सोमवार, 29 अक्तूबर 2018

"दिल तो बच्चा है जी"



     ज़िंदगी हर पल एक चलचित्र की तरह अपना रंग रूप बदलती रहती है। है न , जैसे चलचित्र में एक पल सुख का होता है तो दुसरा पल दुःख का...फिर अगले ही पल कुछ ऐसा जो हमें अचम्भित कर जाता है और एक पल के लिए हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि "क्या ऐसा भी होता है ?"ढाई तीन घंटे की चलचित्र में बचपन से जवानी और जवानी से बुढ़ापे तक का सफर दिख जाता है। हमारा जीवन भी तो एक चलचित्र ही है फर्क इतना है कि- चलचित्र में हमें  "The end "देखने को मिल जाता है वो भी ज्यादा से ज्यादा खुशियों से भरा अंत। हमारे जीवन का The end क्या, आगे क्या होगा ये भी हमें नहीं पता होता है।और पढ़िये

गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

सोना के बेटे की-" हीरा" बनने की कहानी



चलिये ,सोना की कहानी को आगे बढ़ाते है और जानते है कि -कैसे उनका बेटा हीरा बन चमका और अपने माँ के जीवन में शीतलता भरी रौशनी बिखेर दी।
सोना की बाते सुन माँ ने उन्हें पहले चुप कराया और फिर सारी बात बताने को कहा। सोना ने बताया कि- मेरी बहन ने मेरे बेटे को अब आगे पढ़ाने से मना कर दिया है। क्युकि मेरे बेटे के साथ ही उसका बेटा भी 10 वी का परीक्षा दिया था लेकिन वो फेल हो गया है इस बात से मेरी बहन नाराज़ है और बेटा आगे पढ़ने के ज़िद में खाना पीना छोड़ रखा है। फिर वो सकुचाती हुई बोली - मालकिन आप के भाई तो प्रोफ़ेसर है न ,आप अगर मेरे बेटे को उनके यह रखवा देगी तो आप का बड़ा एहसान होगा वो उनके घर का सारा काम करेगा ,बर्तन -चौका ,खाना -पीना ,बाजार- हाट सब करेगा बस वो मेरे बेटे को कॉलेज में दाखिला करवा देंगे ,मेरी बहन के घर भी तो वो ये सारे काम करके ही पढ़ा है। माँ एकदम से चौकी - क्या, अपनी सगी मौसी के घर वो ये सब कर के पढ़ा है ?लानत है उस मौसी पर। फिर माँ ने सोना को समझाया कि - मैं कुछ करती हूँ , चिंता नहीं करो और बेटे को भी जाकर खाना खिलाओ ,सब ठीक हो जायेगा। और पढ़िये

मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

कहानी सोना की


"सोना "हाँ ,यही नाम था घुंघट में लिपटी उस दुबली पतली काया का। जैसा नाम वैसा ही रूप और गुण भी।  कर्म तो लौहखंड की तरह अटल था बस तक़दीर ही ख़राब थी बेचारी की। आज भी वो दिन मुझे अच्छे से याद है जब वो पहली बार हमारे घर काम करने आई थी। हाँ ,वो एक काम करने वाली बाई थी। पहली नज़र मे देख कर कोई उन्हें काम वाली कह ही नहीं सकता था। कोई उन्हें कामवाली की नज़र से देखता भी नहीं था वो तो सबके घर के एक सदस्य जैसी थी। बच्चे बूढ़े सब उन्हें सोना ही बुलाते थे बस हम भाई बहन उन्हें प्यार से ताई या अम्मा कह के बुलाते थे। प्यार और इज्जत तो सब उनकी करते थे पर हमारे परिवार को उनसे और उन्हें हम सब से एक अलग ही लगाव था।   और पढ़िये  

"नारी दिवस"

 नारी दिवस " नारी दिवस " अच्छा लगता है न जब इस विषय पर कुछ पढ़ने या सुनने को मिलता है। खुद के विषय में इतनी बड़ी-बड़ी और सम्मानजनक...