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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

नागफनी सी मैं ......



                   " नागफनी सी कँटीली हो गई है ये तो , इसके बोल नागफनी के काँटे से ही चुभते हैं।" 
 हर कोई मुझे यही कहता है। क्या सभी को  मुझमे नागफनी के पौधे की भाँति ही सिर्फ और सिर्फ मेरी कठोरता और कँटीलापन ही नजर आता है ? क्या मेरे भीतर की कोमल भावनाएं किसी को बिलकुल ही नजर नहीं आती है ? " बस ,कह दिया नागफनी सी हो गई है " नागफनी के अस्तित्व को धारण करना आसान होता है क्या ? 

    " नागफनी " रेगिस्तान की तपती, रेतीली धरती पर उपजा एक कँटीला एवं सख्त पौधा जिसे शायद ही  कोई पसंद करता हो...प्यार करता हो....परवाह  करता हो, फिर भी वो अपना अस्तित्व कायम  रखने में सक्षम होता है। अंदर से कोमल और गुणकारी होने के वावजूद दुनिया के नजर में सिर्फ उसके काँटे ही दिखते हैं। वो काँटे जो चुभ भी जाए तो नुकसान नहीं पहुंचते ,वो काँटे  भी एंटीसेप्टिक होते हैं तभी तो पहले के ज़माने में उसी से कान छेदने का काम होता था।मगर फिर भी है तो काँटे ही न। नागफनी का समर्पण देखे एक बार, सिर्फ एक बार आप अपने घर में उसे जगह दे दे तो वो  हमेशा के लिए वही बस जाएगा  चाहे आप उसे प्यार की एक बून्द दे या ना दे , फिर भी  वो मुरझाकर अपनी नाराजगी तक  नहीं जताएगा , रेतीली मिट्टी में भी वो अपने आप को आपके लिए जिन्दा रखता है। तभी तो आप उसे अपने बाड़ें के किनारे- किनारे कोमल पौधो और फूलों के रखवाली के लिए लगाते हैं। इस काँटों से  भरे बदसूरत से पौधे के हजारों औषधीय गुण होते हैं लेकिन ये सब किसी को नजर नहीं आते ,नजर आते हैं तो सिर्फ और सिर्फ उसके काँटे । नागफनी में भी फूल खिलते हैं, वो जाताना चाहता  है कि मेरी बाहरी  कठोरता को देखने वालों देखों मुझमे कोमल और सुंदर फूल भी खिलाने की क्षमता है। लेकिन उन कोमल फूलों की किसी को परवाह नहीं जो  मरुस्थल में भी खिलकर अपनी खुश्बू ही बिखेरता रहता है। वो कभी किसी को नुक्सान पहुँचना नहीं चाहता है।
 फिर भी उसको नाम दे दिया गया "नाग का फन"।

" हाँ " हूँ मैं नागफनी " मानती हूं
, तुम सबने मेरा आंकलन बिलकुल सही किया है। मेरा अस्तित्व भी तो ऐसा ही है...अपने अंदर के कोमल भावनाओं को छुपाए....अपनी ख्वाहिशों.... अपनी
 तमन्नाओं का गला घोटे हर पल तुम लोगो की परवाह करती हूँ। तुमसे एक बून्द भी प्यार की आस नहीं है मुझे ,खुद को जिन्दा रखने के लिए मेरे अंदर का प्यार जो सिर्फ तुम्हारी परवाह करता है वो काफी है मेरे लिए। हाँ ,है मेरा व्यक्तित्व कठोर ,मेरी यही  कठोरता मेरे परिवार के लिए रक्षा कवच का काम करता है ,मेरे घर के कोमल फूलों को मेरे होते हुए कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता।मेरे बोल तुम्हें चुभते जरूर है लेकिन वो तुम्हें जख्मी करना बिलकुल नहीं चाहते। 

हाँ ,हर घर परिवार में होता ही है एक नागफनी सा व्यक्तित्व ,उसे बनना पड़ता है, जिसका बाहरी व्यक्तित्व कठोरता लिए होता है लेकिन वही होता है उस परिवार का पहरेदार,उसके पास हर एक के दुःख दर्द का इलाज होता है ,उसे प्यार मिले ना मिले पर वो मुरझाता नहीं ,नागफनी की तरह उसे भी मुरझाने का खौफ ही नहीं होता। वो सिर्फ प्यार देना जानता है भले ही उसका प्यार किसी को दिखाई दे ना दे ,इससे भी उसे फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि उसे दिखावा नहीं आता। अगर वो अपने कठोर बोल समान काँटे भी चुभता है तो वो भी सबकी भलाई के लिए ही होता है ना कि  किसी को जख्मी करने के लिए ,क्योंकि नागफनी के काँटे चुभने पर कभी जख्म नहीं होता है। एक ऐसा व्यक्तित्व जो नागफनी के फूलों की तरह मरुस्थल में भी खिलकर अपनी खुश्बू ही बिखेरना चाहता है ,वो अपनी मधुरता और सरसता का वाष्पीकरण  नहीं करना चाहता इसलिए कँटीला हो जाता है।  ये उसकी सकारात्मकता है ,जिनको चुभता है उनके लिए नकारात्मकता ही सही....... 


















18 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की शनिवार(२९-०२-२०२०) को शब्द-सृजन-१० ' नागफनी' (चर्चाअंक -३६२६) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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    1. सहृदय धन्यवाद अनीता जी ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए दिल से आभार ,सादर स्नेह

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  2. सार्थक लेख, कामिनी जी.
    दूसरों के दर्द को यह दुनिया क्या समझेगी।

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  3. प्रिय सखी कामिनी , नागफ़नी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती पर ये जरुर जानती हूँ कि कोई ऐसा समय भी था जब सासु माँ ने बड़े चाव से दो तीन गमलों में कैक्टस नाम से कुछ कंटीले पौधे लगाये थे , जिनपर एक दिन मेरे बेटे [जब वह मुश्किल से दो- ढाईसाल का रहा होगा ] ने खेलते- खेलते एक गमले पर हाथ दे मारा जिससे उसके कोमल हाथों में इस पौधे के कुछ कांटे चुभ गए | उसके बाद बेटे ने रोना शुरू किया और दो तीन दिन उसकी व्याकुलता खत्म नहीं हुई | मेरे ससुर जी ने जब बेटे का ये हाल देखा तो हमारी लापरवाही और सासु माँ के इस कंटीले पौधे के प्रति प्रेम पर बहुत नाराजगी जताई और सारे कंटीले पौधे नष्ट कर दिए | उस दिन के बाद हमने घर में इस तरह का पौधा नहीं लगाया | सखी पौधा कोई भी हो सृष्टि में अकारण ही पैदा नहीं हुआ |रेगिस्तान में कम पानी में भी पनपने और इसकी कंटीली बनावट के पीछे प्रकृति का कोई उद्देश्य तो रहा होगा | बताते हैं इसमें औषधीय गुण भी बहुत होते हैं | जो शायद सब नहीं जानते | और तुमने बहुत बढिया लिखा | बाहर नागफनी सी छवि और भीतर सद्भावनाओं के विशाल उद्दात भाव को समेटे एक मन को कोई कैसे समझ पायेगा ? क्योंकि दुनिया को बहार का ही व्यक्तित्व नजर आता है | भीतर के कोमल भाव स्न्देखे रह जाते हैं |अपनों की उपेक्षा किसी का व्यक्तित्व नागफनी सा बना दे ये कोई बड़ी बात नहीं | मन के आक्रांत भावों से भरा ये लेख तुम्हारी चिंतन को नये आयाम देता है | सस्नेह --

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    1. सहृदय धन्यवाद सखी , ये बात तुमने बिलकुल सही कहा कि पौधा कोई भी हो सृष्टि में अकारण ही पैदा नहीं हुआ। प्रकृति की कोई भी सृजन अकारण हो ही नहीं सकता ,नागफनी के बाहरी रूप को अगर नजरअंदाज कर दे तो प्रकृति ने इसे अनगिनत गुणों से परिपूर्ण किया हैं ,पुराने ज़माने में इसी से कान छेदने का काम होता था क्योंकि इससे पस नहीं पड़ता था इसीलिए इसे वज्रकंटका भी कहा गया हैं। मेरे लेख को और विस्तार देती तुम्हारी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद सखी

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  4. बहुत शानदार लेख कामिनी जी सच किसी के बाहरी व्यक्तित्व से उसके अंदर के नर्म हिस्से का कोई आंकलन नहीं कर सकता।
    बहुत बहुत सार्थक सुंदर।

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    1. सहृदय धन्यवाद कुसुम जी ,इस सुंदर समीक्षा के लिए हृदयतल से आभार ,सादर नमन

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  5. अक्सर उस व्यक्ति को नागफनी बनना पड़ता है जिसे बहारों का, सावन की मनभावन फुहारों का आनंद जीवन में मिला ही नहीं। नागफनी मरती नहीं, मैदान छोड़कर भागती नहीं, रेगिस्तान के तप्त और शुष्क वातावरण में भी स्वयं को जिंदा रखती है। यही वजह है कि गुलाबों के आशिक नागफनी को बर्दाश्त नहीं कर पाते।
    आपकी रचनाओं की भाषा व भाव दिन ब दिन निखरते जा रहे हैं।
    "नागफनी के अस्तित्व को धारण करना आसान होता हैं क्या?" यह एक पंक्ति कितना कुछ कह गई !!!

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  6. हृदयतल से धन्यवाद मीना जी ,सही कहा आपने -गुलाबों के आशिक नागफनी को बर्दाश्त नहीं कर पाते,और गुलाब के पुजारी बहुतेरे हैं ,आपके इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,मेरा लेख आपके दिल तक पहुँचा ये मेरा सौभाग्य हैं ,सादर नमन

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  7. अपने अंदर के कोमल भावनाओं को छुपाए ,अपनी ख्वाहिशो ,अपनी तमन्नाओं का गला घोटे हर पल तुम लोगो की परवाह करती हूँ। तुमसे एक बून्द भी प्यार की आस नहीं हैं मुझे ,खुद को जिन्दा रखने के लिए मेरे अंदर का प्यार जो सिर्फ तुम्हारी परवाह करता हैं इस दुनिया में सबको अपने दर्द का ही पता होता है दूसरों के अनादर जो दर्द भरा है उसे यह दुनिया क्या समझेगी शानदार लेख कामिनी जी

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    1. सहृदय धन्यवाद संजय जी ,आपने बिलकुल सही कहा ,इस सुंदर समीक्षा के लिए दिल से आभार , सादर स्नेह

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  8. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 12 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    1. मेरी रचना को मान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद दी सादर नमस्कार 🙏

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  9. जीवन के अनेक सार्थक तध्यों को समेटे हुए सराहनीय लेख कामिनी जी।
    सस्नेह।

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