सोमवार, 20 मई 2019

दम तोड़ती भावनायें

   


     "क्या ,आज भी तुम बाहर जा रहे हो ??तंग आ गई हूँ मैं तुम्हारे इस रोज रोज के टूर और मिटिंग से ,कभी हमारे लिए भी वक़्त निकल लिया करो। " जैसे ही उस आलिशान बँगले के दरवाज़े पर हम पहुंचे और नौकर ने दरवाज़ा खोला ,अंदर से एक तेज़ आवाज़ कानो में पड़ी ,हमारे कदम वही ठिठक गये। लेकिन तभी बड़ी शालीनता के साथ नौकर ने हमे अंदर आने का आग्रह किया। अंदर एक बड़ा सा गेस्ट रूम था जो सारे आधुनिक प्रसाधनो से सुसज्जित था। नौकर हमे बैठने का इशारा कर ये कह कर चला गया कि -मैडम को आप के आने की सुचना देता हूँ। अंदर जाते ही वो आवाज़ जो अब तक चीखने  सा हो चूका था और तेज़ आने लगी।स्पष्ट हो चूका था कि पति पत्नी एक दूसरे पर चीख चिल्ला  रहे हैं।  मैंने अपनी दोस्त स्वाति की तरफ प्रश्नसूचक निगाह से देखा ,उसने धीरे से कहा -कोई बात नहीं न बैठो ,बड़े  घरो में तो ये सब होता ही रहता है। मैंने कहा - क्या ,ये चीखना -चिलाना ? वो बोली - हां ,इग्नोर करो। 

शनिवार, 11 मई 2019

" माँ "

      


   " मदर्स डे " आने वाला है अभी से सोशल मिडिया पर " माँ " शब्द पूरी तरह छा चूका है। सोशल मिडिया का वातावरण माँ मयी हो गया है, एक धूम सी है " माँ " पर ,कितनी सारी प्यारी-प्यारी ,स्नेहिल कविताऐं   रची जाएगी , कहानियाँ लिखी जायेगी और स्लोगन और quotes तो पूछिये मत एक से बढ़कर एक लिखे जायेगे। कुछ देर के लिए मन भ्रमित सा हो जायेगा -"हम तो यूँ ही बोलते रहते हैं कि -आज कल भावनाएं  मर चुकी है ,बच्चें माँ बाप की कदर नहीं करते ,वगैरह-वगैरह।" अरे नहीं ,देखें  तो हर एक की भावनाएं कैसी उमड़ी रही है ,सब के दिलों  में माँ के लिए प्यार ही प्यार दिखाई दे रहा है ,सब माँ के प्यार -दुलार ,त्याग और संस्कार की कितनी अच्छी-अच्छी बातें कर रहे हैं। कैसे कह सकते हैं.हम ...ऐसा कि- बच्चें  माँ बाप से सरोकार नहीं रखते। देखो तो, इन दिनों सभी माँ के भक्त ही दिखाई दे रहे हैं।

सोमवार, 6 मई 2019

हँसते आँसु



हजारो तरह के ये होते हैं आँसु
अगर दिल में गम है तो रोते हैं आँसु
ख़ुशी में भी आँखे भिगोते हैं आँसु
इन्हे जान सकता नहीं ये जमाना
मैं खुश हूँ मेरे आँसुओं पे न जाना
मैं तो दीवाना, दीवाना, दीवाना 


 "मिलन " फिल्म का ये गाना वाकई लाजबाब है। आनंद बक्शी के लिखे बोल रूह तक में समां जाते हैं। सच ,जब अंतर्मन में भावनाये मचलती है तो दिल की सतह पर दर्द की तपिस से जो बादल उमड़ते हैं वो आँखों से पानी की बून्द बन बरस जाते हैं।  आँसु ,महज आँखों से बहती पानी की बून्द भर नहीं है, ये आँसु प्रियतम के वियोग में बहे तो आँखों से लहू के कतरे बन बरसते हैं तो वही  प्रिये मिलन के इंतज़ार में बहे आँसु  फूल बन राहो में बिखर जाते हैं  और प्रियतम से गले मिलते ही ये आँसु मोती बन जाते हैं। और जब कभी कोई अपना छल करता है तो यही आँसु  आँखों से अंगारे बन बरसने लगते हैं। सच ,आँसु  के भी कितने रूप है ? 

"नारी दिवस"

 नारी दिवस " नारी दिवस " अच्छा लगता है न जब इस विषय पर कुछ पढ़ने या सुनने को मिलता है। खुद के विषय में इतनी बड़ी-बड़ी और सम्मानजनक...