मेरे बारे में

मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

किस्मत कनेक्शन  (संस्मरण )

  


     कभी कभी जीवन में कुछ ऐसी घटनाएँ घटित हो जाती हैं कि -प्रेम,आस्था और विश्वास जैसी भावनाओं पर नतमस्तक होना ही पड़ता हैं। मेरे साथ भी कुछ ऐसी ही घटना घटित हुई थी और मेरे आत्मा से ये तीनो  भावनाएँ ऐसे जुडी कि -ना कभी उन्होंने मेरा साथ छोड़ा और ना मैंने उनका। 

    बात उन दिनों की है जब हम शादी के बाद हनीमून के लिए  काठमांडू ( नेपाल ) गए थे। दरअसल हनीमून तो बस एक बहाना था हमें तो अपनी नन्द की बेटी के जन्मदिन पर जाना था। मेरे पति की मुझबोली बहन वहाँ रहती थी और उन्होंने ही हमें अपनी बेटी के जन्मदिन पर बुलाया था। मेरी ननद की कहानी बड़ी ही मार्मिक थी, उनके तीन बच्चे हुए मगर कोई भी छह माह से ज्यादा जीवित नहीं रह पाया था। ये उनकी चौथी संतान थी जो एक साल पूरा कर रही थी। इसलिए मेरी ननद के लिए अपनी बेटी का पहला जन्मदिन मनाना सचमुच बड़े ही सौभाग्य का दिन था। इसलिए हमारा उनकी ख़ुशी में शरीक होना लाजमी था।

    मेरी ननद और नन्दोई का मेरे पति के साथ बड़ा ही प्यारा रिश्ता था और उन्होंने मुझे भी बड़ा मान दिया ,हमारी आवभगत में कोई कमी नहीं की। तीन बच्चों  के मरणोपरांत चौथी संतान का  एक साल पूरा होते देखना मेरी ननद और हम सब को बहुत ही ज्यादा ख़ुशी की अनुभूति करा रहा था। मेरी ननद के आँखों से ख़ुशी के  आँसू  रुक ही नहीं रहे थे। उन्होंने बेटी के जन्मदिन की सारी जिम्मेदारी मुझे दे दी, यानि बेटी को सजाना -सवारना ,पूजा में बैठना ,केक कटवाना सब कुछ उन्होंने मेरे ही हाथो करवाया। उनके शब्दों में -" भाभी आपके कदम मेरी बेटी के लिए शुभ हो और उसे स्वस्थ लम्बी उम्र का वरदान मिले। " मैं उनके इस स्नेह और विश्वास पर पूरी तरह नतमस्तक थी। दो चार दिनों में सोनाली  (बच्ची) भी मुझसे ऐसे घुल मिल गई कि मुझे भी मम्मा ही बुलाने लगी। 

      जन्मदिन के अगले दिन हमारा " स्वयंभू "दर्शन करने जाने का प्रोग्राम था। नन्द ने कहा  -भाभी आप सब हो आओ ,मैं तो कई बार गई हूँ और मैं थक भी बहुत गई हूँ। हमने कहा ठीक हैं। नन्दोई , उनकी छोटी बहन और हम दोनों पति -पत्नी जैसे ही चलने को हुए सोनाली रोने लगी और मुझे पकड़ लिया ,वो मेरे साथ ही जाने की जिद करने लगी।ननद बोली- " इसे भी साथ ले जाइयें ,अच्छा हैं मैं थोड़ा आराम भी कर लूँगी  " मैं खुश हो गई क्योकि सोनाली से मुझे भी  काफी लगाव हो गया था । 

" स्वयंभू "भगवान बुद्ध का मंदिर हैं और काठमांडू में सबसे ऊंचाई पर बसा हैं। घर से एक- डेढ़ घंटे का रास्ता था। वहाँ  हर वक़्त बे मौसम की बरसात होती ही रहती थी ,उस दिन भी  रात में  काफी बारिश हुई थी और लगातार हल्की फुल्की बारिश हो ही रही थी। काठमांडू के पहाड़ी रास्ते बड़े ही संकरे होते हैं। अभी हमें निकले आधा घंटे ही हुए थे कि एक जगह हमारी गाड़ी बड़ी तेजी से फिसली ,लेकिन ड्राइवर ने संभाल लिया। सोनाली उस वक़्त मेरी गोद में थी ,झटके लगने पर मैं खुद को संभाल नहीं पाई और सोनाली को हल्की चोट लग गई। मैंने उसे नन्दोई को दे दिया जो अगली सीट पर बैठे थे। पता नहीं क्यों ,उस झटके ने मेरी धड़कने बढ़ा दी ,मुझे किसी अनहोनी की आशंका सी होने लगी और मैं मन ही मन गुरुदेव को याद कर  गायत्री मंत्र का जाप करने लगी।
       लेकिन जैसे ही हम थोडा और आगे गए ,पीछे से एक गाड़ी  तेज रफ्तार में आई और हमें ओवरटेक करती हुई निकली ,हमारा ड्राइवर गाड़ी संभाल नहीं पाया और गाड़ी का पिछला पहिया सीलिप कर गया, हमारी गाड़ी पलटने लगी। चुकि ढलान ज्यादा खड़ी नहीं थी सो गाड़ी आहिस्ता आहिस्ता पलटी खाने लगी। जैसे ही गाड़ी ने पहली पलटी खाई ,उस वक़्त पतिदेव का हाथ मेरे हाथ में ही था मैंने उनका हाथ जोर से पकड़ लिया और मेरे मुख से एक ही आवाज़ आई -" हे गुरुदेव मेरी सोनाली की रक्षा करना "और गायत्री मंत्र स्वतः ही मेरे मुख से तेज़ स्वर में निकलने लगा। पता नहीं क्युँ उस वक़्त मुझे सोनाली के अलावा और किसी का ख्याल ही नहीं आया। अचानक लगा जैसे हमारी गाड़ी रूक गई। देखा तो ,ढेरों पहाड़ी लोग हमारी गाड़ी को एक तरफ से पकड़ रखे हैं ,उनमे से कुछ लोगों ने  हमारी गाड़ी के खिड़की का सीसा तोडा और हाथ बढ़ाकर एक एक करके धीरे धीरे हमें  निकालने लगे। हम बड़ी सावधानी से सरकते हुए बाहर निकल रहे थे। गाड़ी बुरी तरह हिल रही थी ,ऐसा लग रहा था कि अब पलटी की तब पलटी ,दिल धड़क रहा था कि कौन बचेगा कौन नहीं?
    
   दरअसल गाडी लुढ़कती हुई करीब 40-45 फीट नीचे जहाँ गिरी थी वहाँ गोभी के खेत थे और बारिस की वजह से खेत की मिट्टी काफी गीली थी जिसकी वजह से गाड़ी के एक साइड के दोनों पहिए मिट्टी में धंस गए थे। यदि उसके बाद गाड़ी एक बार भी पलटती तो सीधे हजारों फीट गहरी खाई में गिरती।ऐसी स्थिति में पहाड़ियों ने गाडी को पकड़ रखा था लेकिन अगर जरा सा भी उनका  संतुलन बिगड़ता तो गाड़ी और हमारे साथ साथ कई पहाड़ी भी नीचे  जा सकते थे जहाँ से अंतिम संस्कार के लिए हमारी हड्डियों का मिल पाना भी मुश्किल था। पहाड़ियों के साहस  और सहयोग से हम एक एक करके बाहर निकले। बाहर निकलते ही मेरी नजर सबसे पहले सोनाली को ढूँढने  लगी। मैं जोर से बोली -सोनाली कहाँ हैं ? एक प्यारी सी आवाज़ आई -" मम्मा ..."मैंने देखा दोनों बाहें फैलाये सोनाली मेरी तरफ देखती हुई मुझे आवाज़ दे रही थी। मैं दौड़कर नन्दोई के गोद से सोनाली को अपनी बाहों में भरकर गले से लगा ली ,मेरी आँखों से अश्रुधारा फुट पड़े। सोनाली भी मम्मा -मम्मा कहती हुई  मेरे चेहरे को चूमें जा रही थी।

   सोनाली को सुरक्षित देख मेरी जान में जान आई। सभी सुरक्षित बाहर निकल आये थे। आश्चर्य की बात किसी को एक खरोंच भी नहीं आई थी बस ड्राइवर को थोड़े से जख्म आये थे। अब 40 फीट ऊपर सड़क तक पहुंचना भी हमारे लिए बहुत कठिन था वो तो भला हो उन पहाड़ी देवताओं का उन्होंने हमारा हाथ पकड़ संभाल संभाल कर ऊपर सड़क तक ले आये ।ऊपर आने के बाद हम सबने उन पहाड़ी फ़रिस्तों को दिल से शुक्रिया कहा। उन्होंने बड़े भोलेपन से कहा "-परमात्मा को धन्यवाद कहो यहाँ से गिर कर कोई नहीं बचता हैं। " सचमुच जब ऊपर से अपनी गाड़ी को हमने देखा तो हमारे लिए भी यकीन करना मुश्किल था कि -" हम ज़िंदा हैं "

   मेरे पति ने मुझसे पूछा -"अब क्या करे घर चलें " मैंने कहा -"नहीं ,हम मंदिर जाएंगें "उन्होंने कहा -आगे का रास्ता भी ऐसा ही हैं। मैंने कहा -अब कुछ नहीं होगा ,अनहोनी टल गई। हमनें अपने कपड़ों पर लगे कीचड़ को साफ किया ,दूसरी गाड़ी बुक की और चल पड़े " स्वयंभू " दर्शन को। जब वापसी लौट रहे थे तो ड्राइवर उसी रास्ते की ओर मुड़ने लगा तो मेरे नन्दोई ने उससे नेपाली भाषा में कहा कि -" इस रास्ते नहीं चलों ,दो घंटे पहले इसी सड़क पर हमारा एक्सीडेंट हुआ हैं। " ड्राइवर हमें गौर से देखता हुआ बोला -" मजाक कर रहें हो सर ,इस रास्ते पर किसी का एक्सीडेंट हो और वो जिन्दा बच जाएं ,हो ही नहीं सकता और आप लोगो में से किसी को तो खरोंच तक नहीं आई हैं। " नन्दोई ने समझाया -यकीन करों भाई ,ऐसा ही हुआ हैं। अब तो ड्राइवर जिद पर अड़ गया बोला -मुझे तो देखना हैं ,कहाँ एक्सीडेंट हुआ था और मोड़ लिया गाड़ी उसी रास्ते पर। जब हम उस जगह पर पहुंचे तो वहाँ अब भी भीड़ इकठी थी ,ड्राइवर गाडी रोक कर उतरा और देखने लगा ,हम सभी भी उतरे। पहाड़ियों ने देखते ही हमें पहचान लिया और हमें घेर लिया ,सब सोनाली के माथें को सहलाते हुए  दुआएं देने लगे ,आपस में बातें करने लगे -" इनकी रक्षा तो परमात्मा ने की हैं।"  हमारा ड्राइवर भी देखकर दंग था बोला - " बड़ी लकी हो आप सब। " वहाँ गाड़ी का मालिक आ गया था ,गाडी को क्रेन के द्वारा निकला जा रहा था। घायल ड्राइवर को हॉस्पिटल भेज दिया गया था।

   जब हम घर पहुंचे तो मेरी नन्द सारी घटनाक्रम को सुनकर मुझे पकड़कर रोने लगी और बोली -" भाभी आप की वजह से सोनाली पर से एक खतरा टल गया और उसकी जान बच गई "  मैंने कहा - " आप गलत बोल रही हैं ,हमारी किस्मत अच्छी थी कि सोनाली हमारे साथ थी ,उसकी वजह से  हम सब की जान बची "  हम सभी ने ईश्वर का धन्यवाद किया। उस दिन यकीन हो चला था कि -" आस्था में बहुत शक्ति होती हैं " मेरी एक गुहार -" गुरुदेव ,मेरी सोनाली की रक्षा करना " इतना सुन गुरुदेव ने हम सभी को बचा लिया था। 

   शायद हमारे देश में आस्था को इसीलिए इतना महत्व दिया जाता हैं। एक आस्था पथ्थर को भी भगवान बना देती हैं, आस्था से ही विश्वास की उत्पति होती हैं और विश्वास  निस्वार्थ प्रेम को जन्म देता हैं। या यूँ भी कह सकते हैं कि -" प्रेम से आस्था उपजती हैं और आस्था से विश्वास " बात एक ही हैं। मुझे नहीं पता उस दिन उस बच्ची सोनाली के कारण हम बचें या हमारी वजह से सोनाली। सत्य तो यही था कि -" हम दोनों के निश्छल प्रेम ने हमारी रक्षा की थी। " (संस्मरण )






19 टिप्‍पणियां:

  1. बाप रे इतना भयानक एक्सीडेंट
    रोंगटे खड़े हो गये संस्मरण पढ़कर...।
    एक साँस में पढ़ गयी उत्सुकतावश।
    कहते हैं जाको राखे साईंया मार सके न कोय।
    यह उक्ति अक्षरशः सत्य है।

    किसी भी शक्ति पर अटूट विश्वास एक वलय की तरह हमारे इर्दगिर्द सुरक्षा कवच बनाती है मैंने भी उस शक्ति का प्रत्यक्ष अनुभव किया है इसलिए मानती हूँ।
    ऐसी मानसिक दशा एक चमत्कारिक जीवनदायी अनुभव हमारे मन के विश्वास को और भी गहरा करती है।
    कामिनी जी आपने संस्मरण जीवंत कर दिया।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद श्वेता जी ,आप सही कह रही हैं ये आस्था और प्रेम ऐसी भावना हैं जो सच्चे दिल से खुद में धारण करने पर ही अंतर्मन में विश्वास जगाती। इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार , सादर स्नेह

      हटाएं
  2. ओह ! ऐसा कहूँ कि आपकी कहानी / संस्मरण ने मेरी तो साँसें रोक दी कुछ क्षण को, तो ये अतिशयोक्ति नहीं होगी !
    आस्था से ही विश्वास की उत्पति होती हैं और विश्वास निस्वार्थ प्रेम को जन्म देता हैं। या यूँ भी कह सकते हैं कि -" प्रेम से आस्था उपजती हैं और आस्था से विश्वास " बात एक ही हैं।
    ये पंक्तियाँ ईश्वर में प्रेम को और दृढ़ कर रही हैं। आपकी संस्मरण लिखने की शैली भी बहुत रोचक है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद मीना जी ,आपके इस स्नेह के लिए दिल से आभार हूँ , ईश्वर के प्रति सच्ची आस्था या किसी से निस्वार्थ प्रेम जीवन में ऐसे चमत्कार दिखा ही देते हैं ,सादर स्नेह

      हटाएं
  3. रोमांचक और विस्मयकारी संस्मरण।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी , आपके बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  4. विस्मयकारी घटना पर आधारित बहुत सुन्दर संस्मरण कामिनी जी ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद मीना जी ,ऐसी घटनाएं दिल में अपनी जगह बना लेती हैं और जब कभी ऐसा कोई दृश्य आँखों के आगे से गुजरता हैं तो ये जीवंत हो जाती हैं। आपके बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  5. क‍िसी बहस से परे है ईश्वर तो इसके चमत्कार को नतमस्तक हो स्वीकारना ही पड़ता है .... नासमझ हैं वो जो इसके अस्त‍ित्व पर बहसों में उलझे रहते हैं। दरअसल वो उस उंगली को पकउ़ कर बैठे रहते हैं जो ईश्वर का पथ द‍िखाती है...ऐसे में पथ नहीं स‍िर्फ उंगली ही ह‍िस्से में आती है ।बहुत खूब ल‍िखा काम‍िनी जी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद आदरणीया , आपने सही कहा ,ईश्वर के चमत्कार के आगे नतमस्तक होना ही पड़ता हैं। व्यर्थ के बहस का मुदा उनके लिए होता हैं जो हमेशा शिक्षा से ना जुड़कर शिक्षक से जुड़ जाते हैं। आपके बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  6. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 21 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद आदरणीय सर ,मेरे लेख को स्थान देने के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार

      हटाएं
  7. सहृदय धन्यवाद आदरणीय सर ,मेरे लेख को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए दिल से आभार ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  8. ओह!! इतना बड़ा हादसा!!!
    सच में ऐसे में तो जरूर कोई अदृश्य शक्ति ही आप लोगों की रक्षा कर गयी गायत्रीमंत्र की शक्ति पर मुझे भी अटूट आस्था है इसके चमत्कार को मैने भी महसूस किया है......।
    बहुत ही लाजवाब संस्मरण लिखा है आपने ....
    ईश्वर में आस्था और विश्वास को बढाता बेहतरीन संस्मरण।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद सुधा जी ,हाँ ,सही कहा आपने कोई चमत्कार ही था ,वो दिन हैं और आज का दिन गायत्रीमंत्र और महामृत्युंजय मंत्र हमारे पुरे परिवार के रग रग में बसा हैं। मुझे तो ईश्वर के आस्तित्व पर पूर्ण विश्वास हैं। सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार आपका ,सादर नमन

      हटाएं
  9. प्रिय कामिनी , बहुत ही शानदार संस्मरण लिखा है तुमने | मानवीय संवेदनाओं के तार हमारे मन से जुड़े होते हैं | इसी के जरिये हम एक दूसरे से जुड़े होते हैं | सलोनी की वजह से सब लोग बचे या सबकी वजह से सलोनी का जीवन बचा . सब से ज्यादा महत्वपूर्ण ये रहा कि सबकी जान बच गयी |और मन्त्रों की शक्ति पर अनगिन लोगों के बड़े विस्मयकारी अनुभव मिलते हैं |प्रकृति हमारे पक्ष में आकर हमें आने वाली विपदा से बचाकर ढक लेती है यही मन्त्रों का चमत्कार है | आस्थाओं पर प्रश्न उठाने वाले लोग भी शायद इस लेख को पढ़कर जान लें कि आस्थाएं तर्क नहीं मानती | सुंदर भावपूर्ण लेख के लिए शुभकामनाएं |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद सखी ,सही कहा ,आस्था हर तर्क से परे हैं लेकिन पूर्ण विश्वास के साथ ,ऐसे अनेको चमत्कार देखने को मिलते रहते हैं ,परन्तु उन्हें नहीं जो
      " मुझ में राम और बगल में छुरी रखते हैं " किसी भी चीज़ को गलत साबित करने के लिए पहले खुद को सही बनाना होता हैं ,सिर्फ गलत गलत चिल्लाने से गलत सही नहीं होता। सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभार ,सादर स्नेह

      हटाएं
  10. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  11. bahut achi rachna hai Rahasyo ki Duniya par bhi hum India ke rahasyamyi places ke baare me btate hai. Rupay Kamaye par log baithe paise kaise kamaye se sambandhit jankari aapko padhne ko milegi.

    जवाब देंहटाएं

kaminisinha1971@gmail.com