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गुरुवार, 8 जुलाई 2021

"तो क्या हुआ---- "

 


खो गई मंजिल

 भटक  गया पथिक 

 तो क्या हुआ ----?

पहुँचने की लगन तो है। 

ढल गई शाम

 घिर गया तम 

तो क्या हुआ ----?

प्रभात आगमन की आस तो है। 

उड़ गए पखेरू 

रह गया पिंजरा रिक्त 

तो क्या हुआ ----?

आत्म-अमरता का विश्वास तो है। 

बिछड़ गए तुम

 टूट गया दिल 

तो क्या हुआ ----?

तुम्हारे  जीवित स्पर्श का एहसास तो है।  

झड़ गए पत्ते 

छा  गया मातम 

तो क्या हुआ ----?

बासंतिक वयारों का शोर तो है। 

सूख गया सागर 

बढ़ गई प्यास 

तो क्या हुआ ----?

प्रेम अश्रु का प्रवाह तो है। 

*********************************


36 टिप्‍पणियां:

  1. सुख गया सागर

    बढ़ गई प्यास

    तो क्या हुआ ----?

    प्रेम अश्रु का प्रवाह तो है।...वाह! क्या बात है! बहुत गहरे भाव।

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    1. सहृदय धन्यवाद विश्वमोहन जी, आपकी उपस्थिति से लेखन सार्थक हुआ ,सादर नमन

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ जुलाई २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।


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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार श्वेता जी,सादर नमन

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  3. आत्म-अमरता का विश्वास तो है।
    बिछड़ गए तुम
    टूट गया दिल
    तो क्या हुआ ----?
    तुम्हारे जीवित स्पर्श का एहसास तो है। ////
    भावों की मधुर सरगम प्रिय कामिनी | यदि -- तो क्या हुआ - धैर्य के इस बिंदु पर यदि मन स्थिर हो जाए तो जीवन के आनंद के क्या कहने ! बहुत बढिया लिखा तुमने | यूँ ही भावों में रंग भरती रहो | मेरी हार्दिक शुभकामनाएं और प्यार सखी |

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    1. मेरा मन तो सच में इसी बंदु पर स्थिर होता है सखी,तुम्हारी सरहाना सम्पन प्रतिक्रिया हमेशा उत्साहवर्धन करती है,ढेर सारा स्नेह तुम्हे

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    1. सहृदय धन्यवाद उर्मिला जी, आपकी सरहाना से लेखन को बल मिला ,सादर नमन

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  5. बहुत बहुत सुन्दर अत्यन्त सराहनीय रचना
    हृदय से आशीष शत शत शुभ कामनाएं ।

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    1. सहृदय धन्यवाद सर,आपका आशीष यूँ ही बना रहें ,सादर नमन

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. इस तो क्या हुआ के बाद.... मन की आशा समाप्त नहीं होती .... यही सकारात्मकता है । कितनी ही निराशा मिले तो क्या हुआ मन में आशा का दीप जला हुआ प्रत्यक्ष दिख रहा है ।
    सुंदर भाव से सुसज्जित रचना ।

    सुख / सूख *
    ठीक कर लें । मात्राओं के गलत टाइप होने से अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है ....तो क्या हुआ ..... ठीक कराने के लिए हम जैसे मिल जाते हैं ।

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    1. दिल से शुक्रिया दी,"तो क्या हुआ" इस एक वाक्य से आगे बढ़ने की हिम्मत मिलती है ,जैसे देखे ना टुटा-फूटा लिखते -लिखते आप सभी के सानिध्य में गलतियां सुधारते-सुधारते यहां तक आ गई। आप लोग मार्गदर्शन करते हैं तो बेहद ख़ुशी होती है,मैंने गलती सुधर ली है,सादर नमस्कार दी

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  8. मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार मीना जी,सादर नमन

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  9. सुंदर भाव, सकरात्मकता व जिजीविषा युक्त बेहतरीन रचना !

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    1. सहृदय धन्यवाद सर,सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ,सादर नमन आपको

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  10. आशा का संचार करती बहुत सुंदर रचना,कामिनी दी।

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    1. सहृदय धन्यवाद ज्योति जी,सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ,सादर नमन आपको

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  11. ढल गई शाम
    घिर गया तम
    तो क्या हुआ ----?
    प्रभात आगमन की आस तो है।
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर सृजन कामिनी जी! बस ये 'तो क्या हुआ' सब हल्का कर देता है और नयी उम्मीद से भर देता है ...मन के भावों को इतने सुन्दर शिल्प मे ढालकर लाजवाब सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

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    1. सही कहा आपने सुधा जी, 'तो क्या हुआ' सब हल्का कर देता है और नयी उम्मीद जगाता है ..

      रचना के मर्म को समझ इतनी सुंदर प्रतिक्रिया देने के लिए तहे दिल से शुक्रिया.... सादर नमन आपको

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  12. वाह! आशा और विश्वास का सुंदर समन्वय!

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    1. तहे दिल से शुक्रिया.... अनीता जी,सादर नमन आपको

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  13. सूख गया सागर
    बढ़ गई प्यास
    तो क्या हुआ ----?
    प्रेम अश्रु का प्रवाह तो है।
    व्वाहहहहह..
    सादर..

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    1. सहृदय धन्यवाद दी,आपका आशीर्वाद मिला लेखन सार्थक हुआ,सादर नमन आपको

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  14. उत्तर
    1. सहृदय धन्यवाद अनुपमा जी,आपके सराहना सम्पन प्रतिक्रिया के लिए दिल से आभारी हूँ ,सादर नमन आपको

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  15. भावों का सुंदर रूप।बहुत बढियाँ।
    शुभकामनाएँ।

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    1. सहृदय धन्यवाद पम्मी जी,आपके सराहना भरे शब्दों ने लेखन को सार्थक किया ,सादर नमन आपको

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  16. वाह,कामिनी जी इस सुंदर प्रवाहमान रचना पर पहुंचने में थोड़ा विलंब हुआ क्षमा करें,पर सच आपकी सुंदर कृति दिल में उतर गई।बहुत बधाई आपको।

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    1. हृदयतल से धन्यवाद ....आपके दिल तक पहुंचने में सफल रही मेरा सौभाग्य जिज्ञासा जी,प्रशंसा से भरे शब्दों से लेखन सार्थक हुआ,सादर नमन आपको

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  17. उत्तर
    1. हृदयतल से धन्यवाद शिवम जी , सादर नमन आपको

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  18. खो गई मंजिल
    भटक गया पथिक
    तो क्या हुआ ----?
    पहुँचने की लगन तो है।
    ढल गई शाम
    घिर गया तम
    तो क्या हुआ ----?
    प्रभात आगमन की आस तो है
    बहुत ही उम्दा रचना!

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