझा था.....तभी मन ने कहा -वो घर के मुखिया है और.....
उससे भी ज्यादा वो बुजुर्ग है.....
उनका तो सिर्फ सम्मान किया जा सकता है सवाल-जबाब नहीं....
घर-परिवार की मर्यादा तभी बनी रहती है।
हाँ,उनसे सीख जरूर ले सकते हैं कि-
जो गलती वो कर रहे हैं वो हम ना करें.....
छोटों की नज़र में खुद का मान-मर्यादा बनाये रखना भी बड़ों का अहम फर्ज है।
बहुत सही प्रश्न उठाया है आपने ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ।
सहृदय धन्यवाद सर, सादर नमन
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर, सादर नमन
हटाएंसखी ,सालों से बहुत ही कर्मठ सास -ससुर के साथ हूँ। ऐसी बातों को मुझ से ज्यादा कौन समझेगा? स्वभावगत गलतियों का यही निवारण है कि----- जो गलती वो कर रहे हैं हैं, वो हम ना करें। असल में संघर्षों में पली पुरानी पीढी खुद को हल्का -सा भी अप्रासंगिक होने की क्षणिक सोच से आहत हो जाती है। हमारी पीढी बच्चों और बड़ों को अच्छे से संभाल सकती है। सकती है। सुंदर लघु कथा सखी जिसकी सीख अनमोल है। सस्नेह शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया सखी, तुम्हारी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार
हटाएंसमझाइश भरी सीख के साथ सुन्दर लघुकथा ।
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया मीना जी, इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार, सादर
हटाएंबढ़िया लघुकथा है। बड़ों को समझना चाहिए कि उनकी ज़िम्मेदारी कहीं अधिक है।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद विरेन्द्र जी, सादर नमस्कार
हटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक लघुकथा कामिनी जी।
जवाब देंहटाएंसादर।
दिल से शुक्रिया सधु जी, सादर नमन
हटाएंबहुत ही अच्छी कथा, अपनी गलती का अहसास होना जरूरी है साथ ही उसमे सुधार भी, बहुत बहुत बधाई हो कामिनी जी नमन
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद ज्योति जी,आपकी प्रतिक्रिया हमारा मनोबल बढाती है,सादर नमन आपको
हटाएंकामिनी जी ये बातें, हमारे जीवन में लगभग रोज घटित होती हैं, आज की पीढ़ी बड़ी जल्दी बेसब्र हो जाती है, धैर्य,संयम नाम से परहेज है, जिससे बड़ों से सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता और मतभेद होता है, वो बड़ों को समझने, समझाने के बजाय उलझ पड़ते हैं,और विघटन होता है, ..सारगर्भित लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद जिज्ञासा जी,सहमत हूँ आपकी बातों से ,सादर नमन आपको
हटाएंयही हम भी करते हैं,बड़ों का गुस्सा भी प्यार ही होता है, उनसे खीझ कर नहीं सीख कर आगे बढ़ जाना चाहिए.… जो अभी हमें गलत कर रहा हो वह शायद भविष्य में सही लगे। बड़ों के साथ रहना हममे धैर्य लाता है जो जीवन के हर कदम पर काम आता है..
जवाब देंहटाएंबहुत प्रासंगिक रचना
सादर
" उनसे खीझ कर नहीं सीख कर आगे बढ़ जाना चाहिए."
हटाएंबहुत ही अच्छी बात कही आपने...मेरे लघु कथा पर अपने इतने अच्छे विचार रखने के लिए दिल से आभार अपर्णा जी...सादर नमन आपको
बिल्कुल सही कहा कामिनी दी कि छोटों की नज़र में खुद का मान-मर्यादा बनाये रखना भी बड़ों का अहम फर्ज है।
जवाब देंहटाएंदिल से शुक्रिया ज्योति जी,मेरे विचारों पर अपनी सहमति देने के लिए आभार,सादर नमन आपको
हटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंआदरणीय अपर्णा बाजपेई जी से सहमत भी हूँ।
सादर
दिल से शुक्रिया अनीता जी,सराहना हेतु आभार बहन
हटाएंबहुत ही शानदार और शिक्षाप्रद पोस्ट ।बधाई और शुभकामनाएं
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हटाएंसहृदय धन्यवाद सर,सरहनासम्पन्न प्रतिक्रिया के लिए आभार,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार,सादर नमन आपको
जी हां, बात ठीक ही है कामिनी जी । बड़ों को छोटों के लिए आदर्श बनते हुए अपने आचरण के प्रति विशेष रूप से सजग रहना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद आपका जितेंद्र जी, सादर नमन
हटाएंसारगर्भित विषय उठाया है आपने कामिनी जी जिसके दो पहलू हैं,एक तो उम्र दराज व्यक्ति कई दफा शारिरिक और मानसिक थकावट के चलते ऐसा व्यवहार कर जाते हैं, जिनमें कोई दुराग्रह नहीं होता बस समझने वाला वस्तुस्थिति समझ नहीं पाता ,साथ ही युवा पीढ़ी धैर्य से ये सब स्वीकार नहीं सकती। वैसे संतुलन दोनों के लिए जरूरी है।
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा कुसुम जी शारिरिक और मानसिक थकावट इसकी सबसे बड़ी वजह हो जाती है। आपके इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया एवं सादर नमन
हटाएंसही कहा है आपने, बड़ों को हम कुछ कह नहीं सकते पर सीख तो ले ही सकते हैं
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद अनीता जी,आभार एवं नमन
हटाएंबिल्कुल सही फरमाया आपनी गलती का एहसास होना भी जरूरी है बहुत ही शानदार पोस्ट आदरणीय कामिनी जी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर,सादर नमन
हटाएंये लघु कथा तो पढ़ कर गयी थी टिप्पणी कैसे नहीं है ?खैर ....मोबाइल से कुछ भी हो सकता है ।
जवाब देंहटाएंसीख देती अच्छी लघु कथा ।। बड़े भी ले सकते हैं सीख यदि अहम को त्याग दें ।
आप ने पढ़ा यही काफी है, आप ने सही कहा सीखा तो हर उम्र जा सकता है, प्रतिक्रिया देने के लिए दिल से धन्यवाद दी,सादर नमस्कार
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