शोहरत ,प्रसिद्धि ,प्रतिष्ठा एक व्यक्ति के जीवन में ये शब्द बड़े मायने रखते हैं और इस" शोहरत रुपी फल" को खाने के लिए सभी लालायित भी रहते हैं। लेकिन ये फल खाना तो दूर उसे पाना भी आसान नहीं और अगर पा लिया तो खा कर पचाना भी आसान नहीं। शोहरत बाजार में बिकती तो हैं नहीं इसे खुद कमाना पड़ता हैं। इसे पाने के लिए पहले खुद में दृढ़ इच्छाशक्ति का बीजारोपण करना होता हैं फिर अथक मेहनत से कर्म कर उसे सींचना होता हैं ,जब ये बीज अंकुरित होने को होता हैं तो उस पल प्रकृति आपकी परीक्षा लेती हैं और वक़्त बे वक़्त के आंधी -तूफान जैसी बिपरीत परिस्थितियां आती रहती हैं ,कभी कभी तो ओला वृष्टि भी हो जाती हैं। उस पल इन परस्थितियों से घबराये बिना ,अपनी हिम्मत और अपनी हौसलो की मजबूत कर्मठ बाहों में उस अंकुरित बीज को समेटकर सुरक्षित रखना होता हैं तब कही जाकर वो बीज पेड़ बनता हैं और फिर उस पर शोहरत के फल लगते हैं।
अथक प्रयास के बाद जब शोहरत मिल भी जाती हैं तो भी उस फल का स्वाद मीठा तभी होगा जब उसको पाने के बाद आपको आत्मसंतुष्टि मिले वरना वो फल भी कड़वा ही लगेगा।उस शोहरत को संभालना भी बेहद जरुरी होता हैं उसका " मद " यदि सर चढ़ गया तो वो नासूर बन जाता हैं। शोहरत के फल को पचाना भी तभी सम्भव होगा जब आप अपने पैर जमीन पर टिकाए रहेंगे ,साथ ही साथ सयम,विनम्रता और सज्जनता बनाए रखेंगे।
हमें तो सिर्फ व्यक्ति विशेष की प्रसिद्धि दिखाई देती हैं उसके सफर की कठिनाईयां नहीं। शोहरत और प्रसिद्धि पाने वाले कई महान व्यक्ति की जीवन गाथा जानने के बाद उनके हौसले के प्रति नतमस्तक होना पड़ता हैं।
संगीत के सम्राट कहे जाने वाले नौशाद जी ,जिनके नाम पर मुंबई में एक मार्ग भी हैं, उन्होंने भी एक दिन में ये उपाधि अर्जित नहीं की थी। 16 साल के कठिन सफर से उन्हें गुजरना पड़ा था। 16 साल अपने लक्ष्य को पाने के लिए वो सघर्षरत रहें। कहते हैं- उनके द्वारा संगीतबद्ध की हुई उनकी पहली फिल्म " बैजू बाबरा "ने ब्रॉड -वे सिनेमा हॉल में अपनी गोल्ड जुबली मनाई। उसी ब्रॉड-वे सिनेमा हॉल में उस सफलता का जश्न मनाया जा रहा था, उस वक़्त सारे पत्रकार उन्हें ढूँढ रहे थे और नौशाद जी उसी सिनेमा हॉल के बालकनी में खड़े होकर रो रहे थे। तब फिल्म के डायरेक्टर विजय भट्ट जी ने उनसे पूछा - " क्या ये ख़ुशी के आँसू हैं ?" तो नौशाद जी उस बालकनी के सामने से जाती चौड़ी सड़क के उस पार फुटपाथ की ओर इशारा करते हुए बोले -" विजय जी ,उस पार के फुटपाथ से इस पार आते -आते सोलह साल लग गए ,सोलह साल पहले कई सालो तक वही फुटपाथ ही मेरा घर था जहाँ कई राते मैंने सिर्फ पानी पीकर काटी हैं,जहाँ पर जागती आँखों से यहाँ तक आने के सपने देखता था,मगर ना कभी हिम्मत हारी ना आँसू बहाए ,ये वही आँसू हैं जो उस वक़्त बहा नहीं पाया था। "
" शोहरत " जिसे पाने के लिए कई त्याग करने होते हैं और कितनी ही कठिन परीक्षाओं से भी गुजरना पड़ता हैं तब कही जाकर हम इसका रसपान कर पाते हैं।
हमें तो सिर्फ व्यक्ति विशेष की प्रसिद्धि दिखाई देती हैं उसके सफर की कठिनाईयां नहीं। शोहरत और प्रसिद्धि पाने वाले कई महान व्यक्ति की जीवन गाथा जानने के बाद उनके हौसले के प्रति नतमस्तक होना पड़ता हैं।
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एकदम सटीक हम भी यही मानते हैं।
बहुत सुंदर आपका विविधतापूर्ण दृष्टिकोण सराहनीय है।
बहुत सुंदर लेख।
दिल से शुक्रिया श्वेता जी ,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया पाकर बेहद ख़ुशी हुई ,सादर नमस्कार
हटाएंबेहतरीन लेख सखी
जवाब देंहटाएंदिल से धन्यवाद सखी ,सादर नमन
हटाएंसार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर , प्रतिक्रिया देने के लिए दिल से धन्यवाद ,सादर नमस्कार
हटाएंकिसी भी गंतव्य बिंदु के स्पर्श के पीछे उसकी यात्रा का वृतांत होता है। कुंदन की दमक पाने के लिए पहले स्वर्ण को तपना होता है। सुंदर संदेश को पढ़ता लेख।
जवाब देंहटाएं" कुंदन की दमक पाने के लिए पहले स्वर्ण को तपना होता है। " बहुत ही सुंदर बात कही आपने ,प्रतिक्रिया देने के लिए दिल से धन्यवाद,सादर नमस्कार
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 04 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद दी ,सादर नमस्कार
हटाएंबिल्कुल सही ,शोहरत रूपी फल को खाना आसान नहीं होता अगर मिल भी जाए तो इसे पचाना भी कहां आसान
जवाब देंहटाएंशोहरत का नशा आवयश्कता से अधिक नशा पतन का कारण भी बनता है सुन्दर प्रस्तुति कामिनी जी
सहृदय धन्यवाद आपका ,सही कहा आपने ,शोहरत पाना भी मुश्किल और संभालना भी मुश्किल ,आपकी सकारत्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार ,सादर नमस्कार
हटाएंसटीक
जवाब देंहटाएंसहृदय धन्यवाद सर ,सादर नमस्कार
हटाएंसही कहा कामिनी जी ! शौहरत रूपी फल पाना बहुत मुश्किल है यदि पा लिया तो खाना मुश्किल और यदि खा लिया तो पचाना और भी मुश्किल..
जवाब देंहटाएंशौहरत प्राप्त लोगों की जीवन की कठिनाइयां इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं...
बहुत ही शानदार सुन्दर संदेशपरक लेख।
तहे दिल से शुक्रिया सुधा जी ,आपकी उत्साहवर्धक समीक्षा के लिए आभार ,सादर नमन
हटाएंशोहरत को पाना,वाकई एक कठिन साधना है, पर उस कठिन साधना के बावजूद प्राप्त करने वाले ने कितने संघर्ष झेले है, ये कोई जानने की कोशिश ही नही करता पर अगर जान जाए तो यकीनन एक दिन उस शोहरत के मुकाम पर वह भी उस साधना कृत उपासक के साथ ही होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कामिनी जी, आपकी हर एक रचना मेरे लिए संबल का कार्य कर रही है, और मेरे इस साधना पथ पर मुझे अग्रसर कर रही है। मैं दिल से आपका और आपकी रचनाओं का आभारी हूँ।
सधन्यवाद
🙏🏻💐💐🙏🏻
तहे दिल से शुक्रिया आपका ,मेरी रचनाओं को इतना मान देने के लिए आभारी हूँ ,व्यक्ति का पूरा जीवन ही एक पाठशाला हैं शिक्षा चाहे जहां से मिले बस सीखते रहना चाहिए ,सादर नमन
हटाएंसही कामिनी जी बहुत सही कहा आपने ।
जवाब देंहटाएंकितनी बार पत्थर पर घिसती है मेहंदी फिर रंग थी है किसी की हथेलियों में पर मेहंदी का घिसना कितने लोग देखते हैं शोहरत मिलने के बाद का किस्सा सभी को मालूम होता है पर उस शोहरत के लिए कितना परिश्रम, त्याग होता है कोई नहीं देखता।
हां ये अलग बात है कि कुछ को पुश्तैनी सहुलियत शोहरत दिलाती है।
और कुछ शोहरत पाकर अभिमानी हो जाते हैं।
आपका लेख सत्य का सुंदर मुखड़ा दिखा रहा है ।
बहुत बहुत सुंदर।
दिल सी शुक्रिया कुसुम जी ,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मुझे प्रोत्साहन देती रहती हैं ,सादर नमस्कार
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