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रविवार, 5 अप्रैल 2020

" एक दीया मानवता के नाम "

   


" दीया " अर्थात"  दे दिया " ,मतलब - देना ....दीया  का काम ही हैं निस्वार्थ भाव से प्रकाश देना  ...बिना किसी भेद -भाव का। आज रात  नौ बजे हम सब को भी एक साथ एक ही वक़्त में एक  संकल्प का दीया बनना हैं... हम अपने हाथो में दीया लेकर खड़े होंगे... एक संकल्प के साथ जुड़ेंगे ...संकल्प देश को बचाने का ,संकल्प मानवता को बचाने का, संकल्प सृष्टि को बचाने का।
    दीया सिर्फ हाथों में नहीं जलाना हैं बल्कि  दीये की तरह ही निस्वार्थ होकर  दीया दिलों में भी जलाना हैं ...संकल्प का ,दुआओं का ,सकारात्मक ऊर्जा का.....दूरियाँ हाथों में होगी दिलों को दिलों से जोड़ना हैं। हमें एक ही संकल्प से  एक दूसरे को निस्वार्थ भाव से दुआएं ,शक्ति, सहयोग और शुकराना देना हैं ..." हाथ का दीया प्रकाश का प्रतीक हैं और मन का दीया शक्ति का " जैसे शारीरिक संगठन की शक्ति काम करती हैं उससे कही ज्यादा  संगठित मानसिक तरंगो की शक्ति  काम करती हैं। जब हम सभी एक सी स्थिति में... एक ही वातावरण में ..एक ही उद्देश्य को लेकर... एक ही  संकल्प  करेगें  ... सवा सौ करोड़ दिलों में जब एक साथ  दुआओं की ज्योत  जलेगी तो ....इसकी सकारात्मक ऊर्जा सृष्टि के एक कण कण तक पहुँचेगी....हमारी दुआ सभी को मिलेगी और सभी की दुआएँ हमें मिलेगी। वातावरण में चारो तरफ एक सकारात्मक ऊर्जा के तरंगो का निर्माण होगा जो हमारे तन -मन को शक्ति और निर्भयता प्रदान करेगा। यक़ीन  मानिए ,आज इस भयावह स्थिति में हमें मानसिक शक्ति और सहयोग की बड़ी दरकार हैं और यही इस विपदा से बाहर निकलने का रास्ता भी। 

   मानसिक तरंगो की ऊर्जा के  प्रभाव को  विज्ञान भी मानने से इंकार नहीं करता। वो भी मानता  हैं कि- हमारे आवाज़ की ,हमारे  विचारो की तरंगे वातावरण में व्याप्त हो जाती हैं और वो दूसरे के मन मस्तिष्क पर भी गहरा असर करती हैं। इसी आधार पर रेकी पद्धति का अविष्कार हुआ। जिसमे  मीलों दूर बैठे हुए  किसी रोगी  के रोग का निदान हम अपनी मानसिक तरंगो से करते हैं। विज्ञान ये भी मानता हैं कि हम अपने  मन की तरंगों को दूसरे के मन तक पहुँचा सकते हैं जिसे टेलीपेथी नाम दिया गया। 

   हममें से बहुतो को आज आध्यात्म  की बातों से परहेज हैं लेकिन विज्ञान को तो वो जरूर मानेगे न। तो विज्ञान को ही माने और ....आज इस प्रयोजन को एक प्रयोग के रूप में ले। आजमाए, विज्ञान सच कहता हैं या नहीं.... बशर्ते दीया सिर्फ हाथों में नहीं जलना चाहिए  ...बल्कि सच्चे मन से दिलों में भी दुआओं का  ,सहयोग का  ,मानवता का  ,उन अनगिनत मानवता के सेवा करने वाले दिव्य आत्माओं के प्रति शुकराना का  , वो अदृश्य  शक्ति जो हमारे सारे गुरुर चूर चूर कर रहा हैं उसके प्रति सच्ची आस्था का दीपक चलाना होगा। एक प्रयोग ही करके देखते हैं। 
   यदि किसी को इससे भी परहेज हो तो... वो ना जलाये दीये कोई बात नहीं ....मगर कम से कम 9 मिनट के लिए अपने घरों की बिजली की आपूर्ति को बंद तो कर ही सकते हैं न.... इसी बहाने पुरे देश में नौ मिनट की ऊर्जा का हम बचत कर लेगें  ....ये भी कम बड़ी उपलब्धि नहीं होगी। यकीन मानिए,  इससे आपका कोई नुकसान नहीं होगा लेकिन आप देश भक्त जरूर कहलायेगें । 

तो आए आज इस इकीसवीं सदी में ये प्रयोग भी करके देखते हैं और एक दीया दिलों में मानवता के नाम का जलाते हैं .....


34 टिप्‍पणियां:

  1. सकारात्मकता से ओतप्रोत आपका लेख बहुत ही लाजवाब है कामिनी जी! मैं सहमत हूँ आपसे...रेकी पद्वति और टेलीपैथी का भी समर्थन करती हूँ मैने इन्हें आजमाया भी है परन्तु किसी को समझाना बहुत मुश्किल है इन सबके बारे में।
    सही कहा और कुछ नहीं तो देशभक्ति के नाम नौ मिनट की बिजली ही बचाइए... जो मानते हैं वे जरुर जलायेंगे एक दिया मानवता के नाम ।

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    1. सहृदय धन्यवाद सुधा जी ,आपकी इस सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ,दूसरे समझे या ना समझे ,हम खुद भी समझ लिए तो बहुत बड़ी उपलब्धि हैं ,जो हम कर रहे हैं ,सादर नमन आपके विचारों को

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  2. अब तो पैरा साइकोलॉजी को quantam फिजिक्स से भी समर्थन मिला है। साधारण विज्ञान तो पदार्थो की दुनिया तक ही सीमित है। ESP का टेलीपैथी और क्वांटम फिजिक्स का फेज entanglement दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू है। आनेवाले दिनों में और आयाम खुलेंगे। सुंदर लेख।

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    1. सहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी ,बिलकुल सही कहा आपने ,आपकी इस सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ,सादर नमन आपको

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  3. आओ एक दिया जलाएं मानवता के नाम
    जब स्वार्थ से ऊपर उठकर कोई कर्म किया जाता है,तब सकारात्मक ऊर्जा स्वयं ही समस्त वायुमंडल को पवित्र कर प्रेरित करती है ।

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    1. सहृदय धन्यवाद आदरणीय ,आपकी इस सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ,सादर नमन आपको

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  4. ." हाथ का दीया प्रकाश का प्रतीक हैं और मन का दीया शक्ति का " जैसे शारीरिक संगठन की शक्ति काम करती हैं उससे कही ज्यादा संगठित मानसिक तरंगो की शक्ति काम करती हैं। जब हम सभी एक सी स्थिति में... एक ही वातावरण में ..एक ही उद्देश्य को लेकर... एक ही संकल्प करेगें ... सवा सौ करोड़ दिलों में जब एक साथ दुआओं की ज्योत जलेगी तो ....इसकी सकारात्मक ऊर्जा सृष्टि के एक कण कण तक पहुँचेगी....हमारी दुआ सभी को मिलेगी और सभी की दुआएँ हमें मिलेगी। वातावरण में चारो तरफ एक सकारात्मक ऊर्जा के तरंगो का निर्माण होगा जो हमारे तन -मन को शक्ति और निर्भयता प्रदान करेगा।"
    आपके चिन्तन से सहमत हूँ कामिनी जी 🙏
    एक दिया मन की शांति के नाम , सम्पूर्ण मानवता की रक्षा के नाम । बहुत सुन्दर लेख ।

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    1. सहृदय धन्यवाद मीना जी ,आपकी इस सकारात्मक प्रतिक्रिया को देख आपार हर्ष हुआ ,हर तरफ ,हर बात में नकारत्मकता देखते देखते, हमने अपनी सृष्टि को नकारात्मक ऊर्जा से भर दिया हैं ,और आज स्थिति भयावह हो चुकी हैं ,दिल से शुक्रिया आपका इस सुंदर समीक्षा के लिए ,सादर नमन

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  5. बहुत सुन्दर।
    हम सभी देशवासी मिल कर प्रधानमन्त्री की आवाज पर
    अपने घर के द्वार पर 9 मिनट तक एक दीप प्रज्वलित जरूर करें।

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    1. हृदयतल से आभार सर ,आपकी प्रतिक्रिया हमेशा मेरा मार्गदर्शन करती हैं ,सादर नमस्कार

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (06 -04-2020) को 'इन दिनों सपने नहीं आते' (चर्चा अंक-3663) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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    1. हृदयतल से आभार सर ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार आपका ,सादर नमस्कार

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  7. दीया अच्छाई का प्रतीक है।

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    1. प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार आपका,सादर नमस्कार

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  9. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया दीदी कामिनी दीदी.
    सादर

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    1. सहृदय धन्यवाद उर्मिला जी ,सादर नमस्कार

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    2. वाह प्रिय कामिनी , दीपक पर सार्थक चिंतन से भरा लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा | दीया लगाना हमारे प्रातः और संध्या वन्दन का अभिन्न अंग है | हर आम जीवन में , हर दिन प्राय दो बार दिया लगाते ही हैं, तो सद्भावना के इस संकल्प दीये पर हमें इतने प्रश्न नहीं उठाने चाहिए | ये मात्र जड़ता में चैतन्य भरने का प्रयास मात्र है | इसे किसी तरह का पाखंड ना मानकर मानवता के नाम एक दीपक के तौर पर लेना चाहिए | दीया मन्दिर में भी जलता है तो पीर पैगम्बरों की दरगाहों पर भी | गुरूद्वारे में भी एक दीपक का प्रावधान तो है ही , गिरजाघरों में भी प्रार्थना के लिए मोमबत्ती जलाने की परम्परा है | सभी के पीछे लक्ष्य मानव मात्र के लिए शुभता की भावना है | सुंदर लेखन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं सखी |हमारे पास यही माध्यम है जिसके जरिये हम अपनी सदभावनाएँ सब तक पहुंचा सकते हैं | सस्नेह

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    3. दिल से धन्यवाद सखी ,तुम्हरी सार्थक प्रतिक्रिया से सदैव लेखन को सार्थकता मिलती हैं ,हृदयतल से आभार

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  11. वाह!सखी कामिनी जी ,सकारात्मकता से भरा ,बहुत ही खूबसूरत लेख । दिया तो प्रतीक है ,रोशनी का ...। सब साथ मिलकर ही तो दुनियाँ को रोशन करना है ।

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    1. दिल से धन्यवाद शुभा जी,इस सुंदर और सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ,सादर नमन आपका

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  12. सार्थक और तर्क संगत विवेचना
    बहुत सुंदर

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    1. हृदयतल से धन्यवाद आदरणीय सर ,सादर नमस्कार

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  13. कामिनी दी, आपका यह कथन बिल्कुल सत्य है कि सिर्फ हाथों में नहीं जलना चाहिए ...बल्कि सच्चे मन से दिलों में भी दुआओं का ,सहयोग का ,मानवता का ,उन अनगिनत मानवता के सेवा करने वाले दिव्य आत्माओं के प्रति शुकराना का , वो अदृश्य शक्ति जो हमारे सारे गुरुर चूर चूर कर रहा हैं उसके प्रति सच्ची आस्था का दीपक चलाना होगा।

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    1. दिल से धन्यवाद ज्योति जी,आपकी सकारत्मक प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार ,सादर नमन

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  14. सहमत आपकी बात से .. ये एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे किसी को परहेज तो हो ही नहीं सकता ... आशा का प्रतीक तो हर किसी के लिए आशा ही लाएगा ... आध्यात्म को आप ण मानें ... पर दूसरा करे तो भी विरोध करना उचित नहीं ... आज की जरूरत सबको ऊर्जा देने की है ...

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    1. दिल से धन्यवाद दिगंबर जी ,आप की सकारात्मक समीझा के लिए आभार ,सादर नमस्कार

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  15. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन सखी 👌

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    1. दिल से शुक्रिया सखी ,सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका ,बहुत दिनों बाद आपको ब्लॉग पर देख हार्दिक प्रसन्नता हुई ,सादर नमन

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